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बिहार की स्कूल गोइंग बेटियों ने देश की नकली सफाई योजनाओं की कलई खोल दी

बिहार की स्कूल गोइंग बेटियों ने देश की नकली सफाई योजनाओं की कलई खोल दी
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By NPG News

अखिलेश अखिल

पिछले दिनों बिहार की राजधानी पटना में यूनिसेफ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पटना के एक स्लम बस्ती के सरकारी स्कूल की लड़की ने सरकार के अधिकारीयों के सामने बेहिचक सैनेटरी पेड की मांग की और स्कूल गोइंग बच्चियों की विवशता का खुलासा किया। बच्ची की इस खुलासा ने न सिर्फ बिहार सरकार और उसकी किशोरी स्वास्थ्य योजना की कलई खोल दी बल्कि देश के भीतर चल रहे रहे हर राज्य सरकार की झूठी योजनाओं पर से भी पर्दा उठा दिया। मोदी सरकार की बेटी पढ़ाओ ,बेटी बचाओ की योजना पर भी कालिख पुत गई।

पटना में जो वर्कशॉप आयोजित की गई थी उसका उदेश्य लैंगिक असमानता मिटाने वाली सरकारी योजनाओं की जानकारी बच्चियों को देने के लिए की गई थी। लेकिन जैसे ही एक बच्ची ने आयोजित वर्कशॉप में स्कूल गर्ल्स को सरकार द्वारा मुफ्त सैनिटरी पैड देने की मांग की और वहां उपस्थित एक महिला आईएएस अधिकारी ने बच्ची की मांग पर जो जवाब दिया, उसकी कल्पना भी बच्ची ने नहीं की होगी। उस महिला अफसर के जवाब से पूरा देश दंग रह गया। फिर बहस इस बात पर शुरू हो गई कि आखिर सरकार करना क्या चाहती है ? सरकार की झूठी योजनाओं के क्या मायने हैं ? और सवाल यह भी उठ गए कि क्या झूठी प्रचार वाली योजनाए चलकर हमारे देश की बेटियां सुरक्षित रह सकती है ? बहस ने यह सोचने को विवश कर दिया कि स्कूल जाने वाली बच्चियां कितना कुछ झेलने को विवश हैं।

पटना की उस लड़की की कहानी और बिहार सरकार के योजनाओं के बारे हम बात करेंगे और इसी के बहाने हम देश के भीतर के स्कूलों की पड़ताल भी करेंगे जहां आये दिन हमाई बेटियों को कही शौचालय ,कही साफ़ पानी तो कही सैनेटरी पेड के लिए परेशानी झेलनी पड़ती है। सरकार के दावे तो यही कहते हैं कि देश में सबकुछ ठीक है और सभी स्कूल गोइंग बेटियां सुरक्षित है और उसे सभी सुविधाएं स्कूलों में मिल रहे हैं लेकिन सच ठीक इसके विपरीत है।

पहले यूनिसेफ क्या कहता है डालते हैं। यूनिसेफ के मुताबिक़ स्कूल में बच्चे काफी समय बिताते हैं इसलिए इसमें दो मत नहीं है कि स्कूल का वातावरणउनके स्वास्थ्य और शिक्षा की निरंतरता मेंएक बड़ी भूमिका निभाता है। जब स्कूलों में लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए स्वच्छ शौचालय होते हैं, स्वच्छ पानी मिलता है और माहौल स्वास्थ्यवर्धक होता है, तो इससे स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ती है और सीखने में सहयोग मिलता है।

यूनिसेफ के मुताबिक जब स्कूलों में पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य (वॉश) संबंधी सेवाएँउपलब्ध होती हैं,तो अधिक लड़कियां स्कूल पढ़ने जाती हैं, जिससे उनकीजल्दी शादी और गर्भधारण का खतरा कम होता है। ऐसा इसलिए होताहै कि लड़कियां मासिक धर्म के दौरान अक्सर स्कूल नहीं जाती, क्योंकि स्कूल में उपयुक्त सुविधाएं नहीं होती हैं;इससेधीरे-धीरे वो पढ़ाई में पीछे होने लगती हैं और यहां तक कि वे स्कूल छोड़ देती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि भारत में स्कूल जाने वाली लड़कियों में से एक चौथाई लड़कियां मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं गईं। इसका एक प्रमुख कारण है स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय का न होना, सैनिटरी पैड न मिलना और स्कूलों में उपलब्ध शौचालयों का गंदा होना।

इस समस्या को दूर करने के लिए भारत सरकार ने देशभर में 'स्वच्छ भारत, स्वच्छ विद्यालय' या 'क्लीन इंडिया, क्लीन स्कूल' अभियान की शुरुआत साल 2014 में की थी। एसबीएसवी का लक्ष्य बच्चोंतथा उनके परिवारों और आस-पास के लोगोंकी स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधित आदतों में सुधार लाकर बच्चों के स्वास्थ्य और स्वच्छता पर एक दिखने वाला बदलाव लाना है। इसका एक उद्देश्य यह भी है कि स्कूलों के भीतर स्वच्छता प्रथाओं और पानी तथा स्वच्छता सुविधाओं के सामुदायिक स्वामित्व को बढ़ावा दिया जाए और वॉश पाठ्यक्रम और शिक्षण केतरीकों में सुधार हो।

यूनिसेफ के मुताबिक भारत के हर स्कूल में छह आवश्यक साधन होने चाहिए, जो कि स्कूल में साफ़ पानी, सफाईऔरस्वच्छता कार्यक्रम का निर्माण करती हैं।लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय और दोनों में साबुन की सुविधाएं।साथ ही उपयुक्त मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन सुविधाएं, कपड़े बदलने के लिए अलग स्थान, कपड़े धोने के लिए पर्याप्त पानी और मासिक धर्म संबंधित कचरों के लिए कूड़ेदान की सुविधाएं भी होनी चाहिए।

कई लोगों के लिए एक साथ हाथ धोने की सुविधाएं होनी चाहिए, जिससे 10-12 छात्र एक ही समय में हाथ धो सकें। हाथ धोने का स्थान साधारण, व्यापक करने योग्य और संधारणीय होना चाहिए, जिसमें पानी की खपत भी कम होती हो। और सबसे अहम यह कि महिला शिक्षकों द्वारा संवेदनशीलऔर सहायक तरीके से लड़कियों को उनके मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में सिखाया जाना चाहिए।

तो सवाल है कि यूनिसेफ की ये बातें स्कूलों में लागू है ? कहने को तो हमारे देश की सभी राज्य सरकारें डपोरशंखी दावे तो बहुत करती है लेकिन वे दावे सच नहीं हैं। इसकी बानगी 2020 के संसद में पेश कैग की रिपोर्ट है जो सरकार के दावों की पोल खोलती है।

संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 10.8 लाख सरकारी स्‍कूल हैं। इनमें सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यमों की सहायता से मात्र 1,40,997 शौचालयों का निर्माण कराया गया था। कैग ने इनमें से नमूने के तौर पर केवल 2695 शौचालयों को सर्वे में शामिल किया। संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि, 'सर्वेक्षण के दौरान, लेखा परीक्षा में देखा गया कि 2,326 शौचालयों में से 1,812 शौचालयों में उचित रखरखाव/ स्वच्छता का अभाव था। वहीं 1,812 शौचालयों में से 715 शौचालय साफ नहीं किए गए थे। 1,097 शौचालय हफ्ते में दो बार से महीने में एक बार के बीच साफ किए जा रहे थे। ' मीडिया खबरों की माने तो कैग की प्रस्‍तुत रिपोर्ट में उल्‍लेख किया गया है कि सरकारी विद्यालयों में बनाए गए 70 प्रतिशत से अधिक शौचालयों में पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहीं 75 प्रतिशत शौचालयों में निर्धारित मानकों का सही ढंग से पालन नहीं किया गया है। कैग के अनुसार, शौचालयों में साबुन, बाल्टी, सफाई एजेंटों तथा कीटनाशकों की अनुपलब्धता तथा प्रवेश मार्ग की अपर्याप्त सफाई के मामले भी देखे गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 'स्वच्छ विद्यालय अभियान' के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उद्यमों द्वारा पहचाने गए ऐसे कुल 83 शौचालय हैं, जिनका निर्माण अभी तक नहीं किया गया है। वहीं अन्य 200 शौचालयों का निर्माण तो पूरा हो गया है, किंतु वे अभी भी अस्तित्त्वहीन हैं, जबकि 86 शौचालय ऐसे हैं जिनका निर्माण केवल आंशिक रूप से किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, 691 शौचालय ऐसे हैं, जिन्हें पानी की कमी, टूट-फूट या अन्य कारणों से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। 99 स्‍कूलों में किसी भी प्रकार का शौचालय नहीं है, जबकि 436 स्‍कूलों में केवल एक शौचालय है, जिसका अर्थ है कि 27 प्रतिशत स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। वहीं 55 प्रतिशत में हाथ धोने की कोई सुविधा नहीं है।

समझने की जरूरत तो यही है कि कैग की ये सैंपल रिपोर्ट बहुत कुछ कहती है और जाहिर है कि दो साल पहले की ही ये रिपोर्ट सभी राज्य सरकारों के मुँह पर कलख पोतती है। लेकिन कोई भी सरकार सच बोलने को तैयार नहीं। जो सरकार ठीक से स्कूलों को ही संचालित नहीं कर सकती ,बच्चो और बेटियों की सुरक्षा और उसके सफाई का ध्यान नहीं दे सकती उस सरकार के रहने या नहीं रहने का क्या मतलब हो सकता है। याद रहे देश के स्कूलों में बहुत सारी हमारी बेटियां इस लिए नहीं जाना चाहती कि वहाँ उसके अनुकूल वातावरण नहीं है।

अब फिर पटना की बात। तो कार्यक्रम के दौरान स्लम बस्ती की एक बच्ची ने महिला एवं बाल विकास निगम की एमडी व भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हरजोत कौर बमराह की मुखातिब होते हुए अपने स्कूल के शौचालय की दुर्दशा बयान करते हुए कहा कि यह टूटा हुआ है, अक्सर लडक़े भी घुस जाते हैं। इसका इस्तेमाल नहीं करना पड़े, इसलिए कम पानी पीते हैं। लड़की का यह बयान सरकार योजनाओं का पोल खोलने के लिए काफी है। कितनी पीड़ा है लड़की के इस बयान में। लेकिन लड़की की पीड़ा को मजाक बनाते हुए महिला एमडी ने जो कहा वह तो घटिया सोंच की पराकाष्ठा है। महिला एमडी ने कहा कि। तुम्हारे घरों में अलग-अलग शौचालय है क्या ? हर जगह अलग से मांगोगी तो कैसे चलेगा। एक अन्य बच्ची ने उनसे पूछा, सरकार बहुत कुछ देती है तो क्या स्कूल में 20 रुपये का सैनिटरी पैड नहीं दे सकती? इस पर उनका जवाब था, ऐसी मांग का कोई अंत है ? कल को जींस-पैंट मांगोगी, परसों सुंदर जूते और फिर परिवार नियोजन के साधन भी ?

बच्ची ने कहा, जो सरकार को देना चाहिए वह तो दे। इस पर एमडी ने हिदायत देते हुए उसकी सोच गलत होने की बात कही और खुद भी कुछ करने को कहा। बच्ची प्रतिवाद करते हुए बोली, सरकार को इसके लिए पैसा इसलिए देना चाहिए कि वह हमसे वोट लेने आती है। इस पर एमडी ने इसे बेवकूफी की इंतिहा बताते हुए उसे पाकिस्तान चले जाने की सलाह दे डाली। हालांकि, उन्होंने बच्चियों से यह भी कहा कि उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी। उन्हें यह तय करना होगा कि भविष्य में वे खुद को कहां देखना चाहतीं है। यह निर्णय उन्हें ही करना होगा। यह काम सरकार नहीं कर सकती है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हरजोत कौर के खिलाफ जांच का आदेश दिया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी जवाब तलब किया है। बहुत संभव है कि एमडी के खिलाफ कार्रवाई हो और उसके बाद पिछले अन्य वाकये की तरह समय के साथ यह मामला भी लोगों के जेहन से निकल जाए। लेकिन,यक्ष प्रश्न तो यह है कि अगर सरकार की ओर से स्कूलों में सैनिटरी पैड के वितरण का प्रावधान है, तो इसकी जानकारी उस छात्रा को क्यों नहीं थी। उसे अब तक स्कूल में यह क्यों नहीं मिला।

कि बिहार सरकार ने 2015 में लड़कियों को स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रति जागरूक करने तथा ड्रॉप आउट को कम करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना की शुरुआत की थी, जिसके तहत सरकारी स्कूलों में आठवीं से दसवीं कक्षा तक की लड़कियों को सैनिटरी पैड की खरीद के लिए सालाना 150 रुपये की राशि देने का प्रावधान किया गया था, जिसे बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया गया है।

अब बड़ा सवाल है कि क्या ये बाते केवल बिहार तक ही सीमित है ? क्या सवाल करने वाली ऐसी बेटियां केवल बिहार में ही है ? क्या ऐसी हरजोत कौर जैसी अधिकारी केवल बिहार में ही है ? और क्या केवल बिहार के स्कूलों का ही ये हाल है ? नहीं। सच इसके बहुत आगे है। सच तो यही है कि ठगिनी राजनीति चरित्रहीन है और देश के अधिकतर नेता कालाबाजार के सेवक। सरकार बदलती रहती है और आगे भी बदल सकती है लेकिन नेताओं और अधिकारियों के चरित्र जबतक नहीं बदलते ,देश की बेटियां ऐसे ही घुंटती रहेगी।

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