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सन 1942 में भारत के उतराखंड के रूप्खंड में एक अनोखी झील मिली | समुदर तल से 16000 फूट नीचे एक छोटी सी घाटी में जब बर्फ पिघलने लगी तो इसमें से निकालने वाले 200 मानव कंकालो को देखकर सब सहम गये | इन मानव कंकालो को सबसे पहले एक ब्रिटिश फारेस्ट गार्ड ने देखा |
लोगो का मानना था की ये उन जापानी सैनिको के नर कंकाल थे जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उस रस्ते से गुजर रहे होंगे | लेकिन बाद में वैज्ञानिको ने पाया ये नरकंकाल 850 इसवी के हैं जो वहां पर रहने वाले आस पास के लोगो के हैं |
बहुत से लोगो का मानना है की वहां के लोगो ने अन्धविश्वास के कारण आत्म हत्या की | जबकि वैज्ञानिको के अनुसार उन सबकी मौत उनके सर पर बर्फ गिरने के कारण हुई होगी | आज भी गर्मियों में बर्फ पिघलने पर उन नरकंकालो को देखा जा सकता है |
लेक अंजिकुनि, नुनावट कनाडा –
क्या किसी गाँव के सभी लोग अविश्वसनीय तरीके से बिना कोई निशान छोड़े गायब हो सकते हैं | हाँ हो सकते हैं क्यूंकि ऐसा ही एक वाकया 1930 में कनाडा में हुआ था | इस गाँव में अक्सर जाने वाला एक व्यक्ति जोए सन 1930 में एक दिन जब इस गाँव में गया तो उसे वहां कोई भी नहीं मिला |
जब उसने सभी घरो को देखा तो उसने पाया की खाना, लोगो के कपडे अपनी जगहों पर हैं और उनकी बंदूके भी वहीँ पर पड़ी हैं | ना ही उसने बर्फ पर उनके वहां से जाने के कोई निशान देखे |
तब उसने तुरंत पास की किसी जगह से पुलिस को वहां बुलाया | पुलिस ने पुरे गाँव में लोगो को ढूंडा लेकिन जो पुलिस को मिला वो डराने वाला था गाँव के कब्रिस्तान में सारी कब्रे खाली थी |
उससे थोड़ी दुरी पर कुछ कुत्ते बर्फ में दबे हुए मिले | बहुत से लोगो का मानना था की जोए उस जगह पर पहले कभी नहीं गया था |
जबकि बहुत से लोग इसे किसी परग्रह के लोगो का काम मानते हैं जो उन लोगो को अपने साथ ले गये | लेकिन एक पूरा गाँव अपना जरूरी सामान और बंदूके छोड़कर किस तरह से गायब हो सकता था इस सवाल का सही जवाब आज तक कोई भी नहीं दे पाया |
डेथ वैली, कैलिफ़ोर्निया अमेरिका –
कैलिफ़ोर्निया के डेथ वेली में अपने आप फिसलने वाले पत्थर 70 सालो से साइंटिस्ट्स को परेशान किये हुए थे | उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह डेथ वेली नेशनल पार्क के रेसट्रैक पलाया में पत्थर अपने आप फिसल रहे थे | प्लाया एक सुखी नदी के तल को कहते हैं |
ये पत्थर अपने आप इस तल पर चल रहे थे और साथ में अपने पीछे निशान छोड़ते जा रहे थे | बहुत से पत्थर समान्तर चलते थे और कुछ तो बड़े ही तीखे मोड़ लेते हुए चलते थे | लेकिन साइंटिस्ट्स को समझ नहीं आ रहा था की 300 किलो वजन तक के ये पत्थर अपने आप कैसे चल सकते हैं |
आश्चर्य की बात ये भी थी कि उन पत्थर ओ के साथ किसी और इन्सान या जानवर के पैरो के निशान कभी नहीं पाए गया | साइंटिस्ट्स के लिए वहां रह कर उन पत्थर ओ के चलने के रहस्य का पता लगाना मुश्किल था क्यूंकि पत्थर 10-10 साल तक बिना हिले भी पड़े रहते थे |
इसलिए इसका पता लगाने के लिए साइंटिस्ट्स ने वहां 15 जीपीएस लगे हुए पत्थर रखे | उनके इस एक्सपेरिमेंट के बाद उन्हें पता चला की पत्थर का चलना बहुत से क्रियाओं के होने के कारण होता है |
जैसे की सबसे पहले प्लाया पानी से भर जाता था जिससे पत्थर इस पर तेरने लगते थे और रात के समय ठण्ड बढ़ने से इस पर बर्फ की शीट बन जाती है जो की आसनी से चल सकती है | जब धुप निकलने पर बर्फ पिगलती है तो ये हवा के बहाव से पत्थर ओ को अपने आप चला देती है | इस तरह से डेथ वेल्ली के इस रहस्य को सोल्व किया गया |
डोर टू हेल, तुर्कमेनिस्तान –
तुर्कमेनिस्तान के दर्वेज़ गाँव में ये एक 230 फूट चौड़ा आग का कुआँ है | कैसा हो जब आप कभी जमीन खोद रहे हो और एक गलती से आप एक ऐसा आग का दरवाजा खोल दे जो कभी बंद न हो सके | ऐसा ही हुआ था इस गाँव में |
सन 1971 में सोवियत के कुछ वैज्ञानिको ने प्राकर्तिक गैस की तलाश में इस गाँव में जमीन खोदने का काम शुरू किया था | लेकिन अचानक वहां से मीथेन गैस का रिसाव होने लगा तब वैज्ञानिको ने सोचा की वहां आग लगाने से कुछ ही देर में गैस खत्म हो जाएगी लेकिन आज 45 सालो के बाद भी वहां की आग नहीं बुझ पाई है |
आग के ये विशाल कुआँ आज हजारो लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र बन हुआ है | वहां की सरकार ने इसे बंद करने का प्रयास किया लेकिन नहीं कर पाई आज भी वहां पर आग वैसे ही जल रही है इसलिए इसे नरक का दरवाज़ा भी कहा जाने लगा है | ( साभार: क्वोराडॉटकॉम )