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औघड़ बाबा संभव राम जी ने चेताया...हम जिस ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं वह यदि ईश्वरनिहित नहीं हुआ तो दुखदाई होगा, धन-संपत्ति या अधिकार का दुरुपयोग अनेक परेशानियों का कारण बनता है

औघड़ बाबा संभव राम जी ने चेताया...हम जिस ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं वह यदि ईश्वरनिहित नहीं हुआ तो दुखदाई होगा, धन-संपत्ति या अधिकार का दुरुपयोग अनेक परेशानियों का कारण बनता है
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By NPG News

वाराणसी, 29 नवंबर 2021। श्री सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने आज आशीर्वचन देते हुए कहा कि जिस सुख-शांति को हम मृग-मरीचिका की भांति ढूढ़ रहे हैं वह अगर मिल भी जाय तो भी हो सकता है कि उसको हम संभाल न पायें और अनेकों दुर्व्यसनों में संलिप्त होकर अपने-आपको बर्बाद कर लें। हमारा अहंकार परवान चढ़ जाता है। धन-संपत्ति या अधिकार का दुरुपयोग हमें अनेक परेशानियों में डाल देता है। हम जिस ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं वह यदि ईश्वरनिहित ऐश्वर्य नहीं हुआ तो दुखदाई होता है। वे अघोरेश्वर भगवान राम के महानिर्वाण दिवस पर आयोजित गोष्ठी में बोल रहे थे।


गुरुपद संभव राम जी ने कहा, अधिकांश तो यही देखने में आता है कि हमलोग अपने समय को बहुत बर्बाद कर देते हैं। हम जिस चीज के लिए यहाँ आते हैं या गोष्ठियों में सुनते-सुनाते हैं, वह हममें परिलक्षित नहीं होती। अनर्गल बातचीत में ही या अपने परिवार में या अपने काम धंधे में ही हम सीमित रह जाते हैं, परिणामस्वरुप सभी असंतुष्ट और अस्वस्थ हैं। यहाँ आकर हमलोग अवश्य ही कुछ सोचें-समझें और कम से कम अपने घर-परिवार में ही स्वर्ग का वातावरण बनायें। बड़ा दुर्भाग्य है कि हमलोग खुद ही नरक बनाये हुए हैं। अपने अभ्यंतर में भी कचड़ा बटोरे हुए हैं और अपने साथी-मित्र और परिजनों को भी प्रताड़ित करते हैं तथा अपने समाज और राष्ट्र के विपरीत भी कई चीजें करने को तैयार हो जाते हैं। इस कोरोना में ही देखें तो बहुत धन-संपत्ति रहने के बाद कई लोगों की जान नहीं बच पाई। जिस सुख-शांति को हम मृग-मरीचिका की भांति ढूढ़ रहे हैं वह अगर मिल भी जाय तो भी हो सकता है कि उसको हम संभाल न पायें और अनेकों दुर्व्यसनों में संलिप्त होकर अपने-आपको बर्बाद कर लें। हमारा अहंकार परवान चढ़ जाता है। धन-संपत्ति या अधिकार का दुरुपयोग हमें अनेक परेशानियों में डाल देता है। हम जिस ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं वह यदि ईश्वरनिहित ऐश्वर्य नहीं हुआ तो दुखदाई होता है। अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए आपको ध्यान-धारणा, योग, शुद्ध खान-पान, रहन-सहन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अपनी दिनचर्या-जीवनचर्या को व्यवस्थित करें। हमें सुबह उठना चाहिए, क्योंकि सुबह की वायु में अमृत होता है। आज सब कुछ मिलावटी और जहर ही मिल रहा है इसकी जानकारी होने के बाद भी यदि उटपटांग चीजें खाते हैं तो बीमार पड़ते हैं और फिर ईश्वर को या अपने गुरुजनों को याद करने लगते हैं, उनका भी समय बर्बाद करते हैं। आज बहुत से लोग मानसिक रूप से विकृत हो रहे हैं। घरों में बैठे-बैठे या काम-धंधे के बंद होने से अर्थाभाव में उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जा रहा है। महापुरुषों की वाणियों का संबल तथा ईश्वर निहित ऐश्वर्य की कामना ही इससे छुटकारा दिला सकती है। सभी की परिस्थितियां ऊपर-नीचे होती हैं, दुःख-सुख सभी को आता है, लेकिन जिसके पास ईश्वर का, गुरुजनों का संबल होता है वह सभी चीजों को चीरते हुए निकल जाता है। वह यही मानता है कि कुछ सीखने के लिए ही यह अभाव आया है। लोकतंत्र की लोग बहुत बड़ाई करते हैं लेकिन इसी की देन है कि किसी भी चीज पर शासन-प्रशासन कड़ाई नहीं कर पाते। लोकतंत्र अच्छा तो है लेकिन इसी की आड़ में अनेक तरह के दुष्कृत्य समाज में हो रहे हैं। प्रदूषण, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, मिलावटखोरी जैसे अनेक समस्याओं पर लगाम कसना बहुत जरुरी है। हाँ, एक बात जरूर है कि हमारी संस्था के अधिकांश लोग जहाँ भी रहते हैं, बहुत ही संयमित जीवन जीते हैं। उनका आचरण-व्यवहार, उनकी वाणी औरों से अलग ही होती है। लोग खुद ही आश्चर्य से पूछते हैं कि आपलोग कैसे इतने शांत और प्रसन्न रहते हैं। बच्चों को हंसने दीजिये, किलकारियां भरने दीजिये, यही तो जीवन है। छोटा सा जीवन रोते-कलपते गुजार देंगे तो बड़ा ही दुखदायी होगा। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिस चीज का हम चिंतन-मनन करते हैं वैसा ही अगला जन्म हमें मिलता है। सात्विक, राजसिक, और तामसिक ये तीनों ही गुण हैं, अवगुण नहीं। कोई एक-दूसरे से अलग नहीं है। कोई आपको मारने आएगा तो उस समय आप सतोगुणी नहीं बने रहेंगे। आपको अपनी रक्षा करनी पड़ेगी। हमलोगों को अपने जीवन को सुन्दर, सुखमय बनाने के लिए महापुरुषों की वाणियों का अनुसरण, अपने साहित्य का अध्ययन, चिंतन और मनन करना चाहिए, नहीं तो हमारा यह छोटा सा जीवन व्यर्थ चला जायेगा और अंत में पछतावा ही हाथ लगेगा। अपने भटकाव को हमें स्वयं ही दूर करना होगा, कोई दूसरा हमारे लिए नहीं करेगा। हम सभी को वह ईश्वर सदबुद्धि दें।


गोष्ठी के अन्य वक्ताओं में पड़ाव आश्रम स्थित अघोर शोध संस्थान के निदेशक डॉ० अशोक कुमार, भोपाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ० शिवशंकर सिंह, श्री अवधेश सिंह, (पुलिस अधीक्षक, रेलवे गोरखपुर) तथा' जौनपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के०डी० सिंह थे। मंगलाचरण श्री यशवंत नाथ शाहदेव ने किया और गोष्ठी का सञ्चालन डॉ, बामदेव पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्था के प्रचार मंत्री श्री पारस नाथ यादव ने किया।

इस अवसर पर सुबह पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने अघोरेश्वर महाप्रभु की संगमरमर शिला से निर्मित प्रतिमा का अनावरण किया। तत्पश्चात पूज्य बाबा ने विधिवत् माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। श्री पृथ्वीपाल जी द्वारा सफलयोनि का पाठ किया गया। तत्पश्चात पूज्य बाबा ने हवन का कार्यक्रम संपन्न किया। गोष्टी के उपरान्त पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की समाधि की पांच परिक्रमा करते हुए "अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्" का चौबीस (24) घंटे के अखंड संकीर्तन का शुभारम्भ किया, जिसका समापन 30 नवंबर को पूज्य बाबा जी द्वारा आरती पूजन के साथ होगा। इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारियों देश भर से सैकड़ों श्रद्धालुगण उपस्थित रहे।

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