Begin typing your search above and press return to search.

Chhattisgarh Tourism: दुर्ग में बाहुबली फिल्म जैसा है "धमधा किला", 126 तालाबों से घिरा हुआ किला है आकर्षण का केंद्र

NPG News

Chhattisgarh Tourism: दुर्ग में बाहुबली फिल्म जैसा है धमधा किला, 126 तालाबों से घिरा हुआ किला है आकर्षण का केंद्र
X
By NPG News

NPG DESK

Chhattisgarh Tourism:; छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के धमधा में बाहुबली फिल्म जैसा एक किला है, जो चारों तरफ से 126 तालाबों से घिरा हुआ है। इसे "धमधा किला" कहा जाता है। आप ने बाहुबली फिल्म देखी होगी, तो उसमें महल के चारों तरफ़ पानी से लबालब भरी खाई देखी होगी, जिसे पार कर महल तक जाना या आक्रमण करना बहुत दुष्कर काम था। दुर्ग का धमधा किला भी ऐसा ही किला है। इस प्राचीन किले के चारों ओर दस-बारह नहीं, पूरे 126 तालाबों का घेरा हुआ करता था। इनके कारण धमधा को "छह कोरी, छह आगर तरिया" यानी 126 तालाबों वाला गांव कहा जाता रहा। इन तालाबों ने गोंड राजाओं के इस किले को अभेद्य बनाया था। इतने प्राचीन समय में भी इन 126 तालाबों को लबालब रखने की इतनी उम्दा व्यवस्था की गई थी जो आज भी हैरान करती है। अब इनमें से कोई 25 तालाब ही शेष रहे हैं। लेकिन ऐसी शानदार प्राचीन विरासत को करीब से देखने के लिए एक बार आपको धमधा फोर्ट ज़रूर जाना चाहिए। आपको बता दें कि रायपुर से धमधा की दूरी करीब 52 किमी और दुर्ग से करीब 34 किमी है।


बूढ़ा नरवा से भरता था 126 तालाबों में पानी

छतीसगढ़ की 36 रियासतों में धमधागढ़ भी था। जहां 14वीं-15वीं शताब्दी में गोंड आदिवासी राजाओं का शासन था, जिनका किला आज भी धमधा में मौजूद है। किले को 126 तालाबों के घेरे से अभेद्य बनाया गया था। इन तालाबों को पानी से लबालब रखने का काम "बूढ़ा नरवा" यानि बूढ़ा नाला करता था। और इस बूढ़ा नरवा में पानी की सप्लाई पांच किलोमीटर दूर के खेतों से होती थी और आज भी हो रही है। बारिश का और खेतों का अतिरिक्त पानी इस लंबी नहर से होकर पहले तालाब में पहुंचता था फिर उसके भरने के बाद क्रमशः दूसरा, तीसरा, चौथा तालाब भरता चला जाता था।


बड़ी ही वैज्ञानिक व्यवस्था की गोंड राजाओं ने

गोंड राजाओं ने 500 एकड़ में फैले इन तालाबों को भरने के लिए जो व्यवस्था की, वो एक वैज्ञानिक आधार पर बनी थी। लंबी नहर ऐसी बनाई गई जिसमें घने पेड़ लगे थे। इनकी जड़ों में मौजूद तत्व और सूक्ष्म जीव पानी को इतना शुद्ध करके आगे बढ़ाते थे कि वह पानी पीने और खाना बनाने योग्य भी होता था। इन तालाबों से नगर का भूजल स्तर भी बढ़ता था और किला तो सुरक्षित होता था ही। बिना नाव के प्रयोग के किले के द्वार पर नहीं पहुंचा जा सकता था।


बूढ़ा नरवा नाम क्यों

गोंड आदिवासियों के अराध्य देव शिवजी थे। गोंड लोग अपनी भाषा में इन्हें बूढ़ा देव कहते हैं। इसलिए इस नहर या नाले का और तत्कालीन अनेक मंदिरों आदि का नाम बूढ़ा देव के नाम पर रखा जाता था।


ऐजुकेशनल टूर होते हैं आयोजित

छत्तीसगढ़ के इस महत्वपूर्ण किले और यहां की शानदार व्यवस्था के साथ-साथ यहां की ऐतिहासिक इमारतों और भग्नावशेषों को दिखाने के लिए छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्कूल-कॉलेजों के विद्यार्थियों को यहां एजुकेशनल टूर पर ले जाया जाता है और इस प्राचीन धरोहर से अवगत कराया जाता है।

Next Story