Begin typing your search above and press return to search.

Rumal Vs Tissue Paper: जानें रूमाल और टिश्यू पेपर का इतिहास, दोनों में से कौन है आपकी सेहत और पर्यावरण के लिए ज्यादा बेहतर ऑप्शन?

आज की तारीख में आपको लगभग हर किसी के पास रुमाल या फिर टिश्यू पेपर दोनों में से कोई एक मिल जाएगा। हमारे देश में रुमाल का इस्तेमाल लंबे समय से होता आया है, लेकिन टिश्यू पेपर का भी चलन पिछले कुछ सालों में बढ़ा है। आज हम आपको बताएंगे कि इन दोनों में से कौन सी चीज आपके और पर्यावरण दोनों के लिए बेहतर है और क्या है दोनों का इतिहास?

Rumal Vs Tissue Paper: जानें रूमाल और टिश्यू पेपर का इतिहास, दोनों में से कौन है आपकी सेहत और पर्यावरण के लिए ज्यादा बेहतर ऑप्शन?
X
By Pragya Prasad

रायपुर, एनपीजी न्यूज। आज की तारीख में आपको लगभग हर किसी के पास रुमाल या फिर टिश्यू पेपर दोनों में से कोई एक मिल जाएगा। हमारे देश में रुमाल का इस्तेमाल लंबे समय से होता आया है, लेकिन टिश्यू पेपर का भी चलन पिछले कुछ सालों में बढ़ा है।

रुमाल या टिश्यू पेपर का इस्तेमाल संभ्रांत लोगों की निशानी भी बन गई है। हालांकि आज हम आपको बताएंगे कि इन दोनों में से कौन सी चीज आपके और पर्यावरण दोनों के लिए बेहतर है। लेकिन इससे पहले जान लेते हैं दोनों के इतिहास के बारे में।


रुमाल का इतिहास

रुमाल का इतिहास रोमन काल से मिलता है। इसका इस्तेमाल लोग चेहरे को पोंछने के लिए हमेशा से करते आए हैं। इतिहासकारों के मुताबिक, फर्स्ट सेंचुरी में रोम के लोग पसीने या नाक-मुंह को पोंछने या फिर चेहरे को ढंकने के लिए रुमाल का इस्तेमाल करते थे। हालांकि उसे रुमाल नहीं बल्कि सुडेरियम के नाम से जाना जाता था। सुडेरियम एक लैटिन नाम है। भारत में भी इस काम के लिए कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है। इसे यहां रुमाल के नाम से जाना जाता है।

सुंदर-सुंदर और अलग-अलग कपड़ों में बनते हैं रुमाल

अमीर वर्गों में रेशम का रुमाल प्रचलित रहा है। वहीं सूती कपड़े का रुमाल आम हो या खास हर वर्ग में लोकप्रिय है। लोग कढ़ाईदार रुमाल, उस पर अपना या अपने किसी प्रिय का नाम, फूल वगैरह डिजाइन भी बनवाकर उसका इस्तेमाल करते हैं। कई लोग गिफ्ट के तौर पर भी रुमाल एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं।


टिश्यू पेपर का इतिहास

टिश्यू पेपर का सबसे पहला ज्ञात उपयोग 6वीं शताब्दी में प्रारंभिक मध्ययुगीन चीन में हुआ था। चीन में कागज का इस्तेमाल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से ही लपेटने और कुशनिंग सामग्री के रूप में किया जाता था। फिलाडेल्फिया की एक टीचर ने 1907 में समकालीन टॉयलेट टिशू पेपर के विकास और वितरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दरअसल उसकी क्लास में कई बच्चों को सर्दी हो गई। ऐसे में सभी बच्चे एक ही सूती तौलिए का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे संक्रमण और फैल रहा था। ये देखकर टीचर ने कागज को चौकोर टुकड़ों में काटकर सभी बच्चों को अलग-अलग दे दिया, इसका इस्तेमाल सबने अलग-अलग किया।


इसके बारे में जानकर स्कॉट पेपर कंपनी के आर्थर स्कॉट ने कागज की पूरी गाड़ी को बेचने का प्रयास करने का फैसला किया। उन्होंने मोटे कागज को तौलिये के आकार की छोटी-छोटी शीटों में काटा और उन्हें डिस्पोजेबल पेपर टॉवल के रूप में बेचने के लिए पेश किया। बाद में उन्होंने उत्पाद का नाम बदलकर सानी-टॉवल रख दिया और इसे सार्वजनिक शौचालयों में उपयोग के लिए लॉजिंग प्रतिष्ठानों, भोजनालयों और रेलवे स्टेशनों पर बेचना शुरू कर दिया।

टिश्यू पेपर को बनाने में इन चीजों का इस्तेमाल होता है-

जंबो पेपर रोल- जंबो पेपर रोल हल्के, पतले कागज के बड़े रोल होते हैं, जिनका उपयोग पेपर गुड्स उत्पादन में किया जाता है।

कोर पेपर- कार्डबोर्ड या पेपर ट्यूब जो रोल के आंतरिक कोर के रूप में काम करते हैं, उन्हें यहां कोर पेपर कहा जाता है। जब टिश्यू पेपर को रोल किया जाता है, तो कोर इसे आकार और स्थिरता देता है।

रैपिंग पेपर- पैकेजिंग और शिपिंग के लिए टिश्यू पेपर को अधिक पेपर में लपेटा जा सकता है।

गोंद- कागज के रेशों को एक साथ बांधने और अधिक मजबूत बनाने के लिए टिश्यू पेपर उत्पादन में अक्सर गोंद का उपयोग किया जाता है।

सेलोफेन- ये पतली, पारदर्शी सेल्यूलोज फिल्म टिश्यू पेपर को चमकदार या सजावटी बनाती है।

पानी- पानी का उपयोग पेपर पल्प को मिलाने और पेपर फाइबर के बंधन को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।

शोध में रुमाल से बेहतर माना गया है टिश्यू पेपर को

जब रूमाल और टिश्यू पेपर दोनों पर शोध किया गया, तो ये बात सामने आई कि डिस्पोजेबल टिश्यू पेपर ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। दरअसल रूमाल धोकर कई बार यूज होते हैं, ऐसे में जब वे गंदे हो जाते हैं, तो उनसे संक्रमण आसानी से फैल सकता है। रूमाल से अपनी नाक, चेहरा, पसीना साफ करने और किसी दूसरी वस्तु को छूने के कारण वायरस फैलने का खतरा रहता है। अगर उसे तुरंत धोने के लिए भी रखा जाए, तो भी हम अपने संक्रमित हाथों का ही इस्तेमाल करते हैं। रूमाल पर बैक्टीरिया ज्यादा लंबे समय तक जिंदा रहते हैं, जबकि हवा के जरिए फैलने वाले बैक्टीरिया टिश्यू पेपर पर इतने लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं।

टिश्यू पेपर डिस्पोजेबल होने से रोकते हैं वायरस को

दूसरा कि टिश्यू पेपर को यूज करने के बाद फेंक दिया जाता है। उसका नष्टीकरण भी आसान होता है। रिसर्च में पता चला है कि रूमाल के जरिए कीटाणु आसानी से शरीर के अंदर दाखिल हो सकते हैं। टिश्यू डिस्पोजेबल होने के चलते वायरस को फैलने से रोकते हैं। इसके बावजूद अगर आप सूती रूमाल का इस्तेमाल करना ही चाहते हैं, तो आप जैविक कपास का यूज करें।

पर्यावरण की दृष्टि से भी टिश्यू पेपर ज्यादा बेहतर

अमेरिकी कंपनी इकोसिस्टम एनालिटिक्स के रिसर्च के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन यानि ग्रीनहाउस गैसों का योग जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, जल वाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड ये सब रूमाल के उत्पादन में ज्यादा होता है। ईको सिस्टम की गुणवत्ता, भूमि और पानी का रासायनिक प्रदूषण, इंसानों में कैंसरजन्य और गैर-कार्सिनोजेनिक विषाक्तता, गैर-नवीकरणीय ऊर्जा और खनिज निष्कर्षण की कुल ऊर्जा आवश्यकताएं सभी रूमाल के उत्पादन में अधिक होता है। एक सूती रूमाल का प्रभाव पर्यावरण पर टिश्यू पेपर की तुलना में 5-7 गुणा अधिक पाया गया।

Pragya Prasad

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव। दूरदर्शन मध्यप्रदेश, ईटीवी न्यूज चैनल, जी 24 घंटे छत्तीसगढ़, आईबीसी 24, न्यूज 24/लल्लूराम डॉट कॉम, ईटीवी भारत, दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद अब नया सफर NPG के साथ।

Read MoreRead Less

Next Story