
सारंगढ़ जिला 3 सितंबर 2022 को अस्तित्व मे आया। यह पहले रायगढ़ जिले का हिस्सा हुआ करता था और 14 देसी रियासतों में से एक था। यहाँ पर गोंड राजाओं का शासन हुआ करता था। उन्हीं के द्वारा दशहरा के अवसर पर शुरू की गई 'गढ़ विच्छेदन' की परंपरा आज भी जारी है। इस नए जिले के साथ पुरानी अनेक यादगार बातें जुड़ी हुई हैं। सारंगढ़ में एक हवाई पट्टी थी। दूसरे विश्वयुद्ध में अमरीकी बमवर्षक विमान यहां ईंधन भरने उतरा करते थे। विशेषज्ञ बताते हैं कि तकनीकी पैमानों पर यह देश की सर्वोत्तम हवाई पट्टियों में से एक थी।यही नहीं यहां के राजा नरेश चंद्र सिंह, आज़ाद भारत के अंतर्गत मध्य प्रदेश में 15 वर्ष तक विभिन्न विभागों के मंत्री से लेकर 13 दिन के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री भी रहे। क्षेत्र चूना पत्थर से समृद्ध है और वनों से घिरा हुआ है और बेहद सुंदर दिखाई पड़ता है।गोमर्डा अभ्यारण्य इसी जिले के अंतर्गत आता है।महानदी जिले की मुख्य नदी है। सारंगढ़ प्रमुख रूप से रामनामी समुदाय के लोगों और काली माँ के भक्तों के लिए प्रसिद्ध है।
इतिहास
प्रारम्भ में सारंगढ़ रियासत रतनपुर के कलचुरी शासकों के अधीन थी। बाद में यह क्षेत्र सम्बलपुर के नियंत्रण में रहा। अंचल में 18 वीं शताब्दी में मराठा सत्ता स्थापित हुई। सन 1818 में सारंगढ रियासत ब्रिटिश नियंत्रण एवं प्रभाव के अंतर्गत आ गया जो भारत की आजादी तक बना रहा। इसके पश्चात सारंगढ रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ।
इसके नामकरण को लेकर बहुत रोचक जानकारियां मिलती हैं। सारंग शब्द के तीन अलग अर्थों के आधार पर इसके संबंध में तीन बातें की जाती हैं।पहला, यहां बांस वनों (सारंग वृक्ष) की अधिकता थी। दूसरा यहां मृगों ( हिरणों, इन्हें भी सारंग कहा जाता है) की अधिकता थी और तीसरा यहां सारंग पक्षी की अधिकता थी। विभिन्न विशेषज्ञ अपने-अपने मत के अनुसार इन
आधारों पर क्षेत्र के नामकरण की जानकारी देते हैं।
प्रशासनिक जानकारी
सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का कुल राजस्व क्षेत्रफल 1, 65,014 है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 6, 17, 252 है। सारंगढ़ जिला मुख्यालय है। इसके अंतर्गत 4 तहसील, 5 नगरीय निकाय, 349 ग्राम पंचायत, 759 ग्राम हैं।
कृषि
सारंगढ़ की मुख्य फसलें धान, मटर,सरसों, रागी, मूंगफली, गन्ना आदि हैं।
अर्थव्यवस्था
जिले की अर्थव्यवस्था में कृषि और वनोपज का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ सारंगढ़ तहसील में चूना पत्थर के निक्षेप पाए जाते हैं।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
प्रमुख काॅलेज
गवर्नमेंट लोचन प्रसाद पांडे काॅलेज
डिग्री कॉलेज
अशोका कॉलेज
सीपीएम आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज आदि
प्रमुख स्कूल
अशोका पब्लिक स्कूल
गवर्नमेंट मल्टी पर्पज़ स्कूल
मोना मॉडर्न इंग्लिश स्कूल
सरस्वती शिशु मंदिर
एकलव्य पब्लिक स्कूल
राजश्री मॉडर्न स्कूल आदि
प्रमुख पर्यटन स्थल
गोमरदा वन्यजीव अभयारण्य
यह अभ्यारण्य करीब 277 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है गोमरदा अभ्यारण्य। यहाँ गौर, सोनकुत्ता, बारहसिंहा, तेंदुआ, बरहा, उड़न गिलहरी, नीलगाय, सांभर, बार्किंग डियर, चौसिंगा, मुंटजेक, सुस्त भालू, जंगली सुअर, दुर्लभ एशियाई जंगली कुत्ता और सियार भी देख सकते हैं। यहां सदाबहार सागौन- साल के जंगल और अन्य मिश्रित वन देख सकते हैं।आप इस अभ्यारण्य में बहुत सारे दुर्लभ और आश्चर्यजनक पक्षी भी देख सकते हैं। मुर्गी, बटेर, कबूतर, तोता, मोर और सारस आसानी से देखे जा सकते हैं। इस स्थान पर प्रवासी पक्षी भी आते हैं।
वैसे तो यह अभ्यारण्य साल भर खुला रहता है लेकिन घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर-अक्टूबर से जून तक है।
सारंगढ़ के गढ़ विच्छेदन उत्सव में हो सकते हैं शामिल
सारंगढ़ में दशहरा के अवसर पर होने वाली गढ़ विच्छेदन की परंपरा बहुत प्रसिद्ध है। जिसमें खुले मैदान में मिट्टी का एक किला बनाया जाता है। इस किले यानी गढ़ में स्थानीय युवा अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं। यह परंपरा गोंड राजाओं के समय से चली आ रही है। तब गढ़ को मिट्टी और गोबर के लेप से एकदम चिकना कर दिया जाता था। गढ़ के ऊपरी हिस्से को महल की तरह सुसज्जित किया जाता था। प्रतिभागियों को कांटेनुमा लोहे के पंजे गाड़कर ऊपर तक पहुंचना होता था। गीली मिटटी के कारण ऐसा करना काफी कठिन होता था। गढ़ के ऊपर कुछ व्यक्ति पहले से मौजूद रहते थे जो डंडे से किले के ऊपर चढ़ने की कोशिश करने वालों पर प्रहार कर उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते थे। फिसलते-सम्हलते जो युवक सबसे पहले ऊपर चढ़कर मिटटी के बने गढ़ को तोड़ देता था उसे राजा नकद राशि देकर पुरस्कृत करते थे। साथ ही ऐसे विजयी बहादुर को सेना में भर्ती किया जाता था। इस परंपरा के निर्वहन के पश्चात ही रियासत में रावण दहन का कार्य सम्पन्न होता था। कुछ परिवर्तनों के साथ यह परम्परा आज भी सारंगढ़ में प्रचलित है।
कैसे पहुँचे
प्लेन से
निकटतम एयरपोर्ट स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर है।
ट्रेन से
निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन रायगढ़ रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग से
राष्ट्रीय राजमार्ग 49, राष्ट्रीय राजमार्ग 130बी और राष्ट्रीय राजमार्ग 153 यहाँ से गुज़रता है।