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दुनिया का पहला कौशल्या माता मंदिर छत्तीसगढ़ में, गोद में हैं भगवान श्रीराम

दुनिया का पहला कौशल्या माता मंदिर छत्तीसगढ़ में, गोद में हैं भगवान श्रीराम
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By NPG News

NPG DESK

माता यशोदा के साथ बाल गोपाल की अठखेलियाँ करती छवि तो ज़िक्र होते ही आप के मन में तैर जाएगी पर क्या आपने बालक श्री राम को उनकी माता कौशल्या की गोद में किसी मूर्ति में देखा है? नहीं न! तो ऐसे दुर्लभ दर्शन आपको कौशल्या माता मंदिर में होंगे। दुनिया का इकलौता कौशल्या माता मंदिर रायपुर के नज़दीक आरंग विकासखंड के चंद्रखुरी गांव में स्थित है। इस गांव में जलसेन तालाब के बीच माता कौशल्या का एक बेहद ही पुराना मंदिर बना हुआ है। अब इस मंदिर का कायाकल्प हो चुका है और ये धार्मिक, ऐतिहासिक धरोहर के साथ मनोरम दर्शनीय स्थल में तब्दील हो चुका है।

दरअसल माता कौशल्या का मायका कौसल प्रदेश (वर्तमान छत्तीसगढ़) में ही था और चंद्रखुरी उनका जन्म स्थल। इसलिए माता कौशल्या को समर्पित यह मंदिर, क्षेत्र के उनके प्रति प्रेम का द्योतक है जहां आप बालक श्री राम को उनकी गोद में देखने का सुख भी भोग सकते हैं। क्योंकि स्वाभाविक है कि श्री राम के लिए यह उनका ननिहाल है। फिर ननिहाल में नौनिहाल का आगमन न हो, दुलार न हो, ये भला संभव है!

हम छत्तीसगढ़ वासियों के लिए ये कितने गर्व की बात है कि प्रभु श्री राम की माता इस पावन भूमि की पुत्री थीं। तो आइए इस स्टोरी के साथ आगे बढ़ते हुए माता कौशल्या और इस अनोखे मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं

रामायण में कौशल्या का किरदार

रामायण में कौशल्या एक ऐसी स्त्री हैं जो स्वभाव से मृदु, मधुर, मातृत्वभाव, धैर्यवान व कर्तव्यनिष्ठ थी। उन्हें भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम की माता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आरम्भ से ही कौशल्या जी धार्मिक थीं। वे निरन्तर भगवान की पूजा करती थीं, अनेक व्रत रखती थीं और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं। माता कौशल्या ने कभी भी राम तथा भरत में भेद नहीं किया। पुराणों में कश्यप और अदिति के दशरथ और कौशल्या के रूप में अवतार भी माना गया।

कैसे हुआ कौशल्या-दशरथ विवाह

ये तो सभी जानते हैं कि माता कौशल्या अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी और प्रभु श्री राम की माता थीं। विस्तार में जाएं तो बाल्मीकि रामायण के अनुसार जब अयोध्या में युवराज दशरथ का अभिषेक होने जा रहा था तब उस अवसर पर कौसल नरेश भानुमंत को भी आमंत्रित किया गया था। भानुमंत इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए अपनी पुत्री भानुमति के साथ आए। युवराज दशरथ को राजकुमारी भानुमति बहुत पसंद आईं। उन्होंने भानुमति से विवाह की इच्छा जाहिर की। तदुपरांत कौसल की राजकुमारी, दशरथ की रानी बन अयोध्या आ गईं। विवाह के बाद कौसल की राजदुहिता होने के कारण उन्हें कौशल्या नाम से पुकारा जाने लगा, जो आगे चलकर प्रभु श्री राम की माता बनीं।

भगवान विष्णु के अवतार राम के जन्म से जुड़ा प्रसंग

पुराणों में कहा गया है कि प्राचीन काल में मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था आने पर घोर तपस्या की। दोनों एक पैर पर खड़े रहकर 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वर माँगने को कहा। मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही- "प्रभु! हम दोनों की इच्छा है कि किसी जन्म में आप हमारे पुत्र रूप में जन्म लें।" 'ऐसा ही होगा वत्स' कहकर भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- त्रेतायुग में मेरा सातवां अवतार राम के रूप में होगा। "त्रेता युग में तुम अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारी पत्नी शतरूपा तुम्हारी पटरानी कौशल्या होगी। तब मैं दुष्ट रावण का संहार करने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लूँगा।"

तो अब वापस आते हैं "कौशल्या माता मंदिर" पर और जानते हैं इसके बारे में...

कैसा है "कौशल्या माता मंदिर"

रायपुर से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चंद्रखुरी भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली है।चंद्रखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच माता कौशल्या का एक बेहद ही पुराना व एकमात्र मंदिर बना हुआ है।इस मंदिर में भगवान राम अपनी मां कौशल्या की गोद मे विराजित हैं।करीब 15 करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार करवाया गया है। यहां भगवान राम की 51 फीट ऊंची प्रतिमा भी बनाई गई है।

जलसेन तालाब 16 एकड में स्थित है। जनश्रुति है कि इसके आस-पास कोई 126 तालाब थे। अभी 25 तालाब ही शेष बचे हैं। तो क्षेत्र के इसी सबसे बड़े और लबालब भरे जलसेन तालाब में कमल पुष्पों के बीच एक सुंदर पुल बनाया गया है जिसे हनुमान पुल कहा जाता है। इस पुल के ऊपर राम भक्त हनुमान की प्रतिमा भी है। पुल को पार कर आप कौशल्या माता मंदिर पहुंचेंगे।

कब बनाया गया मंदिर?

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में सोमवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि एक रात माता कौशल्या यहां के शासक के स्वप्न में आईं और उन्हें अपने स्थान के बारे में संकेत दिया। राजा ने उक्त स्थल की खुदाई करवाई। और वाकई में उस स्थल की खुदाई से माता कौशल्या की मूर्ति प्राप्त हुई। राजा ने एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा कर विधिवत वहां मूर्ति की स्थापना की। मंदिर समय के साथ क्षतिग्रस्त भी हुआ और कई बार इसे संभाला भी गया। 1973 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।

आज कैसा है स्वरूप

छत्तीसगढ़ सरकार ने 2019 में भगवान श्रीराम के जीवन की झलकियों को दर्शाने के लिए "रामवनगमन पथ प्रोजेक्ट" लॉन्च किया।ऐसा माना जाता है कि बाल्यकाल में तो श्री राम अपनी माता के साथ यहां आया ही करते थे लेकिन साथ ही अपने 14 वर्षों के वनवास के दौरान एक लंबा अर्सा उन्होंने इन्हीं वनों से गुजरते हुए बिताया। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वनगमन पथ के स्थलों में से 9 स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका, रामगढ़, शिवरीनारायण, तुरतुरिया, चंद्रखुरी, राजिम, सिहावा (सप्त ऋषि आश्रम), जगदलपुर, रामाराम सुकमा को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है जिसका मकसद लोगों को भगवान राम से जुड़े स्थलों से परिचित कराना है। इस प्रोजेक्ट के तहत कौशल्या माता मंदिर का भी सौंदर्यीकरण किया गया।हालांकि, सौंदर्यीकरण के दौरान मंदिर के मूल स्वरूप को यथावत् रखा गया है और मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए इसे भव्य रूप दिया गया है। और अब यह बहुत ही सुंदर धार्मिक और दर्शनीय स्थल में तब्दील हो गया है। जिसे देखने के लिए लोग बड़े चाव से कौशल्या माता मंदिर जाते हैं।

कहा तो यह भी जाता है कि पहले इस मंदिर में महिलाओं को जाने से रोका जाता था कि कहीं वे माता कौशल्या की गोद में विराजित प्रभु श्री राम के मनोहर बाल रूप को नज़र न लगा दें। लेकिन अब ऐसा कोई बंधन नहीं है। आप कौसल पुत्री, राम जननी, कौशल्या माता मंदिर के दर्शन का आनंद जब चाहे ले सकते हैं।

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