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अटल जी की 98 वीं जयंती पर विशेष: जानिए सुशासन दिवस के पीछे की परिकल्पना

अटल जी की 98 वीं जयंती पर विशेष: जानिए सुशासन दिवस के पीछे की परिकल्पना
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By Sandeep Kumar

विकास शर्मा

जनसरोकार से जुड़कर सुशासन की संकल्पना होगी साकार

सत्ता के सफल होने की कसौटी है जवाबदेह शासन तंत्र

देश सुशासन दिवस मनाने में जुटा हुआ है। शासकीय तंत्र शासन से मिले निर्देशों का पालन कर विभिन्न प्रकार के आयोजन की सफलता के लिए जुट गया है । इस सरकारी गहमागहमी के बीच सुशासन दिवस मनाए जाने के पीछे की परिकल्पना को जानना जरूरी हो जाता है। मुख्य रूप से सुशासन दिवस मनाने का ध्येय सत्ता और शासन तंत्र को जवाबदेही का अहसास कराना है, जनहित में सरकारी लोगों की जिम्मेदार भूमिका को रेखांकित करना है। ये दिवस देश और समाज की उन्नति में शासन तंत्र को उसकी असल भूमिका का स्मरण भी कराता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को भारत सरकार ने वर्ष 2014 से सुशासन दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का सत्ता और शासन तंत्र को लेकर जो नजरिया रहा है उसे इस दिवस के माध्यम से पुनःस्मरण कराना इस दिवस का एक अहम लक्ष्य है।

अटल जी ने 1969 में राष्ट्रधर्म में प्रकाशित लेख में कहा कि हमें भारत को सुदृण , शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र बनाना है और इस उदेश्य की पूर्ति के लिए जो साधन आवश्यक होगा , जो नीति आवश्यक होगी उसका निर्धारण और क्रियांवयन करेंगे। इस व्यापक उदेश्य को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री रहते उन्होंने विषम राजनीतिक परिस्थितियों में भी बड़े और कड़े निर्णय लिए। सत्ता के माध्यम से सर्वोदय का विकास करने के अटल जी के सिद्धांत को आज उनके अनुगामी अधिक दृणता और शक्ति से बढ़ा रहे हैं।

संविधान के अनुरूप सरकार द्वारा तैयार विकास औऱ उन्नति के प्रारूप में हर नागरिक अपना स्थान सुनिश्चित कर सके तभी सुशासन है। अटल जी मानते थे जो देश की दरिद्रता और विपन्नता है उसका कारण हमारी व्यवस्था की विफलता है। पांच्चजन्य में लिखे एक लेख में अटल जी ने कहा कि बेकारी , गरीबी, भूखमरी ईश्वर का विधान नहीं, मानवीय व्यवस्था की विफलता का परिणाम है। इस बात को समझते हुए लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रशासन को संवेदनशील और अधिक जवाबदेह बनाने पर उन्होंने जोर दिया। आज उनके राजनीतिक शिष्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी इस बात को अधिक बल देकर प्रतिध्वनित करते हैं कि less government and more governance से देश विकसित राष्ट्र की पंक्ति में जल्द अपने को खड़ा कर पाएगा।

प्रदेश में इस बार विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बनी सरकार ने आते ही अपने इरादे स्पष्ट किए हैं कि वो सुशासन के संकल्प के साथ ही शासन करेगी। अटल जी ने जिस सत्ता को सेवा का माध्यम माना और 01 जून 1996 को संसद में दिए ऐतिहासिक भाषण में अपनी पार्टी के राजनीतिक उदेश्य को स्पष्ट किया था और घोषणा की थी कि मूल्यहीन सत्ता को वे चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करेंगे। उस उच्च आदर्श की छाँव में भाजपा देश का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन चुकी है। बदलते दौर में जनअपेक्षाओं का विस्तार हुआ है। प्रदेश में राजनीतिक रूप से लोगों के भरोसे के टूटने के बाद 'हम बनाए हैं और हम ही संवारेंगे' के संकल्प पर सबने विश्वास जताया है। जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य प्रारंभ भी हो गया है। गरीब को मकान दिलाने की दिशा में पहला कदम बढ़ा चुका है और किसान के बाजूओं को अर्थ की ताकत देने के लिए वादे अनुसार लगभग 3800 करोड़ रूपए का बोनस भी सुशासन दिवस पर वितरित होने जा रहा है। छोटे और मंझोले किसान परिवारों के लिए क्रिसमस के दिन दिवाली जैसी खुशी स्वाभाविक है। यह तो शुरूआत है पर विश्वास बनाए रखने के लिए शासन को अभी बहुत कुछ सोचना और तंत्र को बहुत कुछ करना शेष है।

इस दिवस पर बोनस वितरण एक शुभ लक्षण है पर सुशासन इससे आगे शासनतंत्र की जवाबदेही को बढ़ाने से अधिक प्रासंगिक होगा। अटल जी इस बात को लेकर चिंतित रहते थे कि वनवासियों के कल्याण की बातें कागजों से नीचे नहीं उतर पा रही हैं। 8 सितंबर 1968 को भारतीय जनसंघ के अधिवेशन को संबोधित करते हुए उन्होंने चिंता जाहिर की थी कि "जनजातियों पर खर्च होने वाला सरकारी धन कहीं अपरोक्ष रूप से धर्मांतरण को तो प्रोत्साहित नहीं करता।" ऐसी स्थिति उनके सर्वोदय के विकास की कल्पना को साकार होने से रोकती है। ऐसे में आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में आज भी जबकि ऐसी बातें सुनने में आती रहतीं हैं तो ऐसी सामाजिक समरसता बिगाड़ने वाली ताकतों का संहार करने के लिए 'विष्णु' को सुशासन रूपी सुदर्शन चलाना ही होगा। कल्याणकारी राज्य की संकल्पना को साकार करने का घोष है सुशासन दिवस । इस घोष की आवाज जब हर क्षण शासन तंत्र में प्रतिध्वनित होती रहेगी तभी इस दिवस के आयोजन सार्थक और इसे मनाए जाने का निर्णय प्रासंगिक होगा।

देश की जनता ‘मोदी की गारंटी’ की बात कर रही है। ये वो गारंटी है जो अटल जी की सुचितापूर्ण राजनीतिक चिंतन से उपजी है। अटल जी वर्ग भेद या वर्ग आधारित किसी भी विकास प्रारूप को अस्वीकार करते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी बात को नए सिरे से परिभाषित करते हुए कहते हैं कि देश के विकास मॉडल में सबका साथ और सबका विकास होगा। इस मॉडल में चार वर्ग केन्द्र में होंगे गरीब, युवा, महिला और किसान। विकास का मॉडल जो मोदी जी ने तैयार किया है उसको सफल बनाने के लिए जनता के प्रति निष्ठा और संवेदनशीलता से भरे शासनतंत्र की आवश्यकता है। उस तंत्र की जो जनता में विश्वास बढ़ाने वाली शासन की नीतियों को जनता के बीच पहुँचाने में सहायक हो। सुशासन दिवस किसी प्रकार के शाब्दिक शपथ, विचार गोष्ठी और कवि सम्मेलनों के आयोजन की सरकारी रस्म भर बनकर न रह जाए इसके लिए सुशासन के ध्वजवाहकों को अधिक सतर्क रहना होगा। सोशल मीडिया से इतर सुशासन दिवस पर सुशासन के पुरोधा राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों को सामयिक रूप से स्मरण कर भी हम उन्हें श्रद्धांजलि दे सकते हैं। उनके व्यक्तित्व को उनकी ही इन पंक्तियों से जान भी सकते हैं कि मेरे प्रभु मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना , गैरों को गले न लगा सकूँ इतनी रुखाई कभी मत देना।

(लेखक छत्तीसगढ़ बिजली कंपनी में जनसंपर्क अधिकारी हैं)

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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