Chhattisgarh Mein Ghumne Layak Jagah: छत्तीसगढ़ के 33 जिलों के 33 प्रमुख पर्यटन स्थल, जहां दिखेगी आपको प्रकृति की अनूठी झलक
Chhattisgarh Mein Ghumne Layak Jagah: छत्तीसगढ़ का कोना-कोना दर्शनीय है। यहाँ एक से एक झरने हैं तो रोमांचक मोड़ों वाली घाटियाँ भी है। देश-दुनियां से श्रद्धालुओं को खींचने वाले मंदिर हैं तो देश भर की रेलगाड़ियों को दौड़ने के लिए ट्रैक प्रदान करने वाला स्टील प्लांट भी।
Chhattisgarh Mein Ghumne Layak Jagah: 45 फीसदी वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ इको टूरिज्म का बेजोड़ डेस्टिनेशन है। यहाँ एक से एक झरने हैं तो रोमांचक मोड़ों वाली घाटियाँ भी है। देश-दुनियां से श्रद्धालुओं को खींचने वाले मंदिर हैं तो देश भर की रेलगाड़ियों को दौड़ने के लिए ट्रैक प्रदान करने वाला स्टील प्लांट भी। आइए आज इस लेख के साथ छत्तीसगढ़ घूम लीजिए और तय भी कर लीजिए कि आप कहाँ घूमना पसंद करेंगे।
भोरमदेव मंदिर, कबीरधाम
कबीरधाम में स्थित,करीब एक हज़ार साल पुराने इस मंदिर की तुलना मध्य प्रदेश के "खजुराहो" और उड़ीसा के "कोणार्क" मंदिर से की जाती है। चारों ओर मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। बारिश और बसंत ऋतु में ये चोटियां जब हरियाली से पूर्णतः आच्छादित हो जाती हैं तब यहां की सुंदरता देखते ही बनती है। पर्यटक उस शांति को आत्मसात कर भावविभोर हो जाते हैं। भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में स्थित है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। भोरमदेव मंदिर को जिस नफ़ासत से बनाया गया है, वही इसे खास बनाता है। संपूर्ण मंदिर में सुंदर कारीगरी की गई है। मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया काला चमकदार पत्थर इसकी आभा को बढ़ाता है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मूर्तियां हैं और इन सबके बीच में काले पत्थर से बना हुआ एक शिवलिंग स्थापित है। आपको बता दें कि अष्टभुजी गणेश जी की मूर्ति तो पूरी दुनिया में सिर्फ भोरमदेव मंदिर में ही है।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा वाली मूर्तियाँ हैं। इन्हीं मूर्तियों की वजह से भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। यहां सभी मूर्तियों को बड़े ध्यान से बनाया गया हैं। उस काल की पूरी जीवन-शैली, नाच-गाना, भक्ति, शिकार करना और बहुत कुछ बड़ी लगन से यहां उकेरा गया है। जो खुशहाल जीवन के प्रतीक हैं। नाचते-गाते आदिवासियों की मूर्तियाँ उस काल की मुद्राओं को दिखाती हैं। मंदिर प्रांगण में प्रेम ही प्रेम का अहसास है। भोरमदेव मंदिर में यूं तो सालभर पर्यटकों, भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन सावन माह में यहाँ लोगों की रौनक देखते ही बनती है।वैसे आप सालभर में कभी भी भोरमदेव देखने जा सकते हैं। भोरमदेव जाने के लिए आप स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा रायपुर पर उतर सकते हैं।ट्रेन से आना चाहें तो हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर(134 किमी) समीपस्थ रेल्वे जंक्शन है। सड़क मार्ग से जाना हो तो भोरमदेव रायपुर से 116किमी एवं कवर्धा से 18 किमी है। दैनिक बस सेवा एवं टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हैं।
केंदई वाॅटरफाॅल, कोरबा
यह खूबसूरत वाॅटरफाॅल जिला मुख्यालय से 85 कि.मी की दूरी पर केंदई गांव में स्थित है। 75 फीट ऊंचा यह वाॅटरफाॅल अब एक शानदार पिकनिक स्पॉर्ट भी बन गया है, जहां परिवार के साथ एक यादगार दिन बिताया जा सकता है। केंदई वॉटरफॉल की ख़ूबसूरती मानसून में देखने लायक होती है।इस दौरान यहां भरपूर पानी होता है। यहाँ वाॅच टावर से आप दूर-दूर का खूबसूरत नज़ारा देख सकते हैं। आप निस्संदेह बहुत अच्छा महसूस करेंगे। केंदई वाॅटरफाॅल रायपुर से करीब 251 किमी की दूरी पर है।
चिरमिरी, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिला
महानदी की सहायक नदी हसदेव के तट पर बसे चिरमिरी को "छत्तीसगढ़ का स्वर्ग" भी कहा जाता है। समुद्र तल से लगभग 579 मीटर की ऊँचाई पर स्थित ये हिल स्टेशन किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ बेहद खूबसूरत वाॅटरफाॅल हैं। ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के झुरमुट हैं, नदी है,हरियाली से परिपूर्ण पहाड़ हैं, ट्रेकिंग का मज़ा है और 36 मोड़ों वाली रोमांचक सड़क है जो चिरमिरी को बिलासपुर से जोड़ती है। इन्हीं कारणों से चिरमिरी को "छत्तीसगढ़ का स्वर्ग" भी कहा जाता है। सर्दियों की मखमली धूप में आप इस हिल स्टेशन में ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं। कैपिंग भी कर सकते हैं या आसपास के गांवों में होमस्टे का भी मज़ा ले सकते हैं। वहीं हसदेव नदी के किनारे शांति और सुकून का अहसास पा सकते हैं। यदि आप प्लेन से चिरमिरी आना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले रायपुर के स्वामी विवेकानंद अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर आना होगा।ट्रेन से आप अंबिकापुर रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं अंबिकापुर ही करीबी बड़ा शहर है जो सड़कों से बाकी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
झुमका बांध, कोरिया
कोरिया जिले की बैकुंठपुर तहसील में स्थित है झुमका बांध। नीले समुद्र की तरह यहां का पानी, शांत माहौल , बांध के आस-पास बड़ी-बड़ी चट्टानें और घना जंगल पर्यटकों को बहुत पसंद आता है।इसे रामानुज प्रताप सागर के नाम से भी जाना जाता है। पिकनिक, मस्ती, फिशिंग, बोटिंग आदि के लिए यह एक बढ़िया लोकेशन है। यहाँ टूरिस्टों के लिए रिसोर्ट भी है।बांध देखने और यहां घूमने के लिए आप किसी भी मौसम में आएं, आपको मज़ा ही आएगा क्योंकि यहां सालभर पानी भरा रहता है। बारिश के मौसम में नजारा और भी खूबसूरत होता है। यहां एक बहुत बड़ी कृत्रिम मछली बनाई गई है,जिसके अंदर फिश एक्वेरियम है। झुमका बांध लोगों की पसंदीदा जगहों में इसलिए भी खास है क्योंकि यहां बहुत बड़ा कृत्रिम मछली बनी हुई है, जिसके अंदर फिश एक्वेरियम है।आप सोच ही सकते हैं यहां आकर आपके परिवार और बच्चों को कितना मज़ा आने वाला है।
अड़भार, सक्ती जिला
सक्ती जिले में स्थित है अड़भार। अपने आठ विशाल द्वारों के कारण इसे नाम मिला अष्टद्वार, जिसका अपभ्रंश होते हुए इसे अड़भार कहा जाने लगा। यहां स्थित दुर्गा देवी मंदिर को महान शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जिसमें देवी की ग्रेनाइट निर्मित अष्टभुजी दुर्लभ आदमकद मूर्ति है। दक्षिणामुखी यह मूर्ति काफी अच्छी स्थिति में है। यहाँ नवरात्रि में ज्योति कलश स्थापित किए जाते हैं।
दलहा पहाड़, जांजगीर - चांपा जिला
जांजगीर-चांपा जिले में स्थित है दलहा पहाड़। घने जंगल से गुजरते हुए और पत्थरों से भरा लंबा रास्ता तय करने के बाद चार किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़ आप रोमांचक दलहा पहाड़ पहुंच सकते हैं। मार्ग में आपको कुछ प्रसिद्ध कुंड और मंदिर भी मिलेंगे। यहां के एक कुंड "सूर्यकुंड" को लेकर मान्यता है कि जो भी उसका पानी पीता है, उसकी हर बीमारी दूर हो जाती है।माना जाता है कि सतनामी समाज के संस्थापक गुरु घासीदास ने यहीं पर तपस्या की थी और दलहापोड़ी गांव में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश दिया था। आपको दलहा पहाड़ के नीचे एवं चारों तरफ अनेक मंदिर भी देखने को मिलते हैं। जिनमें अर्धनारीश्वर मंदिर ,श्री सिद्ध मुनि आश्रम , नाग-नागिन मंदिर, श्री कृष्ण मंदिर आदि काफी प्रसिद्ध हैं। चतुर्भुज मैदान भी यहां की खासियत है। यहां एक रहस्यमयी गुफा भी है। यह कहां खुलती है, इसका पता अभी तक कोई भी नहीं लगा सका है।यहां से घने जंगल के अंदर से जब लोग पहाड़ की ओर बढ़ते हैं तो उन्हें कटीले पौधों और पथरीली पहाड़ों से होकर गुजरना पड़ता है। कितनों के पैरों में कांटे गड़ते हैं। इस जंगल में कीड़े और सांप भी रहते हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह ट्रिप कितनी एडवेंचरस होगी।
कैलाश गुफा, जशपुर
कैलाश गुफा प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक जनों के लिए एक अति मनोरम स्थल है। इस पवित्र गुफा का निर्माण पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी ने करवाया था। यही उनकी तपोभूमि थी,जहां उन्होंने वर्षों तपस्या की। यहाँ गुफा के चारों ओर हरियाली, हवा के झोंकों के साथ नृत्यरत वृक्ष, पंछियों का कलरव, हर ओर केले के पेड़,बंदरों की उछलकूद और शैतानियां आपको अपनी व्यस्त दिनचर्या से दूर सुकून के अहसास से भर देती हैं। महाशिवरात्रि पर प्रतिवर्ष यहां विशाल मेला लगता है और सावन माह में दूर-दूर से कांवड़िए पैदल चलकर गुफा में स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक करने आते हैं। कैलाश गुफा का सौंदर्य अनुपम है। गुफा में प्रवेश करते ही चट्टानों से रिसता पानी आपके उपर छींटों की बौछार करता है और आपका तन-मन खिल उठता है। गुफा में प्रवेश करने पर आप एक बड़े से हॉल में पहुंचेंगे। सामने शिव लिंग हैं जहाँ आप जलाभिषेक कर सकते हैं। यहां के माहौल में आप सहज ही धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हो जाते हैं। गुफा के पास मीठे पानी की जलधारा भी है जहां पर पर्यटक अपनी प्यास बुझा सकते हैं।अलकनंदा जलप्रपात भी करीब है। आप इसके पास भी अवश्य समय गुजारें।
गंगरेल डैम, धमतरी
धमतरी से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गंगरेल बांध छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बांध है।यह राज्य के कई जिलों को सिंचाई के लिए पानी भी प्रदान करता है। इस बांध को पंडित रविशंकर जलाशय के नाम से भी जाना जाता है। गंगरेल डैम को मिनी गोवा की तरह विकसित किया गया है। यहाँ पर आर्टिफिशियल बीच डेवलप किया गया है जहां टूरिस्ट को आकर्षित करने के लिए एक से एक व्यवस्थाएं की गई हैं। यहां हट्स, कैफेटेरिया, गार्डन के साथ वॉटर स्पोर्ट्स की सुविधा विकसित की गई है। बरसात के मौसम में सैलानी खासकर इसे देखने आते हैं।
गोमरदा अभयारण्य, सारंगढ़
सारंगढ़ स्थित यह अभ्यारण 277 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहाँ गौर, सोनकुत्ता, बारहसिंहा, तेंदुआ, बरहा, उडन गिलहरी आदि पाए जाते हैं। यहां घूमने का उपयुक्त समय सितम्बर से जून तक है। गोमरदा में रेस्ट हाउस के साथ 30 फीट का वॉच टावर बनाया गया है जिसमें लोग ऊपर चढ़कर हरे-भरे सुंदर वातावरण का दीदार कर सकते हैं।
तुरतुरिया, बलौदा बाज़ार-भाटापारा
तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है।लंबी सुरंग से होकर जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मुख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दिखाई पड़ता है। तुरतुरिया में मंदिर के पास एक विशाल नदी है।इस नदी को बलमदेही नदी के रूप में जाना जाता है।कहते हैं कि कोई कुंवारी कन्या यहां यदि वर यानि जीवनसाथी की कामना करती है तो उसकी इच्छा जल्द ही पूरी हो जाती है। इसकी इसी खासियत के कारण इसका नाम बलमदेही यानि बालम देने वाला पड़ा।
कांकेर पैलेस, कांकेर
कांकेर में कांकेर पैलेस सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। महल के कई भाग अब हैरिटेज होटल के रूप में परिवर्तित कर दिए गए हैं। कांकेर पैलेस को पहले राधानिवास बगीचा के नाम से जा बाईना जाता था, जो आज कांकेर पैलेस के रूप में देश-विदेश मे ख्याति हासिल कर चुका है।राज पैलेस आम जनता के लिए साल में सिर्फ एक दिन खुलता है, दशहरे के दिन राज पैलेस में लोगो की भीड़ जुटती है। इसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।
चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर
बस्तर जिले के जगदलपुर शहर से 38 किलोमीटर की दूरी पर चित्रकोट जलप्रपात स्थित है। इंद्रावती नदी पर स्थित इस वाॅटरफाॅल का आकार घोड़े की नाल के समान है इसलिए इसे भारत का नियाग्रा फॉल्स भी कहा जाता है। यह भारत का सबसे चौड़ा जलप्रपात है। नदी यहां ऊंचाई से गिरते हुए खूबसूरत दृश्य का निर्माण करती है जिसे देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से इसकी ओर खिंचे चले आते हैं। यह झरना इंद्रावती नदी की खूबसूरती पर चार चांद लगा देता है। बाधा रूप में आने वाली चट्टानों से लड़ता, उन्हें रौंदता, वृक्ष-कुंजों के बीच से गुज़रता, विशाल जलराशि खुद में समेटे हुए उमगता, गरजता यह प्रपात आगंतुकों को रोमांच और सिहरन से भर देता है। शहर की उमस भरी गर्मी से तपते तन-मन को इसका शीतल जल ऐसी शांति देता है कि पर्यटक कुछ वक्त के लिए खुद को, अपनी तमाम परेशानियों को भूल ही जाता है। विंध्याचल पर्वत माला में स्थित चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन हैं, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देते हैं।रात में इस जगह पर रोशनी का पर्याप्त प्रबंध किया गया है। ताकि यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को पर्यटक रोशनी के साथ देख सकें।झरने के पास आपको नाविक मिल जाएंगें जो आपको झरने के बीचोंबीच लेकर जाएंगे। अब यहां कैंपिग की भी व्यवस्था की गई है।जिससे पर्यटक चांदनी रात में ठहरकर झरने का सौंदर्य निहार सकें और पूर्ण शांति का अनुभव कर सकें।
शिवलोक, मोहला- मानपुर
धुर नक्सल इलाके मानपुर का शिवलोक यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। महाशिवरात्रि पर आयोजित विशाल मेले में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। बरसों से चली आ रही इस विशेष पूजा के अवसर पर यहां महाप्रसादी का वितरण होता है।
दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा स्थित इस मंदिर के विषय में कहते हैं कि यह वह स्थान हैं जहां पर देवी सती का दांत गिरा था इसीलिए इस स्थान का नाम दंतेश्वरी है। इसे देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। दंतेश्वरी माता की मूर्ति की 6 भुजाएँ है जिनमे से दाएँ हाथों में क्रमश शंख, खड़गऔर त्रिशूल हैं और बाएं हाथों में क्रमश घंटी, पद्म और राक्षस है। मूर्ति के उपर चाँदी का छत्र है। माता वस्त्र आभूषण से अलंकृत हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में होने के बावजूद भी भक्तगण यहां आना नहीं छोड़ते।डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर अपनी समृद्ध वास्तुकला, मूर्तिकला और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के कारण जाना जाता है। यहां नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। इसे तांत्रिकों की स्थली भी कहा जाता है।
भिलाई स्टील प्लांट, दुर्ग
छत्तीसगढ़ की पहचान है औद्योगिक नगरी भिलाई और इसका स्टील प्लांट, जो कि दुर्ग जिले के अंतर्गत आता है। यह एकमात्र ऐसा स्टील प्लांट है जिसे सबसे अधिक दस बार प्रधानमंत्री ट्राफी से नवाज़ा गया है। देश के कोने-कोने में भिलाई स्टील प्लांट की बनाई रेल पटरी बिछी हुई हैं।यह प्लांट सेना के अनेक महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक स्टील प्लेट उपलब्ध कराता है।
बम्लेश्वरी मंदिर, राजनांदगांव
राजनांदगांव जिले में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरूपा मां बमलेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है जहां दूर-दूर से भक्तों के जत्थे सिर नवाने आते हैं।नवरात्रि के दौरान तो यहां आस्था का सैलाब उमड़ता है।1,600 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित माँ बमलेश्वरी देवी मंदिर की ख्याति देश भर में है। मंदिर तक पहुंचने के लिये करीब 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। जिन श्रृद्धालुओं के लिए इतनी सीढ़ियां चढ़ना संभव न हो उनके लिए रोपवे उपलब्ध है। नवरात्रि के दौरान तो बम्लेश्वरी मंदिर में पैर धरने को भी जगह नहीं मिलती।अष्टमी पर माता के दर्शन करने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता है। मंदिर के नीचे छीरपानी नाम का एक जलाशय भी है जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी उपलब्ध है।
सिरपुर, महासमुंद
सिरपुर, महासमुंद जिले का अंग है। यहां से होकर गुजरती महानदी इस पूरे क्षेत्र को संवारने का काम करती है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध के काल के दौरान यह एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था, इसलिए आज भी यहां बौद्ध धर्म से जुड़े कई महत्वपूर्ण साक्ष्य देखे जा सकते हैं। बौद्ध धर्म को लेकर छठीं से दसवीं शताब्दी के मध्य इस नगर की भूमिका अग्रणी बताई जाती है। इस स्थल के धार्मिक महत्व के कारण यहां दलाई लामा का आगमन भी हो चुका है। बुद्ध विहार, लक्ष्मण मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय, बलेश्वर मंदिर की मौजूदगी सिरपुर को दुनिया भर में नाम दिलवाती है। लाल ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर सिरपुर की खासियत है। इसकी वास्तुकला और निर्माण के पीछे की कहानी के कारण लक्ष्मण मंदिर को लाल ताज महल भी कहा जाता है। इस मंदिर की जटिल नक्काशी इस मंदिर को और अधिक आकर्षक बनाती हैं। क्योंकि ईंट पर इतनी नक्काशी पत्थर की तुलना में कठिन लगती है। यह मंदिर राजा हर्षगुप्त की याद में रानी वसाटा देवी द्वारा बनवाया गया था। खुदाई में मिले शिलालेखों के अनुसार, यह अद्वितीय प्रेम स्मारक ताजमहल से भी पुराना है। वैसे तो यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है लेकिन मंदिर के अंदर पांच फन वाले शेषनाग पर लक्ष्मणजी की मूर्ति विराजमान है, इसलिए इसे लक्ष्मण मंदिर कहा जाता है।
रतनपुर, बिलासपुर
बिलासपुर स्थित रतनपुर एक धार्मिक एवं प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है, जहां अनेकों मंदिर हैं। इसलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। रतनपुर को कल्चुरी वंश के शासन काल में छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी भी घोषित किया गया था। उस समय यहाँ 1200 से भी अधिक तालाब हुआ करते थे। जिसके कारण ही इसे तालाबों का शहर भी कहा जाता था। रतनपुर नगर में अनेक मंदिर हैं लेकिन यह विशेष रूप से महामाया देवी मां के मंदिर के लिए विख्यात है | मंदिर के भीतर महाकाली,महासरस्वती और महालक्ष्मी स्वरुप देवी की प्रतिमाएं विराजमान हैं | मान्यता है कि इस मंदिर में यंत्र-मंत्र का केंद्र रहा होगा | रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था | भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था | जिसके कारण माँ के दर्शन से कुंवारी कन्याओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
जंगल सफारी, रायपुर
राजधानी रायपुर स्थित जंगल सफारी एशिया की पहली मानव निर्मित जंगल सफारी है। जंगल सफारी खंडवा ग्राम के नज़दीक नया रायपुर के बीच में स्थित है जो 800 एकड़ में फैला हुआ है। जंगल सफारी में आपको कई तरह के जानवर और हरियाली से परिपूर्ण वातावरण देखने को मिलेगा। साथ ही यहां 130 एकड़ में खंडवा जलाशय है जो सफ़ारी की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। यह कई सारे प्रवासियों पक्षियों को अपनी ओर खींचता है। इसमें आप बोटिंग का भी आनंद ले सकते हैं। जंगल सफारी में चार मुख्य बाड़े हैं, शाकाहारी वन्यप्राणी सफ़ारी, भालू सफ़ारी, टाइगर सफ़ारी और शेर सफ़ारी। यहां आप पिंजरे नुमा गाड़ी में घूमकर जंगली जानवरों को खुले में विचरते देख सकते हैं। परिवार के साथ घूमने के लिए यह एक शानदार ट्रिप होगी।
राजिम,गरियाबंद
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में सोंढूर-पैरी-महानदी के संगम पर बसे इस नगर को "छत्तीसगढ़ का प्रयाग" भी कहा जाता है। कहते हैं कि अगर आप चार धाम की यात्रा नहीं कर पा रहे हैं तो यहां चले आएं क्योंकि यहां आने पर चारों धाम की यात्रा एक साथ हो जाती है। राजिम की शान है राजीव लोचन मंदिर। त्रिवेणी संगम पर स्थित राजीव लोचन मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चारों रूप दिखाई देते हैं। कहते हैं कि इस मंदिर में भगवान विष्णु सुबह बाल्यवास्था में, दोपहर में युवावस्था में और रात्रि में वृद्धावस्था में दिखाई देते हैं। आठवीं-नौवीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में बारह स्तंभ हैं।आयताकार क्षेत्र के मध्य स्थित मंदिर के चारों कोण में श्री वराह अवतार, वामन अवतार, नृसिंह अवतार तथा बद्रीनाथ जी का धाम है। सुंदर नक्काशीदार पत्थर के स्तंभों पर अष्ठभुजा वाली दुर्गा, गंगा, यमुना और भगवान विष्णु के अवतार राम, नृसिंह भगवान के चित्र हैं। गर्भगृह में पालनकर्ता लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की श्यामवर्णी चतुर्भुजी मूर्ति है जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म है। 12 खंभों से सुसज्जित महामंडप में श्रेष्ठ मूर्तिकला का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। आसन लगाकर बैठे भगवान श्री राजीवलोचन की प्रतिमा आदमकद मुद्रा में सुशोभित है।शिखर पर मुकुट, कर्ण में कुण्डल, गले में कौस्तुभ मणि के हार, हृदय पर भृगुलता के चिह्नांकित, देह में जनेऊ, बाजूबंद, कड़ा व कटि पर करधनी का अंकन है। इतनी विलक्षण और बेहद सुन्दर यह मूर्ति दर्शक को आश्चर्यचकित भी करती है और मंत्रमुग्ध भी।
सिंघनपुर शैलाश्रय, रायगढ़
रायगढ़ जिला अपनी सांस्कृतिक और पौराणिक खूबियों की वजह से काफी समृद्ध है। सिंघनपुर गुफाएं काफी प्राचीन हैं और रायगढ़ से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित हैं। कहा जाता है कि यहां सिंघनपुर की गुफाओं में आप पृथ्वी की सबसे प्राचीन चित्रकारी देख सकते हैं। जिसमें आदिवासियों की नर्तक टोली, मानव आकृति, शिकार के दृश्य , सीढ़ीनुमा मानव आकृति, विविध पशु आकृति और अन्य चित्र मौजूद है।आदिमानवों द्वारा उकेरे गये इन शैलचित्रों के आधार पर तत्कालीन रहन-सहन, पशु और संस्कृति के साथ-साथ प्राकृतिक अवस्था का भी पता चलता है। कुछ एक शैलचित्रों में शुतुरमुर्ग, डायनासोर और जिराफ से मिलते- जुलते जानवरों को भी उकेरा गया है, जो इस क्षेत्र में करोड़ों वर्ष पूर्व इनकी मौजूदगी की ओर संकेत करता है। पुरातत्ववेत्ता स्व. अमरनाथ दत्ता ने सिंघनपुर के शैलचित्रों पर व्यापक सर्वेक्षण कार्य किया। उनकी पुस्तक 'ए फ्यू रैलिक्स एण्ड द राक पेटिंग ऑफ सिंघनपुर' संग्रहणीय बन पड़ी है।
मैनपाट, सरगुजा
मैनपाट सरगुजा जिले का एक रोमांचक स्थल है ,जहां माण्ड नदी का उद्गम भी देखा जा सकता है। यहां आप ठिठुराने वाली ठंड महसूस कर सकते हैं, बर्फबारी का मज़ा ले सकते हैं और धरती पर बिछा बर्फ का श्वेत कालीन भी देख सकते हैं।इसी वजह से इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है।यही नहीं, विंध्य पर्वतमाला पर बसे मैनपाट को भारत का तिब्बत भी कहा जाता है क्योंकि चीनी आक्रमण के बाद यहां भारत सरकार ने तिब्बतियों को शरण दी थी। यहां के विख्यात बुद्ध मंदिर, खान-पान और संस्कृति में भी तिब्बती पन का अहसास होता है। मैनपाट अपने अनोखे सौंदर्य के कारण पर्यटकों की भीड़ खींचता हैं। यहां देखने के लिए एक से एक जगहें हैं। टाइगर प्वाइंट मैनपाट का प्रमुख आकर्षण केंद्र है, यहां पर महादेव मुदा नदी झरने का निर्माण करती है। यह झरना लगभग 60 मीटर की ऊंचाई से गिरता है।जब झरने का पानी ऊपर से नीचे जमीन की ओर गिरता है तो यहाँ पर टाइगर की दहाड़ की ध्वनि सुनाई पड़ती है इसलिए इसे टाइगर प्वाइंट कहा जाता है। टाइगर प्वाइंट जलप्रपात जंगल के बीच में स्थित है। इसके चारों ओर बड़े – बड़े पहाड़ स्थित हैं। ये एक सुन्दर पिकनिक स्पॉट है जहां हर साल लाखों की संख्या में लोग घूमने आते हैं। मैनपाट के पास ही जलजली नाम का एक स्थान है। यहां लगभग तीन एकड़ ऐसी जमीन है, जो काफी नर्म है और इसपर कूदने पर ऐसा प्रतीत होता है धरती हिल रही है।वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के आंतरिक दबाव और पोर स्पेस (खाली स्थान) में सॉलिड के बजाए पानी भरे होने के कारण यह स्थान दलदली और स्पंजी लगती है। मैनपाट आने वाले सैलानियों के आकर्षण का एक कारण 'उल्टा पानी' भी है। यह एक ऐसी जगह है, जहां पानी का बहाव नीचे के बजाए ऊपर की ओर यानी ऊंचाई की तरफ है।इस स्थान पर अगर आप अपनी गाड़ी को न्यूट्रल में खड़ी करते हैं, तो अपने आप 110 मीटर तक पहाड़ी की ओर चली जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मैनपाट में मौजूद इस जगह में गुरुत्वाकर्षण बल से ज्यादा प्रभावी मैग्नेटिक फील्ड है, जो पानी या गाड़ी को ऊपर की तरफ खींचता है। बता दें कि भारत में ऐसी सिर्फ 5 और दुनिया भर में 64 जगह हैं।
ओनाकोना मंदिर, बालौद
ओनाकोना मंदिर बालौद जिले के ओनाकोना गांव में स्थित है। इस गाँव के नाम से ही मंदिर का नाम ओना कोना मंदिर पड़ा है | यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक स्थित श्री त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम की तर्ज पर बनाया गया है। इसके अलावा इस मंदिर के आस पास एक मजार और भगवान श्री राम का मंदिर भी है |
अचानकमार टाइगर रिजर्व, मुंगेली
अचानकमार अभ्यारण्य की स्थापना 1975 में की गई। यहाँ बाघ, तेंदुआ, गौर, उड़न गिलहरी, जंगली सुअर, बायसन, चिलीदार हिरण, भालू, लकड़बग्घा, सियार, चार सिंग वाले मृग, चिंकारा सहित 50 प्रकार स्तनधारी जीव एवं 200 से भी अधिक विभिन्न प्रजीतियों के पक्षी देखे जा सकते हैं।अचानकमार टाइगर रिजर्व की गिनती देश के प्रमुख टाइगर रिजर्व के रूप में होती है। यह टाइगर रिजर्व मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है।
भद्रकाली मंदिर, बेमेतरा
बेमेतरा में स्थित भद्रकाली मंदिर अपनी विशालता, सौंदर्य और धार्मिक आस्था के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ माँ भद्रकाली के साथ ही शिव भगवान, पार्वती, गणेश जी, नंदी और दक्षिणमुखी हनुमान की सुंदर मूर्तियां हैं।
लाफ्री झरना, सूरजपुर
लाफ्री, सूरजपुर के पास स्थित एक खूबसूरत झरना है।अपनी खूबसूरती की वजह से यह सूरजपुर का प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है।घने जंगलों के बीच, चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरे इस वाॅटरफाॅल की खूबसूरती देखते ही बनती है।
तुंगल जैव विविधता पार्क और तुंगल बांध, सुकमा
सुकमा के तुंगल जैव विविधता पार्क एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है। यहीं भीतर तुंगल बांध है। जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। इसे ईको पार्क के रूप में विकसित किया गया है। यहां जंगली जानवर, हरियाली और सघन वन देखने का अवसर तो है ही, बच्चों के खेलने के लिए चिल्ड्रन पार्क भी बना हुआ है। जहां पर बच्चों के लिए बहुत सारे झूले हैं। इसलिए पूरी फैमिली के इंजाॅयमेंट के लिए यहां इंतज़ाम है।
तातापानी, बलरामपुर
बलरामपुर जिले का तातापानी प्राकृतिक रूप से निकलते गरम पानी के लिए प्रदेशभर में प्रसिद्ध है। यहां के कुण्डों व झरनों में धरातल से बारहों माह गरम पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि यहां गरम पानी से स्नान करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते हैं। यहां के शिव मंदिर में लगभग चार सौ वर्ष पुरानी शिव भगवान की मूर्ति स्थपित है जिनके दर्शन के लिए हर वर्ष मकर संक्रान्ति के पर्व पर लाखों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं।
मांझिनगढ़ ईको टूरिज़्म स्थल, कोंडागांव
कोंडागांव में मांझिनगढ़ को ईको टूरिज्म के रूप में विकसित किया गया है। पर्यटक मांझिनगढ़ स्थित विभिन्न व्यू पॉइंट, झरना गुफा, विलक्षण वनस्पतियाँ एवं प्रागैतिहासिक शैलचित्र देख अभिभूत हो जाते हैं।
हांदवाड़ा जलप्रपात, नारायणपुर
हान्दवाडा जल प्रपात नारायणपुर का सबसे खूबसूरत प्राकृतिक जल प्रपात है जहाँ करीब 150 फीट से भी अधिक ऊचाई से पानी नीचे गिरता है फिर पत्थरों के बीच बहता हुआ सुंदर झरने का निर्माण करता है। यहाँ का शांत वातावरण, पानी की कलकल ध्वनि और मनोहर दृश्य मन को मोह लेता है।
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान, बीजापुर
बीजापुर जिले में स्थित इंद्रावती नेशनल पार्क छत्तीसगढ़ राज्य को देश में पहचान देता है। इसका नाम निकटतम इंद्रावती नदी के कारण पड़ा है। बताते हैं कि यहाँ दुर्लभ जंगली भैंस की आखिरी आबादी बची हुई है। यह छत्तीसगढ़ में उदांति-सीतानदी के साथ दो परियोजना बाघ स्थलों में से एक है। इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में आप बाघ, चीतल, जंगली भैंसा, बार्किंग हिरण, बारहसिंघा, , जंगली सुअर, धारीदार हाइना, उड़न गिलहरी, लंगूर, साही, पैंगोलिन, बंदर आदि जानवर देख सकते हैं। वहीं मॉनिटर छिपकली, मगरमच्छ, आम क्रेट, भारतीय गिरगिट, इंडियन रॉक पायथन, रसेल के वाइपर कोबरा जैसे रेप्टाइल भी यहां हैं। पक्षियों की बात करें तो यहाँ हिल मैना, चित्तीदार उल्लू, मोर, रैकेट-पूंछ वाले ड्रोंगो, तोते, स्टेपी ईगल्स, रेड स्पर फॉल, फाटक आदि देखे जा सकते हैं। गर्मी के मौसम मे यहां गर्मी काफी ज्यादा लगती है, इसलिए यहां अक्टूबर से फरवरी महीने के बीच आना बेहतर है, इस दौरान यहां का मौसम भी काफी अच्छा होता है । प्राकृतिक सुंदरता एवं अद्वितीय वन्य जीवों के साथ खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाएं इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान को प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग बनाती हैं।
झोझा वाॅटरफाॅल, गोरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला
गौरेला के अंतिम छोर पर बस्तीबगरा ग्राम पंचायत के पास लगभग 45 किमी दूरी पर झोझा जल प्रपात आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है । यह अगस्त से जनवरी तक लगभग 100 फिट की ऊचाईं से पानी झरने मे गिरता है। धीरे-धीरे इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल रही है और पर्यटक इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।
बेताल रानी घाटी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला
यह घाटी छत्तीसगढ़ की सबसे खतरनाक घाटियों में शुमार है। सिर्फ खतरों के खिलाड़ियों को ही यहां जाना चाहिए। इसके मोड़ हेयरपिन की तरह बताए जाते हैं जिनपर होकर सकुशल गुजरना चुनौती से कम नहीं। एडवेंचर के लिए ही लोग इस घाटी से होकर गुजरना पसंद करते हैं।