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क्यों मनाया जाता है क्रिसमस, दिसंबर को सेलिब्रेट करने के पीछे है दिलचस्प कारण, ये है इतिहास

क्यों मनाया जाता है क्रिसमस, दिसंबर को सेलिब्रेट करने के पीछे है दिलचस्प कारण, ये है इतिहास
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By NPG News

नईदिल्ली 24 दिसंबर 2021 I क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन सभी ईसाई समुदाय के लोग रात को 12 बजे चर्च में एक साथ मिलकर प्रभु यीशु की जन्मदिन मनाते हैं. प्रभु यीशु के जन्म की रात है. पापों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रभु यीशु शुक्रवार की रात 12 बजे चरनी में जन्म लेंगे. प्रभु के जन्म लेते ही गिरिजाघरों में आराधना शुरू हो जायेगी. जन्मोत्सव का उल्लास बिखेरेगा. खुशियों के गीत गूंजेंगे. मसीही जश्न मनायेंगे. केक काटे जायेंगे. इधर, प्रभु के जन्मोत्सव की तैयारी अंतिम चरण में है. क्रिसमस को लेकर सभी चर्च सजकर तैयार है. गिरिजाघरों में कोरोना गाइडलाइन का पालन किया जायेगा. चर्च के अंदर सोशल डिस्टैंसिंग बनाये रखने की अपील की गयी है. चर्च सर्विस में विश्वासियों की संख्या कम रखने के लिए अतिरिक्त चर्च सर्विस की भी अपील की गयी है.

क्रिसमस का इतिहास :- एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा. ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है. यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा. समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई. भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं. उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे. उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था. एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई. काफी थक−हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ. अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी. गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया

इस तरह हुई 'क्रिसमस डे' की शुरुआत :- यूरोप में कुछ गैर ईसाई समुदाय के लोगों ने 25 दिसंबर को सूर्य की दिशा चेंज होने वाला दिन के रूप में सेलिब्रेट करना शुरू किया. ईसाई मान्यताओं के अनुसार, क्रिसमस के दिन ही प्रभु यीशु ने धरती पर जन्म लिया था. इनका जन्म जोसफ और मैरी के घर में हुआ था. ऐसे तो प्रभु यीशु को जन्म के ठीक समय और महीने की सटीक जानकारी नहीं है लेकिन, चौथी शताब्दी में ईसाई चर्चों ने 25 दिसंबर को क्रिसमस डे (Christmas Day) के रूप में मनाने की शुरुआत की. अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर 1870 में क्रिसमस के दिन हॉलिडे की शुरुआत की. इसके बाद से ही दुनियाभर के ईसाई इस खास दिन को प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में सेलिब्रेट करते हैं. क्रिसमस का त्योहार भारत समेत पूरी दुनिया में बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन सभी ईसाई समुदाय के लोग रात को 12 बजे चर्च में एक साथ मिलकर प्रभु यीशु की जन्मदिन मनाते हैं. उनका ऐसा मानना है कि भगवान ने धरती के मनुष्यों के पाप को खत्म करने और लोगों की रक्षा के लिए अपने बेटे को धरती पर भेजा था. इस मौके पर लोग सेंटा बनकर सभी को गिफ्ट्स बांटते हैं और घरों में क्रिसमस ट्री सजाते हैं. इसके साथ ही लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर पूरे दिन को इंजॉय करते हैं.

क्रिसमस का महत्व :- क्रिसमस का महत्व ईसाइयों के लिए बहुत अधिक होता है. प्रभु यीशु के जन्म के अवसर पर यह त्योहार मनाया जाता है. क्रिसमस का पर्व ईसाइयों में ही नहीं सभी धर्मों में पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी की क्रिसमस का पर्व 1 दिन का नहीं बल्कि पूरे 12 दिन का पर्व है और यह पर्व क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू हो जाता है. क्रिसमस ईव यानि क्रिसमस की पूर्व संध्या धार्मिक और गैर-धार्मिक दोनों परंपराओं से जुड़ी है. इन परम्पराओं का मुख्य केंद्र प्रभु यीशु का जन्म है. ईसाई धर्म में भी अपनी विभिन्न संप्रदाय हैं जिनकी अलग परंपराएं हैं. इस दिन रोमन कैथोलिक और एंग्लिकन मिडनाइट मास का आयोजन करते हैं. लुथेरन कैंडल लाइट सर्विस और क्रिसमस कैरोल के साथ जश्न मनाते हैं. कई एवेंजेलिकल चर्च में शाम की सेवाओं का आयोजन होता है जहां परिवार पवित्र भोज बनाते हैं.

क्रिसमस के दिन लोग भगवान यीशु का जन्मदिन मनाते हुए एक साथ एकत्रित होर प्रार्थना करते हैं. प्रार्थना सभा में लोग दुनिया में शांति और अमन बनाए रखने की कामना करते हैं. लेकिन शायद अबतक आप यह नहीं जानते कि दुनिया में एक चर्च ऐसा भी है जहां क्रिसमस 25 दिसबंर को नहीं बल्कि 6 जनवरी को मनाया जाता है. इतिहासकारों के अनुसार प्रभु यीशु ही ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं और उनके जन्म के बाद ही ईसाई धर्म का उदय हुआ. राजा तिरिडेट्स ने ग्रेगरी को पहला कैथोलिक घोषित कर दिया था. ऐसा माना जाता है कि गेगरी ने प्रभु यीशु को पृथ्वी पर उतरते देखा था. तब ग्रेगरी ने राजा को बताया कि प्रभु ने उन्हें आर्मेनिया में चर्च बनाने की बात कही है. जिस जगह पर चर्च बनाने की बात कही गई थी उसी जगह पर विशाल ईसाई चर्च निकला, आज इसकी गिनती दुनिया के सबसे पुरानी चर्च में की जाती है. और इसके बाद से ही वहां लोगों का विश्वास भी बढ़ता गया. इसी अर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च ने 25 दिसंबर के बजाय 6 जनवरी को क्रिसमस दिवस घोषित किया. और तभी से यहां 6 जनवरी के दिन एपिफेनी का पर्व मनाया जाता है. और इसी पर्व के उपलक्ष्य में क्रिसमस सेलिब्रेट किया जाता है.

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