CG Medical Education: आयुष विश्वविद्यालय की लापरवाही से एमबीबीएस के परिणाम में देरी, पीजी नहीं कर पा रहे मेडिकल स्टूडेंट्स...
CG Medical Education: एमबीबीएस फाइनल ईयर की इंटर्नशिप और परीक्षा होने के 3 महीने बाद भी परीक्षा परिणाम जारी नहीं होने के चलते विद्यार्थियों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। ना तो वे आगे कहीं नौकरी ज्वाइन कर पा रहे हैं और ना ही पीजी कर पा रहे हैं। राज्य के अस्पतालों में भी इसके चलते चिकित्सकों की भारी कमी हो गई है। आयुष विश्वविद्यालय के लचर रवैये और शैक्षणिक कैलेंडर का पालन नहीं करवाने से परेशान होकर IMA इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने मोर्चा खोलते हुए विश्विद्यालय के कुलाधिपति राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की है।

CG Medical Education: रायपुर। पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक स्वास्थ्य विज्ञान एवं आयुष विश्वविद्यालय की लापरवाही के चलते एमबीबीएस करने वाले विद्यार्थियों के भविष्य पर खतरा तो मंडराने लगा है। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। फाइनल ईयर के परीक्षा के तीन माह बाद रिजल्ट घोषित नहीं होने से एमबीबीएस के विद्यार्थी ना तो कहीं ड्यूटी ज्वाइन कर पा रहे हैं और ना ही पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए पात्र हो रहे हैं। जिसके चलते प्रदेश के अस्पतालों में भी चिकित्सकों की कमी हो गई है। इस मुद्दे पर आईएमए ने मोर्चा खोलते हुए राज्यपाल और कुलाधिपति से हस्तक्षेप की मांग की है।
आयुष विश्वविद्यालय रायपुर की लचर कार्य प्रणाली के चलते सरकारी और निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस कोर्स का शेड्यूल गड़बड़ा गया है और शैक्षणिक कैलेंडर का पालन नहीं हो पा रहा है। 2019 बैच के एमबीबीएस विद्यार्थियों की परीक्षा समाप्त होने के 3 महीने बाद भी परिणाम नहीं आ पाया है। आमतौर पर एमबीबीएस परीक्षा के बाद 8 से 10 दिनों में परिणाम घोषित कर दिए जाते हैं। इंटर्नशिप पूरी होने के बावजूद अब तक के परिणाम घोषित नहीं होने पर उनके लिए आगे की कोई प्लानिंग करना मुश्किल हो चुका है।
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाएं इन दिनों गंभीर संकट से जूझ रही हैं। 2019 बैच के एमबीबीएस विद्यार्थियों की इंटर्नशिप पूरी हो चुकी है और बैच 2020 के बच्चों के रिजल्ट नहीं आने की वजह से नए इंटर्न ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पा रहे ।
परीक्षा परिणाम अटका होने की वजह से न तो वे अस्पतालों में सेवाएं दे पा रहे हैं और न ही आगे की पढ़ाई या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर पा रहे हैं। मामला राजभवन तक पहुंच चुका है। राज्यपाल से शिकायत के बाद भी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. पीके पात्रा व अन्य विवि प्रबंधन की कान में जूं नहीं रेंग रहा है।
ज्ञात हो कि प्रदेश में पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक है। करीब 68% प्रतिशत चिकित्सा संस्थानों में फैकल्टीज के पद खाली हैं। ऐसे में एमबीबीएस विद्यार्थी ही अस्पतालों में डाक्टर की अहम भूमिका निभाते हैं। परिणाम रुके होने से अस्पतालों में इलाज के लिए मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
पीजी वालों को भी तीन महीने से इंतजार:–
इधर, पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों का भी गायनिक, मेडिसिन, रेडियोलाजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों का परिणाम जारी नहीं हुआ है। इससे विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी और बढ़ गई है।
नीट पीजी की तैयारी में भी रुकावट:–
नीट पीजी परीक्षा में शामिल होने के लिए एक वर्ष की इंटर्नशिप अनिवार्य होती है। लेकिन परिणाम न आने से एमबीबीएस विद्यार्थियों की इंटर्नशिप भी शुरू नहीं हो पा रही है। इससे विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है।
विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही:–
आम तौर पर एमबीबीएस की परीक्षा का परिणाम 8 से 10 दिन में घोषित कर दिया जाता है। लेकिन आयुष विश्वविद्यालय में डा. पीके पात्रा के कुलपति बनने के बाद से व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। सूत्रों के मुताबिक विश्वविद्यालय प्रबंधन ने एमबीबीएस का परिणाम तैयार करने का कार्य किसी निजी कंपनी को सौंप दिया है, जिससे और देरी हो रही है। ऐसे में प्रदेश के आयुष विवि की साख पर संकट खड़ा हो गया है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने जताई नाराजगी:–
इस मामले को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डा. कुलदीप सोलंकी ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने महामहिम राज्यपाल महोदय को मामले की जानकारी देकर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप कर परिणाम जल्द जारी कराने की गुजारिश की है। डा. सोलंकी का कहना है कि चिकित्सा के विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं। अनावश्यक विलंब के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
राज्यभर में गुस्सा, जल्द समाधान की मांग:–
विद्यार्थियों और उनके परिजनों में गहरी नाराजगी है। प्रदेश के चिकित्सा संगठनों ने भी सरकार से अपील की है कि जल्द से जल्द परीक्षा परिणाम जारी कर छात्रों की इंटर्नशिप शुरू करवाई जाए। अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आने वाले समय में प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और अधिक बदहाल हो सकती है। विद्यार्थियों में रोष के चलते आने वाले समय में विवि प्रबंधन को विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।