समाधि पर कार की आकृति!...छत्तीसगढ़ में पूर्वजों की याद में समाधि पर अनोखी कलाकृतियां बनाते हैं गौड़ आदिवासी, जानिए इस परंपरा के बारे में
NPG DESK
छत्तीसगढ़ की बात हो और आदिवासियों की बात न हो, ये असंभव है। आदिवासी अलग ही तरह का जीवन जीते हैं और उनकी परंपराएं भी एकदम हटकर हैं जिनके बारे में जानकर हम हैरान हुए बिना नहीं रह सकते। ऐसी ही एक परंपरा है आदिवासी गौड़ समाज की। धमतरी जिले के गौड़ आदिवासियों में अपने मृत परिजनों की स्मृति में उनकी समाधि पर अनोखी कलाकृति बनाने की परंपरा है। नगरी में भी विशेष आकृति वाली ऐसी समाधियां हैं। यह आकृति कुछ भी हो सकती है, कार, ट्रक, कलश या कुछ भी ऐसा जो उस व्यक्ति की पसंद का हो या उसके व्यक्तित्व या व्यवसाय का आईना हो। अब समय के साथ यह परंपरा कमज़ोर हुई है लेकिन सुदूर वन क्षेत्रों में अभी भी इसके मानने वाले हैं।
आदिवासी इन समाधियों को "मठ" कहते हैं। ऐसे मठ प्रायः खेतों, गांव के बाहर, सड़क किनारे आदि जगहों पर देखे जा सकते हैं। बाहरी लोग जब अचानक ऐसी समाधियां देखते हैं तो चौंक उठते हैं क्योंकि कहीं और ऐसा देखने-सुनने में सामान्यतः नहीं आता है। पता करने पर जो आदिवासी बताते हैं, वो कुछ यूं है...
*इनकी याद में बनता है मठ
गोड़ समाज में माता या पिता अथवा परिवार के शादीशुदा सदस्य की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के बाद मठ बनाया जाता है। जिसे स्थानीय बोली में गुड़ी कहते हैं।
आदिवासी परंपरा के अनुसार या तो मृतक को दफ़नाया जाता है, या फिर जलाया जाता है। दोनों ही स्थितियों में चबूतरानुमा मठ के उपर मृतक के पसंद के वस्तुओं की आकृति बनाई जाती है। आमतौर पर पुरुष मठ में बैलगाड़ी, घोड़ा, हाथी, भाला पकड़े दरबान, जीप, कार, मोटरसायकल और स्कूटर की आकृति बनाई जाती है। महिला मठ में सिर्फ कलश ही बनाने का रिवाज है।
*सम्मान प्रकट करने के लिए अपनाते हैं यह तरीका
आदिवासी बताते हैं कि सालों पहले मृत्यु होने पर एक रेंजर के मठ में उनकी गदा पकड़े हुई मूर्ति बनाई गई। क्योंकि वे बहुत बहादुर थे। इसी तरह ग्राम बरबांधा में 105 वर्षीय दुर्जन कोर्राम की मृत्यु के बाद खेत में उनका मठ बनाकर उसे घर की आकृति दी गई। पिता की मौत पर आमतौर पर मठ में बैलगाड़ी और माता की मौत पर मठ में कलश की आकृति बनाते हैं। इस तरह की आकृति बनाकर मृत परिजनों के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट किया जाता है।
*मठ बनवाने में महिलाओं का है अधिक योगदान
गांव की महिलाएं बताती हैं कि मठ पर कलाकृति बनवाने में परिवार की बहन, बेटियों और महिलाओं का खास योगदान होता है। परिवार की बहन-बेटियां आपस में खर्च वहन कर मठों में आकृतियां बनवाती हैं।ताकि परिजनों की यादें पीढ़ियों तक सलामत रहें और नई पीढ़ी अपनी इस परंपरा को जाने।
*त्योहार में पुताई कर सजावट करते हैं
कांकेर जिले से लगे नगरी के सबसे अंतिम ग्राम कोरमुड़ की एक आदिवासी महिला बताती हैं कि मठ बनाने के बाद परिवार के लोगों का नाता मृत सदस्य से जुड़ा रहता है। त्यौहार और खास अवसरों पर परिवार के सदस्य मठ की साफ- सफाई कर पुताई और रंगरोगन करते हैं। तोरण-पताका भी मठ में लगाए जातें है।
निस्संदेह आदिवासियों की परंपराएं अलग और बहुत रोचक हैं। ये कौतूहल जगाती हैं। और भारत की विविधता के दर्शन भी करवाती हैं।