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Laat Sahab: अंग्रेजों के जमाने में कहा जाता था गवर्नर को 'लाट साहब', जानिए राज्यपाल को मिलने वाली सुविधाएं

अंग्रेजों के समय में सामान्य रूप से गवर्नर या राज्यपाल को 'लाट साहब' कहकर पुकारा जाता था। इनके पास बहुत अधिक शक्तियां और सुविधाएं थीं, जिसकी वजह से इन्हें लाट साहब का संबोधन दिया गया।

Laat Sahab: अंग्रेजों के जमाने में कहा जाता था गवर्नर को लाट साहब, जानिए राज्यपाल को मिलने वाली सुविधाएं
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By Pragya Prasad

रायपुर, एनपीजी न्यूज। अंग्रेजों के समय में सामान्य रूप से गवर्नर या राज्यपाल को 'लाट साहब' कहकर पुकारा जाता था। इनके पास बहुत अधिक शक्तियां और सुविधाएं थीं, जिसकी वजह से इन्हें लाट साहब का संबोधन दिया गया। भारत के गवर्नर जनरल (1833 से 1950 तक, 1858 से 1947 तक भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल जिन्हें आमतौर पर भारत के वायसराय के रूप में जाना जाता है, भारत के सम्राट/महारानी के रूप में यूनाइटेड किंगडम के सम्राट के प्रतिनिधि थे।

यह कार्यालय 1773 में फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल की उपाधि के साथ बनाया गया था। अधिकारी का केवल अपने प्रेसिडेंसी पर सीधा नियंत्रण था, इसके अलावा वो भारत में अन्य ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों की देखरेख करता था। भारतीय उपमहाद्वीप में सभी ब्रिटिश क्षेत्रों पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिए गए थे। गवर्नर जनरल को "भारत के गवर्नर-जनरल" के रूप में जाना जाने लगा।

गवर्नर जनरल के पास थे कई अधिकार

गवर्नर जनरल को 5 साल का कार्यकाल दिया जाता था। एक गवर्नर जनरल अपने कमीशन को रद्द करवा सकता था और अगर किसी को हटा दिया जाता था या छोड़ दिया जाता था, तो कभी-कभी एक अनंतिम गवर्नर जनरल नियुक्त किया जाता था। जब तक कि कार्यालय का नया धारक नहीं चुना जाता। भारत (बंगाल के) में पहला गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स था, ब्रिटिश भारत का पहला आधिकारिक गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक था और भारत के डोमिनियन का पहला गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन था।

गवर्नर जनरल को चुनने का अधिकार कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के पास था

चार्टर एक्ट 1833 ने गवर्नर जनरल और फोर्ट विलियम की परिषद की जगह गवर्नर जनरल और भारत की परिषद को स्थापित किया। गवर्नर जनरल को चुनने का अधिकार कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के पास रहा, लेकिन यह चुनाव भारत बोर्ड के माध्यम से संप्रभु की मंजूरी के अधीन हो गया । 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों को संप्रभु (Sovereign) के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया था। भारत सरकार अधिनियम 1858 ने गवर्नर जनरल को नियुक्त करने की शक्ति संप्रभु को दी। बदले में गवर्नर-जनरल के पास भारत में सभी लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त करने की शक्ति थी, जो संप्रभु की स्वीकृति के अधीन थी।

उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल ने दी थी नसीहत

काफी साल पहले उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल ने कहा था कि राज्यपाल लाट साहब बनकर भारी सिक्योरिटी को अपने लिए स्टेटस सिंबल मानते हैं, जो गलत है। उनका अर्थ था कि राज्यपाल के पास भारी सुरक्षा भी थी। उनकी फ्लीट में कई गाड़ियां होती थीं। वहीं जहां से राज्यपाल की गाड़ियां गुजरती थीं, वहां ट्रैफिक रोक दिया जाता था। पूर्व राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल की सुरक्षा में 120 कर्मी तैनात थे, जिनकी संख्या उन्होंने अपने कार्यकाल में एक तिहाई करवा दी थी।

वर्तमान में राज्यपाल को मिलने वाली सुविधाएं

जब राज्यपाल पद पर होते हैं, तो उन्हें बहुत अच्छा मानदेय मिलता है। उनका वेतन 3.5 लाख रुपए महीना होता है। उन्हें काफी बड़ा सरकारी आवास मिलता है। सेवा के लिए नौकर चाकरों और स्टाफ की फौज होती है। भारत में राष्ट्रपति के बाद राज्यपाल को ही इतनी सुविधाएं मिलती हैं। उन्हें यात्रा भत्ते से लेकर टेलीफोन भत्ता और अपने आवास को सुसज्जित कराने के लिए खासा भत्ता मिलता है।

राज्यपाल होता है राज्य में केंद्र का प्रतिनिधि

राज्यपाल को सैलरी के अलावा इलाज की सुविधा, निवास की सुविधा, यात्रा की सुविधा, फोन कॉल का बिल और बिजली का बिल जैसी कई विशेष सुविधाएं पद पर रहते हुए मिलती है। राज्यपाल राज्य में केंद्र का प्रतिनिधि होता है। वह मुख्यमंत्री द्वारा किए गए कामों की निगरानी करता है। केंद्र को राज्य में होने वाली गतिविधियों से अवगत कराता है।

राज्यपाल के बारे में जानें

  • भारत के संविधान में राज्यपाल का पद अनुच्छेद 153 के तहत उल्लिखित है।
  • राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वह राज्य का मुख्य कार्यकारी होता है।
  • भारत में राज्यपाल राज्य स्तर पर विधायी प्रक्रिया में एक अहम भूमिका निभाता है।
  • राज्यपाल के पास राज्य विधेयकों के अधिनियमन से संबंधित शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं।
  • राज्य के विधेयकों पर राज्यपाल की प्रमुख शक्तियों को भारत के संविधान में अनुच्छेद 200 के तहत रेखांकित किया गया है।

राज्यपाल की शक्तियां

  • जब कोई विधेयक किसी राज्य की विधानसभा ने पारित किया गया है या विधान परिषद वाले राज्य के मामले में राज्य के विधानमंडल के दोनों सदनों ने पारित किया है, तो इसे राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
  • राज्यपाल या तो घोषणा करेगा कि वह विधेयक पर सहमति देता है या वह उस पर सहमति रोकता है या वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये उसे रोकता है।
  • यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है, तो राज्यपाल सहमति के लिये विधेयक प्रस्तुत करने के बाद उसे वापस कर सकता है।
  • जब कोई विधेयक लौटाया जाता है, तो सदन उस पर पुनर्विचार करती है। यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन के साथ या बिना संशोधन के फिर से पारित किया जाता है और राज्यपाल की सहमति के लिये प्रस्तुत किया जाता है, तो राज्यपाल उस पर अपनी सहमति नहीं रोकेंगे।
  • यदि राज्यपाल ने विधेयक को मंज़ूरी नहीं दी है, तो वह इसे राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित रखेगा।
  • यदि कोई विधेयक, राज्यपाल के समक्ष सहमति के लिये प्रस्तुत किए जाने के बाद भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित है, तो राज्यपाल को राष्ट्रपति से प्राप्त निर्देशों के अनुसार काम करना चाहिये।

राज्यपाल की अन्य शक्तियां

  • राज्य विधानमंडल को समन करना और सत्रावसान करना
  • संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल के पास राज्य विधानमंडल के सत्र को समन और स्थगित करने का अधिकार है।
  • राज्यपाल हर सत्र के प्रारंभ में सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा बताते हुए विधानसभा को संबोधित करते हैं।

राज्य विधानसभा का विघटन

संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत यदि कोई पार्टी या गठबंधन सरकार बनाने में सक्षम नहीं है या यदि मुख्यमंत्री विधानसभा के विघटन की सलाह देते हैं, तो राज्यपाल विधान सभा के विघटन की सिफारिश कर सकता है।

इस शक्ति का प्रयोग विशिष्ट परिस्थितियों में किया जाता है।

फ्लोर टेस्ट बुलाने की शक्ति- संविधान के अनुच्छेद 175(2) के तहत सरकार के पास उचित संख्या है या नहीं, यह जांचने के लिये, राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट बुलाने की शक्ति है।

Pragya Prasad

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव। दूरदर्शन मध्यप्रदेश, ईटीवी न्यूज चैनल, जी 24 घंटे छत्तीसगढ़, आईबीसी 24, न्यूज 24/लल्लूराम डॉट कॉम, ईटीवी भारत, दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद अब नया सफर NPG के साथ।

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