कोंडागांव जिला 1 जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया। पहले यह बस्तर जिले का हिस्सा हुआ करता था। कोंडागांव छत्तीसगढ़ के दक्षिण पूर्वी भाग में नारंगी नदी के तट पर स्थित है। कोंडागांव हस्तकला (घड़वा कला) की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। इस शहर को मूर्तियों के शहर और शिल्पगांव के रूप में भी जाना जाता है।नंदी बैल और झिटकू मिताकी शहर की प्रसिद्ध मूर्तियों में से हैं। जिले में 12 मोड़ों वाली रोमांचक केशकाल घाटी को बस्तर का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। इस घाटी को फूलों की घाटी के रूप में भी जाना जाता है। जिले के गढ़धनौरा में लौहयुगीन साक्ष्य मिले हैं। गोंचा महोत्सव और मड़ई महोत्सव यहां बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। यहां की केशकाल घाटी और टाटामारी ईको पर्यटन स्थल पर्यटकों को खासकर लुभाते हैं। कोंडागांव के बारे में अधिक जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी।
जिले का इतिहास
कोंडागांव जिले का इतिहास बहुत प्राचीन है। इस जिले के नामकरण की कहानी बड़ी रोचक है। जिले का प्राचीन नाम कोण्डानार था। बताया जाता है कि इस नगर की स्थापना मरार लोगों ने की थी। दरअसल मरार लोग जिस वाहन से एक मोड़ से गुज़र रहे थे वहां एक कंद की लताएं फैली हुई थीं। उनकी गाड़ी अचानक उन लताओं में फंस गयी। और उन्हे मजबूरी में रात वहीं काटनी पड़ी। बताया जाता है कि मरार लोगों के प्रमुख को एक स्वप्न आया। स्वप्न में देवी ने उन्हें इसी स्थान में बसने का निर्देश दिया। उन्होंने पाया कि उस स्थान की भूमि अत्यंत उपजाऊ है। आखिर देवी के निर्देशानुसार उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया । उस समय इसे कंद की लता के आधार पर कान्दानार कहा जाने लगा जो कालान्तर कोण्डानार बन गया। आगे चलकर बस्तर रियासत के एक अधिकारी ने इस क्षेत्र के लिए कोंडागांव नाम सुझाया और इस तरह इसे अपना वर्तमान नाम मिला। 15 अगस्त 2011 को बस्तर जिले को विभाजित कर इस जिले के गठन की घोषणा की गई और 1 जनवरी 2012 को यह जिला अस्तित्व में आया।
जिले की प्रशासनिक जानकारी
कोंडागांव जिले का क्षेत्रफल 7768. 907 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसँख्या 5,78,326 है। कोंडागांव जिले का मुख्यालय भी है। इसके अंतर्गत 5 तहसील, 5 विकासखंड, 1 नगर पालिका परिषद, 3 नगर पंचायत, 5 जनपद पंचायत और 263 ग्राम पंचायत हैं।
कृषि
धान, मक्का, ज्वार, गन्ना, कोदो-कुटकी जैसी परंपरागत फसलों के साथ कोंडागांव में कुछ नई फसलों का उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, जिनकी आधुनिक समय में अधिक मांग हैं। यहां अल्फांसो आम का उत्पादन हो रहा है। साथ ही एरोमैटिक फसलें जैसे लेमन ग्रास, पामोरोसा, पुदीना, आमदी , खस और तुलसी सहित सुगंधित पौधे उगाए जा रहे हैं। साथ ही पिपली, ड्रैगन फ्रूट, अलसी, काजू, नारियल, लीची और शरीफा आदि भी उगाया जा रहा है।
अर्थव्यवस्था
० कोंडागांव की अर्थव्यवस्था में इसकी हस्तकला का महत्वपूर्ण स्थान है। इन हस्तशिल्प वस्तुओं की दुनिया भर में मांग है।यहाँ की घड़वा और बेल मेटल कला बहुत प्रसिद्ध है। कोंडागांव अपनी इमारती लकड़ी की मिलों के लिए भी प्रसिद्ध है।
० जिले में प्रदेश की पहली मक्का प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की गई है। यहाँ ' सुगंधित फसलों' से सुगंधित तेलों को निकालने के लिए फील्ड डिस्टिलेशन यूनिट स्थापित की गई है। जिसमें सुगंधित तेल का उत्पादन होता है। इनका उपयोग इत्र , साबुन, हैंडवाश, सेनेटाइजर बनाने और मच्छर भगाने के केमिकल बनाने में किया जाता है।
० यहाँ महिलाएं कुकीज़, नाॅन वूलन बैग, स्लीपर, दोना-पत्तल, अगरबत्ती -धूपबत्ती, हल्दी-धनिया पाउडर जैसे सामान बनाकर बेच रही हैं।
० जिले में बाक्साइट के भंडार भी हैं।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
प्रमुख काॅलेज
० गवर्नमेंट गुंडाधुर पीजी काॅलेज
० गवर्नमेंट माॅडल रेसीडेंशियल गर्ल्स कालेज
० कोंडागांव कॉलेज ऑफ नर्सिंग
० शासकीय आईटीआई
प्रमुख स्कूल
० जवाहर नवोदय विद्यालय
० एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय
० केंद्रीय विद्यालय
० आत्मानंद स्कूल
० डीएवी मुख्यमंत्री पब्लिक स्कूल
० गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल
० चावरा हायर सेकंडरी स्कूल आदि
प्रमुख पर्यटन स्थल
केशकाल घाटी
कोण्डागॉव जिले की 12 मोड़ों वाली रोमांचक और हरी-भरी केशकाल घाटी बेहद सुंदर है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर कोण्डागॉव और कांकेर के बीच पड़ती है। इसे तेलिन घाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस घाटी के मध्य से गुजरने वाला 4 कि.मी. के राजमार्ग तथा हेयरपिन पेटर्न के खतरनाक मोड़ों से होकर गुजरना किसी एडवेंचर से कम नहीं है।
टाटामारी पर्यटन स्थल
छत्तीसगढ़ टूरिज्म विभाग के द्वारा बहुत ही आकर्षक तरीके से तैयार किया गया है टाटामारी पर्यटन स्थल। यहाँ पर्यटन के साथ रोमांचकारी खेलों जैसे राॅक क्लाइम्बिंग, आर्चरी , पैरा सेलिंग आदि को जोड़कर ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए ट्रैकिंग रूट भी तैयार किया गया है। आप यहां पर कैपिंग और नाइट स्टे कर सकते हैं।
साथ ही यहां पर अर्धनारीश्वर भगवान शिव के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
जटायु शिला
यह कोंडागांव का एक लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है। यहाँ पहाड़ी के ऊपर बड़ी-बड़ी शिलाएं हैं।कहा जाता है कि इसी स्थान पर रामायण काल में सीता जी के हरण के दौरान रावण एवं जटायु के बीच संघर्ष हुआ था। यहाँ वाॅच टावर है जिससे आसपास के मनोहरी प्राकृतिक दृश्य देखे जा सकते हैं l
बड़ेडोंगर का दंतेश्वरी मंदिर
यहां मंदिर कोंडागांव जिले में फरसगांव के बड़े डोंगर गांव में स्थित है जो जिले का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। माता के पूजन के साथ यहां सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा भी किया जा सकता है।
कोपाबेड़ा शिव मंदिर
कोपाबेड़ा स्थित शिव मंदिर कोण्डागॉव से 4.5 कि.मी. दूर नांरगी नदी के किनारे स्थित है।यह मंदिर मुख्य कोंडागांव से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर को महाकालेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि के समय यहां विशाल मेला लगता है।
गढ़धनोरा
कोंडागांव जिले की केशकाल तहसील में स्थित है ऐतिहासिक – धार्मिक स्थल गढ़धनोरा। गढ़ धनोरा को कर्ण की राजधानी कहा जाता है। गढ़ धनोरा में 5-6वीं सदी के प्राचीन मंदिर, विष्णु एंव अन्य मूर्तियां व बावड़ी प्राप्त हुई है। यहां अनेक शिव मंदिर भी मिले हैं।
कैसे पहुँचे
प्लेन से
कोण्डागांव के समीप जगदलपुर एयरपोर्ट है जो कोण्डागांव से लगभग 80 कि.मी. की दूरी पर है। स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर, कोण्डागांव से लगभग 220 कि.मी.
दूर है।
ट्रेन से
निकटतम रेलवे स्टेशन जगदलपुर रेलवे स्टेशन कोंडागांव से करीब 70 किलोमीटर दूर है। वहीं दुर्ग स्टेशन 212 किलोमीटर दूर और रायपुर स्टेशन 242 किमी दूर है।
सड़क मार्ग से
NH 130 D जिले से होकर गुजरता है। कोंडागांव कांकेर, जगदलपुर और रायपुर जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है