Mid Day Meal: 'मैं स्कूल जाऊंगा तो खाना देंगे', CM से बच्चे के सवाल पर इस राज्य से शुरू हुई थी योजना, 2021 में मिड डे मील का नाम बदलकर हुआ पीएम पोषण..
मिड डे मील योजना को सबसे पहले 50 के दशक में तमिलनाडु ने अपनाया था। केंद्र सरकार ने 1995 में इस योजना को शुरू किया। साल 2021 में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (PM Poshan Yojna) कर दिया गया।
रायपुर, एनपीजी न्यूज। मिड डे मील योजना को सबसे पहले 50 के दशक में तमिलनाडु ने अपनाया था। केंद्र सरकार ने 1995 में इस योजना को शुरू किया। साल 2021 में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना कर दिया गया। इस योजना के तहत सरकारी और सरकारी सहयता प्राप्त स्कूलों में छात्रों को दोपहर का पोषणयुक्त खाना मुहैया कराया जाता है।
केंद्र सरकार ने 1995 में शुरू की थी मिड डे मील योजना
मध्याह्न भोजन योजना शिक्षा मंत्रालय के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इसकी शुरुआत साल 1995 में की गई थी। ये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है। योजना के तहत पहली कक्षा से 8वीं कक्षा तक के 6 से 14 साल तक के बच्चों को स्कूल में दोपहर का खाना दिया जाता है। ये भोजन ताजा और पका हुआ होता है।
साल 2021 में बदला योजना का नाम
साल 2021 में इसका नाम बदलकर 'प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण' योजना (पीएम पोषण योजना) कर दिया गया और इसमें पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं के बालवाटिका (3–5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे) के बच्चे भी शामिल हैं।
तमिलनाडु में मिड डे मील योजना की ऐसे रखी गई नींव, बाद में केंद्र ने भी अपनाया
1960 का दशक था। तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के चेरनमहादेवी शहर का दौरा करते तत्कालीन मुख्यमंत्री कामराज ने एक बच्चे को मवेशी चराते हुए देखा। उन्होंने उससे कहा कि उसकी उम्र स्कूल में पढ़ने-लिखने की है, तब वो स्कूल छोड़कर मवेशियों को क्यों चरा रहा है। इस पर बच्चे ने कामराज से पूछा कि अगर मैं स्कूल जाऊं तो क्या आप मुझे खाना देंगे। उसने कहा कि मेरा पेट भरा होगा, तभी मां कुछ सीख सकता हूं।
बच्चे की बातों ने मद्रास (अब तमिलनाडु) के तत्कालीन सीएम कामराज को झकझोर दिया
इस बच्चे के शब्दों ने कामराज को बच्चों के लिए स्कूल में खाने की व्यवस्था करने के लिए प्रेरित किया। दरअसल व्यापारी परिवार में जन्मे कामराज को पिता की मौत के बाद काफी संघर्ष करना पड़ा। 11 साल की छोटी उम्र में कामराज को मां का सहयोग करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा। इसलिए उस बच्चे की बात ने उन्हें झकझोर दिया। वे नहीं चाहते थे कि उनकी तरह दूसरे किसी बच्चे को भी मजबूरी में स्कूल छोड़ना पड़े।
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में पहली बार शुरू हुई योजना
इसके बाद 27 मार्च 1955 को मिड डे मील योजना को लेकर एक घोषणा की गई। 17 जुलाई 1956 को तिरुनेलवेली जिले के एट्टायपुरम में मिड डे मील कार्यक्रम शुरू किया गया। 01 नवंबर 1957 से कामराज सरकार ने केंद्र सरकार के वित्त पोषण का उपयोग करके अधिक से अधिक प्राथमिक विद्यालयों को शामिल करने के लिए कार्यक्रम का विस्तार दिया। उस वक्त योजना के तहत कक्षा 01 से 08 तक के लगभग 20 लाख प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को हर साल 200 दिनों के लिए भोजन दिया जाता था। इसमें बच्चे पके हुए चावल और सांभर के साथ छाछ, दही और अचार पाते थे।
तत्कालीन मद्रास में योजना हुई हिट
कामराज की मिड-डे मील योजना बहुत सफल साबित हुई। इससे स्कूल ड्रॉप आउट कम हो गया। एमजी रामचन्द्रन ने 1982 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान इसे और बढ़ाया। बाद में केंद्र सरकार ने इसे अपनाया। ये अब दुनिया का सबसे बड़ा स्कूली बच्चों का आहार कार्यक्रम है, जो 12 लाख स्कूलों में 11 करोड़ बच्चों को भोजन देता है।
मिड डे मील योजना का लक्ष्य
- भूख और कुपोषण समाप्त करना।
- स्कूलों में ड्रॉप आउट यानि बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या घटाना।
- नामांकन और उपस्थिति में बढ़ोतरी करना।
- जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार।
- महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।
गुणवत्ता की जांच इस तरह से की जाती है-
एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन सदस्य भोजन को चखते हैं, तभी बच्चों को ये खाना दिया जाता है।
अगर अनाज की अनुपलब्धता या किसी दूसरे कारण से किसी दिन स्कूल में मिड डे मील नहीं दिया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ते का भुगतान करेगी। राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिए एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।
मिड डे मील योजना के बारे में जानें-
मिड डे मील योजना को 15 अगस्त 1995 में लागू किया गया था। शुरुआती समय में स्कूलों को पके हुए भोजन की जगह राशन दिया जाता है। राजकीय अनुदान प्राप्त प्राथमिक विद्यालय में अगर 80 फीसदी बच्चों की उपस्थिति होती थी, तो छात्रों को हर महीने 3 किलो गेहूं या चावल दिया जाता था।
1 सितंबर 2004 से प्राथमिक स्कूलों में दिया जाने लगा पका हुआ खाना
बाद में योजना में संशोधन किया गया और 1 सितंबर 2004 से प्राथमिक स्कूलों में पका हुआ खाना मुहैया कराया जाने लगा। इससे सरकार स्कूलों में छात्रों की संख्या और उनकी उपस्थिति को बढ़ाना चाहती थी।
साल 2008 में इस योजना में सर्व शिक्षा अभियान समर्थित मदरसों और मकतबों को शामिल किया गया था। साल 2021 में इस योजना का नाम बदल दिया गया। जिसके बाद मिड डे मील योजना को 'प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण' योजना के नाम से जाना गया। योजना में पूर्व प्राथमिक छात्रों यानि तीन से पांच साल तक के बच्चों को भी जगह दी गई।
तमिलनाडु के बाद 1990-91 तक इस कार्यक्रम के तहत राज्यों की संख्या बढ़कर 12 हो गई थी। इस योजना के तहत प्राथमिक स्तर के छात्रों को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन, जबकि उच्च प्राथमिक के लिए 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन वाला पोषणयुक्त भोजन मुहैया कराना है।
मिड डे मील योजना में खर्च इस तरह से बांटा जाता है
मिड डे मील योजना का वहन केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर करती हैं। हालांकि केंद्रशासित प्रदेश, हिमालयी राज्यों, पूर्वोत्तर राज्यों में वहन का अनुपात अलग-अलग है। गैर-पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के साथ विधानसभाओं वाले केंद्रशासित प्रदेशों में वहन का अनुपात 60:40 का है। यानि योजना में खर्च होने वाली 60 फीसदी राशि केंद्र, जबकि 40 परसेंट राशि राज्य देते हैं। केंद्रशासित प्रदेशों का पूरा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है।
इन राज्यों में 90 फीसदी तक खर्च वहन करती है सरकार
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में यह योजना 90 फीसदी तक केंद्र द्वारा वित्तपोषित होती है, जबकि 10 फीसद खर्च राज्य सरकार करती है।
पीएम पोषण योजना (PM Poshan Scheme) के बारे में जानें
- पीएम पोषण अभियान का उद्देश्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करना है।
- महिलाओं और बच्चों की वास्तविक समय वृद्धि की निगरानी और ट्रैकिंग के लिए प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग
- पहले 1000 दिनों के लिए गहन स्वास्थ्य और पोषण सेवाएं
मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) की विशेषताएं
- MDMS को दुनिया का सबसे बड़ा स्कूल फीडिंग प्रोग्राम माना जाता है।
- प्राथमिक स्तर पर हर बच्चे के लिए 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन और उच्च प्राथमिक स्तर पर 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन वाला मध्याह्न भोजन।
- मध्याह्न भोजन योजना केंद्र प्रायोजित योजना है। योजना को लागू करने में शामिल लागत केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा वहन की जाती है।
- केंद्र सरकार सभी राज्यों को मुफ्त अनाज मुहैया कराती है।
- केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकारों के साथ खाना पकाने, खाद्यान्न के परिवहन, बुनियादी ढांचे के विकास और रसोइयों और सहायकों को भुगतान में शामिल लागत को साझा करती है।
- राज्यों द्वारा दिया गया योगदान एक-दूसरे से अलग होता है।
- यह शिक्षा मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित और निगरानी की जाती है।
मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) के लाभार्थी
- सरकारी स्कूल
- सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल
- विशेष प्रशिक्षण केंद्र और
- मदरसे और मकतब जो सर्व शिक्षा अभियान के तहत समर्थित हैं।
- देशभर में वैकल्पिक और अभिनव शिक्षा और राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत चलने वाले स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी शामिल किया गया है।
- गर्मी की छुट्टियों में सूखा प्रभावित क्षेत्रों के प्राथमिक स्कूल के बच्चों को भी इस योजना के तहत भोजन उपलब्ध कराया जाता है।