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स्त्री में प्यार करने और प्यार पाने की भूख जबरदस्त होती है, पढ़िए मारिया ने ना, ना...करने के बाद भी...

स्त्री में प्यार करने और प्यार पाने की भूख जबरदस्त होती है, पढ़िए मारिया ने ना, ना...करने के बाद भी...
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By NPG News

©️ दिव्या सिंह

"दीदी, उठिए... तबीयत ठीक है ना। कितनी बार अलार्म बजा। आप फिर भी नहीं उठीं? आज स्कूल नहीं जाना क्या?

" जाऊँगी बेटा, तू काफ़ी बना, मैं अभी आई, कहकर मारिया बिस्तर पर उठ कर बैठ गई। प्रोस्थेटिक लैग पास खींचा, कसा और वाॅशरुम की ओर बढ़ गई।ठंडी के मौसम में सुबह छह बजे भी अंधेरा सा ही था।

" दीदी काॅफ़ी"

" ला रख दे"

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई,..." इतनी सुबह कौन होगा,देख तो शांता बाहर जाकर"

"... दीदी दरवाज़े पर तो कोई नहीं है... बस ये लाल गुलाब छोड़ गया कोई... हैरान शांता ने कहा।

... लाल गुलाब....? अब हैरान होने की बारी मारिया की थी। उसने ठिठक कर गुलाब को दो पल देखा फिर काॅर्नर टेबल पर रख स्कूल जाने की तैयारी में जुट गई। जाते वक्त एक नज़र गुलाब को देखा और घर से बाहर चली गई। पांच मिनट बाद ही स्कूल की बस आ गई।

अगली सुबह फ़िर छह बजे,घर की घंटी भी फिर बजी। मारिया और शांता ने एक दूसरे को देखा। शांता बाहर गई और एक लाल गुलाब हाथ में लिए वापस आई। मारिया ने न जाने क्यों पर कल का गुलाब हटाया, नया रखा, ठहर कर देखा और स्कूल चली गई। रास्ता गुलाब के ही बारे में सोचते ही कटा।

अगली सुबह...छह बजने से पहले ही मारिया दरवाज़े के पास डट गई। जैसे ही घंटी बजी उसने तपाक से दरवाज़ा खोल दिया। एक बच्चा सामने खड़ा था। अचानक दरवाज़े के खुल जाने से घबराया बालक फ़ौरन बोल पड़ा.... माफ़ करना दीदी, ये गुलाब मैंने खुद नहीं रखा , एक भैया के बोलने पर रखा है। मैंने तो बस दस रुपये लिए हैं इस काम के। "

मारिया उसकी घबराहट देख मुस्कुरा दी। बोली, बेटा ये अच्छा काम नहीं है। कौन से भैया के कहने पर तुम ये गुलाब यहां छोड़ जाते हो?

" उन्हें मैं नहीं पहचानता दीदी "

"कोई बात नहीं, कल से मत आना।"

" ... जी दीदी"

मारिया मन में सवाल लिए अंदर आ गई। अगले दिन छह बजे जब घंटी नहीं बजी तो वह निश्चिंत हो गई। पर पंद्रह मिनट बाद घंटी बजी... मारिया के चेहरे पर तनाव उभर आया। शांता बाहर गई और लाल गुलाब लिए वापस लौट आई। आज उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी पर मारिया का चिढ़ा हुआ चेहरा देखकर वह चुपचाप मारिया का लंच बाॅक्स तैयार करने में जुट गई।

.. अगले दिन गुलाब के साथ एक ख़त भी था। मारिया ने धड़कते दिल से चिट्ठी खोली....कैसी हो मारिया?

... बस..? इतना ही? कौन है ये?

सारा दिन वह ख़त आँखों के सामने नाचता रहा। है कौन आखिर ये? रात में मारिया ने जवाब लिखा " आप मेरा नाम जानते हैं, ये तो मैंने जाना। बाकी कुछ न जानते हों तो मैं बता दूँ कि मैं एक 32 साल की अकेले रह रही महिला हूँ। एक पैर से अशक्त हूँ और आपकी ये ओछी हरकतें मुझे अच्छी नहीं लग रहीं हैं। कृपया ये सब बंद करें और मुझे शांति से अपनी ज़िन्दगी जीने दें।

अगली सुबह पौने छह पर ही मारिया ने ख़त बाहर रखवा दिया। और सोचने लगी कि अब मामला खत्म हुआ। हालांकि उसका मन वहीं लगा था। 6:20 पर घंटी बजी। गुलाब के साथ फिर ख़त था।... आप सोचेंगी मुझे आपका नाम कैसे पता। मैने आस पड़ोस से नहीं पूछा है बल्कि मेट्रिमोनिअल के माध्यम से आप तक पहुंचा हूँ।दरअसल मैं आपके घर हो आया हूँ। आपकी माँ को मैं पसंद भी आ गया हूँ। उन्हीं से आपके इस शहर के घर का पता मिला। क्या आप मुझसे मिलना चाहेंगी?

"मेट्रिमोनिअल....माँ ने हद कर दी। कितनी बार समझाया। वे आज तक अपने मन की करने से बाज़ नहीं आईं।" ख़त लिखा.... जी नहीं, मैं आपसे मिलना नहीं चाहती। इस किस्से को यहीं खत्म कर दीजिए।"

लेकिन ख़त और गुलाब फिर भी आया।" चूंकि आपने बड़ी साफ़गोई से अपने हालात बयां कर दिए तो मैं भी आपको बताना चाहता हूँ कि मैं उम्र में आपसे बड़ा ही हूँ। कुछ साल पहले तक मैंने काफ़ी गलतियाँ की। बिगड़ा हुआ कह लीजिए। हालांकि कोई क्रिमिनल नहीं हूँ, रिकार्ड साफ-सुथरा है मेरा। पर अब सब कुछ ठीक करना चाहता हूँ, ठहराव चाहता हूँ, एक समझदार जीवनसाथी चाहता हूँ। आपके संघर्ष से प्रभावित हूँ। क्या आप मुझसे मिलना चाहेंगी"

" जी नहीं, धन्यवाद। आप वैवाहिकी पढ़ते रहिए। आपकी खोज ज़रूर सफल होगी"

ख़त पढ़ने के दो दिन बाद ना घंटी बजी, ना गुलाब आया ना ख़त। मारिया का मन भी उचटा सा ही रहा। तीसरे दिन घंटी भी बजी, गुलाब भी आया और ख़त भी, वो भी तीन-तीन।" खूब झुठलाने के बाद भी सच ही मारिया का मन खिल गया

"... तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। इसलिए कुछ विलंब हुआ। मौसम ही कुछ गड़बड़ है, आप तो ठीक हैं ना?

अपना ख्याल रखिएगा और यदि मन बन जाए तो मिलने का दिन तय करके बताइयेगा। मैं यहीं हूँ, आपके आसपास....।"

मारिया खुद को कितना रोकती।प्यार पाने और प्यार करने दोनों की ही भूख ज़बरदस्त होती है। ये सबकुछ प्रकृति का ही खेल है। आखिरकार वह पिघल ही गई।" ठीक है, शादी के लिए तो नहीं, पर एक बार आपको देखने के लिए आपसे ज़रूर मिलूँगी। शाम को घर आइए। "

घंटी बजी। मारिया का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। उसने एक बार शीशे में खुद को देखा। बालों को व्यवस्थित किया और युवतियों की-सी इस हरकत पे शर्मिंदा भी हुई। फिर जाकर दरवाज़ा खोला... सामने जो शख़्स नज़र आया, उसे देखते ही मारिया का चेहरा कड़वाहट से तन गया।" तुम...? मुझे अपाहिज करके मेरी हंसती-खेलती ज़िन्दगी बर्बाद कर दी और अब संवेदना का नाटक करके प्यार जताने आए हो। निकलो यहाँ से, अभी के अभी निकलो। "

"देखो मारिया, वो एक्सीडेंट मेरी तेज़ रफ्तार के कारण गलती से हुआ। मौके से मैं भाग गया, ये मेरी दूसरी गलती और पापा ने जैसे पैसे दम पय तुम्हारी आवाज़ दबाई, वो उनका गुनाह। पर अब मैं बदल गया हूँ, काफ़ी सुधर गया हूँ। पश्चाताप करना चाहता हूँ। हम दोनों की ज़िन्दगी उसी मोड़ पर ठहर गई है। आओ बाहर निकलो, तोड़ो इस ठहराव को। हम मिलकर कुछ खुशियां जुटाने की कोशिश करेंगे। जीवन कुछ तो बदलेगा। अभी तुम गुस्से में हो। मैं जाता हूँ। हो सके तो सोचना मेरे बारे में।"

" चले जाओ इसी वक्त... तुम्हारी वो धृष्टता भरी मुस्कान मैं आज तक नहीं भूली जो बेहोश होने से पहले मैंने तुम्हारे इस चेहरे पर देखी थी। तुमने सोचा भी कैसे कि मैं तुम्हारे बारे में कभी विचार करूंगी।"

"मैं भी तुम्हारी वो दर्द और नफ़रत से भरी आँखें नहीं भूला। क्या तुम पुराना सब भुला नहीं सकतीं। "

" चले जाओ, अब कभी मत आना। "

मारिया अंदय आ गई और तेज़ आवाज़ के साथ उसने विपिन के मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर भी अगले दिन घंटी बजी और महीनों बिना नागा बजती ही रही। लाल गुलाब आते रहे। और बिना किसी उम्मीद के एकतरफा ख़त भी।

आखिर कब तक मारिया खुद को रोकती।औरत का दिल भला कब इतना सख़्त हो पाया है! न चाहते हुए भी इंतज़ार तो उसे भी रहने ही लगा था। एक दिन एकांत में खूब सारा रो लेने के बाद उसने खुद को हल्का पाया और मन को ताज़ा। अपने मन की नफ़रत को दरकिनार कर उसने उस प्यार को स्वीकार किया जिसका अनुभव ज़िन्दगी में पहली बार इन कुछ महीनों में उसने किया था।... आज उसने भी एक ख़त लिख दरवाज़े पर छोड़ दिया।

शाम को दरवाजे की घंटी बजी। लाल गुलाबों का एक गलीचा-सा मारिया ने अपने दरवाज़े पर बिछा पाया। हैरान मारिया की आँखों से आँसू बह निकले। अगले ही पल वह विपिन की सशक्त बाहों में थी।

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