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कबीरधाम जिला छत्तीसगढ़ के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश का सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र होकर भी हरा-भरा है और अच्छी फसल प्राप्त करता है। प्रदेश का पहला शक्कर कारखाना 'भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना' यहीं स्थापित किया गया था। प्रदेश का पहला एथेनॉल प्लांट भी यहीं लगाया जाने वाला है। यहाँ भोरमदेव, मड़वा महल और छेरकी महल जैसे राज्य संरक्षित स्मारक हैं जिनमें से भोरमदेव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। अपनी उत्कृष्ट कारीगरी के कारण इसे 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' कहा जाता है।बदरगढ़ यहां की सबसे ऊंची (1176 मीटर) चोटी है। अगरिया, बैगा और गोंड़ यहां की प्रमुख जनजातियां हैं। संकरी नदी का उद्गम स्थल यहां भोरमदेव अभ्यारण्य के भीतर देखा जा सकता है।
इतिहास
यह जगह 9वीं सदी से 14 वीं शताब्दी तक नागवंशी राजाओं की राजधानी थी। उसके बाद यह क्षेत्र हैह्यवंशी राजाओं के नियंत्रण में आया। पुरातात्विक अवशेष इन तथ्यों की पुष्टि करते हैं।
कवर्धा 14 देशी रियासतों में से एक था।कवर्धा शहर की स्थापना कवर्धा रियासत के पहले जमींदार महाबली सिंह ने 1751 में की थी। इसके बाद क्रमशः यह तहसील अलग-अलग जिलों में शामिल की गई। 1895 में यह मंडला जिले की तहसील बन गई। 1903 में इसे बिलासपुर जिले में शामिल किया गया। 1912 में इसे रायपुर जिले में स्थानांतरित कर दिया गया और 1948 में यह दुर्ग जिले का हिस्सा बन गया। 26 जनवरी, 1973 को राजनांदगांव अस्तित्व में आया और यह इसका एक हिस्सा बन गया। मध्य प्रदेश शासन के दौरान 6 जुलाई 1998 से स्वतंत्र कवर्धा जिला अस्तित्व में आया। जनवरी 2003 को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ में संत कबीर के आगमन की स्मृति और कबीर पंथ के गुरु धानी धर्म दास के जन्म उत्सव के अवसर पर जिले का नाम कवर्धा से कबीरधाम में परिवर्तित करवाया।
प्रशासनिक जानकारी
कबीरधाम जिले का क्षेत्रफल 4447.05 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 8,22,526 है। जिले का मुख्यालय कवर्धा है। इसके अंतर्गत 5 तहसील, 4 विकासखंड, 1 नगर पालिका परिषद, 5 नगर पंचायत, 371 ग्राम पंचायत और 1011 गांव हैं।
कृषि
मैकल पर्वत श्रेणी के वृष्टि छाया प्रदेश में आने के कारण इस क्षेत्र में बारिश कम होती है। लेकिन सिंचाई की बेहतर सुविधा विकसित होने से यहां के किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर लेते हैं। यहां की प्रमुख फसलें गेंहूं, धान,गन्ना, अरहर, सोयाबीन, चना आदि हैं।
अर्थव्यवस्था
जिला गन्ने का अच्छा उत्पादन प्राप्त करता है। इसलिए यहां शक्कर कारखाने खोलने के लिए अनुकूल माहौल बना।प्रदेश का पहला शक्कर कारखाना 'भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना' यहीं स्थापित किया गया था। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल शक्कर कारखाना भी यहां है। प्रदेश का पहला एथेनॉल प्लांट भी यहीं लगाया जाने वाला है।
इसके अलावा जिले में बॉक्साइट, लौहअयस्क, चूना पत्थर और सोपस्टोन भी पाया जाता है।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
जिले के प्रमुख शिक्षण संस्थान ये हैं-
काॅलेज
शासकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय , कवर्धा
आचार्य पंथ श्री गृन्ध मुनी नाम साहेब शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
मात्स्यिकी महाविद्यालय
गवर्नमेंट नर्सिंग कॉलेज
संत कबीर कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च
भोरमदेव कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर
गवर्नमेंट राजमाता विजया राजे सिंधिया गर्ल्स कॉलेज आदि
प्रमुख स्कूल
आदर्श कन्या हायर सेकंडरी स्कूल
स्वामी करपात्री जी हायर सेकंडरी स्कूल
शासकीय आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल
शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
डीपीएस
अभ्युदय स्कूल
जवाहर नवोदय विद्यालय
गुरुकुल पब्लिक स्कूल
अशोका पब्लिक स्कूल
प्रमुख पर्यटन स्थल
भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में स्थित है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। मंदिर नागर शैली में बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव , शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा। मंदिर के गर्भगृह में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हैं तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है।
भोरमदेव मंदिर को जिस नफ़ासत से बनाया गया है, वही इसे खास बनाता है। संपूर्ण मंदिर में सुंदर कारीगरी की गई है। मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया काला चमकदार पत्थर इसकी आभा में और वृद्धि करता है।इसकी बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा वाली मूर्तियाँ हैं। इन्हीं मूर्तियों की वजह से भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।वहीं इसकी बेजोड़ स्थापत्य कला के कारण उड़ीसा के सूर्य मंदिर से भी इसकी तुलना की जाती है।
छेरकी महल
चौरग्राम ( चोरगाँव ) के निकट ईंट-पत्थर से बना एक मंदिर है , जो छेरकी महल के नाम से प्रसिद्ध है । इस मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है।इस मंदिर के पास एक भी बकरी नहीं है तब भी आप मंदिर के गर्भगृह में बकरी के शरीर से निकलने वाली गंध का अनुभव करते हैं । यही इस मन्दिर की विशेषता है । इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। स्थानीय बोली में बकरी को 'छेरी' कहा जाता है इसलिए यह मान्यता है कि यह मंदिर बकरी चराने वालों को समर्पित है।
मंडवा महल
भोरमदेव से एक किमी दूरी पर चौरग्राम के समीप ही आयताकार पत्थरों से बना मंडवा महल है ।यह सुंदर ऐतिहासिक स्मारक है। मंडवा महल को दूल्हादेव भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि नागवंशी राजा ने हैह्यवंशी राजकुमारी से यहां विवाह किया था। इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र देव द्वारा सन 1349 में कराया गया था।
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य कवर्धा
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य कवर्धा जिले में स्थित एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह अभ्यारण्य 352 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। मैकल पर्वत श्रृंखला के बेहद खूबसूरत नज़ारे यहां से देखे जा सकते हैं। यह कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार रिजर्व के बीच एक काॅरीडोर की तरह है।यहाँ बाघ. तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली कुत्ता, भेड़िया, लोमड़ी, नीलगाय, सांभर, गौर, नेवला, बंदर आदि जानवर पाए जाते हैं। साल, सागौन और मिश्रित वन वाले इस अभ्यारण्य के भीतर ही संकरी नदी का उद्गम है।
चिल्फी घाटी कवर्धा
चिल्फी घाटी कवर्धा जिले से करीब 26 किमी दूर एक बेहद घुमावदार घाटी है। लोग एक रोमांचक यात्रा के साथ छत्तीसगढ़ के छोटे से लोकल हिल स्टेशन का आनंद लेने यहां आते हैं। बेहद खूबसूरत दृश्यावली से संपन्न चिल्फी घाटी को 'मैकल पर्वत की रानी' कहा जाता है, जो स्वयं इसके सौंदर्य का परिचायक है।
सरोदा जलाशय
यह कवर्धा से करीब 7 किमी दूर है। उतानी नाला को बांधकर इस विशाल जलाशय का निर्माण 1963 में किया गया था। चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा यह एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है।
कैसे पहुँचे
प्लेन से
कबीरधाम से निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा स्वामी विवेकानंद , रायपुर (135 किमी) है।
रेल मार्ग
कबीरधाम के करीब रायपुर और बिलासपुर दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं। जो देश के विभिन्न शहरों से भली-भांति जुड़े हुए हैं।
सड़क मार्ग
राष्ट्रीय राजमार्ग 12ए कबीरधाम जिले को रायपुर जिले से जोड़ता है। विभिन्न शहरों से कबीरधाम सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है।