रायपुर। प्रदेश में एक के बाद एक लगातार 3 जिलों में सहायक शिक्षकों को प्रधान पाठक पद पर पदोन्नति मिली और कुछ ही घंटों में उनकी यह खुशी छीन भी गई । कोंडागांव में सबसे पहले इसकी शुरुआत हुई जहां आदेश जारी करते ही विवाद शुरू हुआ और जैसे ही मामला कलेक्टर के पास पहुंचा वैसे ही पदोन्नति निरस्त कर दी गई , इसके बाद कुछ ऐसा ही कोरबा जिले में भी हुआ और अब से कुछ देर पहले जिला बलरामपुर-रामानुजगंज में भी कलेक्टर ने पदोन्नति आदेश निरस्त कर दी है तीनों ही जगह में समानता यह है कि आदेश पर चाबुक कलेक्टर ने चलाई है ।
दरअसल जिस प्रकार से लगातार आदेश जारी होते ही शिकायतों का दौर शुरू हुआ और कलेक्टर के पास प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मामले की जानकारी पहुंची उसने कलेक्टरों को भी हैरान कर के रख दिया । शिक्षा विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार का आलम यह है कि जिन दिव्यांग शिक्षकों को प्रमोशन में सबसे अधिक प्राथमिकता मिलनी थी उन्हें भी उनके आसपास के स्कूल से हटाकर जानबूझकर दूर फेंक दिया गया है और उनकी जगह पैसा लेकर दूसरे शिक्षकों को उसी स्थान पर पदोन्नति दे दी गई है जबकि फरवरी में लोक शिक्षण संचालनालय से पदोन्नति के संबंध में जारी किए गए निर्देश में यह स्पष्ट किया गया था की पदोन्नति देते समय यदि पदोन्नत होने वाले शिक्षक के स्कूल में पद रिक्त है तो उन्हें वही प्रमोशन देना है वहां न होने की स्थिति में संकुल में और फिर ब्लॉक को तरजीह दी जानी है यदि ब्लॉक में भी पद न हो तो फिर निकटतम ब्लॉक में पदोन्नति दी जानी है लेकिन पैसे के आकंठ लोभ में डूबे शिक्षा विभाग के बाबू और अधिकारियों ने ऐसा खेल खेला कि कलेक्टरों को भी सोचने में यह समय नहीं लगा कि इस पर लगाम लगाई जानी अति आवश्यक है यही वजह है कि शिकायत पहुंचते ही कलेक्टरों ने तत्काल पदोन्नति को निरस्त करते हुए काउंसलिंग कराए जाने के निर्देश दिए ।
3 जिलों के बाद अब अन्य जिलों में भी काउंसलिंग के माध्यम से ही पदोन्नति होने के आसार हैं और यदि अन्य जिलों में भी इसी प्रकार की गड़बड़ी हुई तो कलेक्टर आदेश को निरस्त करने में जरा सा भी देर नहीं लगाएंगे ऐसे में अन्य जिले के जिला शिक्षा अधिकारी भी चौकाने हो गए हैं क्योंकि आदेश निरस्तीकरण की स्थिति में काउंसलिंग तो करानी ही पड़ेगी बदनामी जो होगी वह अलग । ऐसे यह मामला केवल पदोन्नति बस का नहीं है ट्रांसफर में भी जमकर खेल हुआ है ऐसे ऐसे शिक्षकों का तबादला उनके स्कूल से दूर दराज में कर दिया गया है जो दिव्यांग है या फिर एक ही क्षेत्र में पति-पत्नी के तौर पर पदस्थ हैं। सबसे बड़ी बात प्रशासनिक तबादले के नाम पर जो कोहराम मचाया गया है उसे लेकर भी सरकार गंभीर है क्योंकि सीधे तौर पर इससे सरकार की छवि को नुकसान पहुंच रहा है जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है ऐसे भी शिक्षकों को स्कूल से हटा दिया गया है और दूरदराज से शिक्षकों को लाकर उनके स्कूलों में बैठा दिया गया है प्रशासनिक तबादले पहले भी होते थे लेकिन उसका आधार जिला संगठन द्वारा की जाने वाली शिकायतें होती थी लेकिन इस बार संगठन को तवज्जो मिला ही नहीं है और जिन्होंने चढ़ावा दिया उन्हें मनमाफिक जगह दे दी गई और इसके लिए किसी को भी हटाने में गुरेज नहीं किया गया है यह भी नहीं देखा गया है कि जिन्हें हटाया जा रहा है उनकी स्थिति क्या है , यही वजह है कि दिव्यांग शिक्षक तक इस पैसे के खेल में प्रभावित हुए हैं और आम शिक्षक जिनकी कोई भी शिकायत नहीं थी और जो अपने गांव में सम्मानित शिक्षक के रूप में जाने जाते है वह भी तबादला के शिकार हो गए हैं। सरकार तक पूरा मामला पहुंच चुका है और अंदर ही अंदर इस बात की भी जांच हो रही है कि आखिर पूरा खेल हुआ कैसे हैं ।