क्या वाकई पटाक्षेप हो गया सिंहदेव और बृहस्पति प्रकरण का…? सीएम हाउस में 54 विधायकों का जुटाव और अंग्रेजी डेली में मेडिकल कॉलेज की खबर छपना महज इत्तेफाक नहीं, मौके को देखते दोनों पक्षों ने तलवारें पीछे छिपा लिया…म्यान में नहीं डाला है
रायपुर, 27 जुलाई 2021। पिछले चार दिन से चल रहे मंत्री टीएस सिंहदेव और विधायक बृहस्पति सिंह विवाद का आज पटाक्षेप हो गया। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने बृहस्पति के सिंहदेव पर लगाए गए आरोपों को असत्य करार दिया, बृहस्पति ने सदन में इसके लिए खेद जताया। दोनों पक्षों ने विधानसभा में गतिरोध दूर होने […]

रायपुर, 27 जुलाई 2021। पिछले चार दिन से चल रहे मंत्री टीएस सिंहदेव और विधायक बृहस्पति सिंह विवाद का आज पटाक्षेप हो गया। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने बृहस्पति के सिंहदेव पर लगाए गए आरोपों को असत्य करार दिया, बृहस्पति ने सदन में इसके लिए खेद जताया। दोनों पक्षों ने विधानसभा में गतिरोध दूर होने पर बड़ी मासूमियत से सदन का आभार जताया। लेकिन, सवाल उठता है क्या वाकई मामले का पटाक्षेप हो गया है। तो सियासत को समझने वालों का जवाब होगा…कतई नहीं। दोनों पक्षों ने तलवारें मौके की नजाकत को देखते जरूर कुछ समय के लिए पीठ पीछे छिपा ली है, मगर म्यान में नहीं डाला है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से जिस तरह ढाई-ढाई साल की बातें की जा रही थी, उसको देखते ये कहने में कोई हिचक नहीं कि छत्तीसगढ़ की सियासत में ये तो होना ही था। ये जरूर हुआ कि बृहस्पति सिंह के चलते जरा जल्दी हो गया, वरना कुछ दिन बाद होता। बृहस्पति ने अपने फॉलो गाड़ी में तोड़-फोड़ मामले में टीएस सिंहदेव पर संगीन आरोप लगाकर इस तलवारबाजी के लिए जमीन तैयार कर दी। बृहस्पति ने अपना काम बड़ी शिद्दत के साथ की। इसकी प्रतिक्रियाएं इतनी तेजी से हुई कि राजनीतिक प्रेक्षक भी भौंचक रह गए। लोग जितना समझने की कोशिश कर रहे थे, दोनों पक्ष उससे आगे निकल जा रहे थे। सदन से बाहर जाकर सबसे बड़ा बम फोड़ा टीएस सिंहदेव ने। इससे विधानसभा ही नहीं, पूरा छत्तीसगढ़ हिल गया। इसकी गूंज दिल्ली तक भी पहुंची।
इस दौरान चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण में रिश्तेदारों को उपकृत करने की खबर प्रकाशित हुई। फिर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर केंद्र के कई ऐसे नेताओं में इस पर ट्विट करने की होड़ मच गई, जिन्होंने छत्तीसगढ़ को एक बार देखा भी नहीं होगा। फिर देर शाम सीएम हाउस में 54 विधायक जुट गए। फिर कुछ आदिवासी विधायकों ने बृहस्पति को नोटिस देने का विरोध भी किया। इन घटनाओं को महज संयोग मान कर खारिज नहीं किया जा सकता। बृजमोहन अग्रवाल भी आज जिस तरह सदन में पूरा मोर्चा संभालते हुए सिंहदेव को निशाने पर लिया, उसके भी अपने सियासी मायने हैं।
सियासी पंडितों का मानना है, सिंहदेव और बृहस्पति प्रकरण पर विधानसभा में पटाक्षेप हुआ है, बाहर नहीं। सदन के बाहर शह-मात का खेल जारी रहेगा। कब तक…? जब तक ढाई साल के इश्यू पर आलाकमान अपना मंतव्य क्लियर न करें। हालांकि, ये इतना आसान भी नहीं होगा। पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस आलाकमान ने दबा कर नवजोत सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष बना दिया क्योंकि, उनके साथ 62 विधायक थे। अगर अमरिंदर के साथ विधायक होते तो सिद्धू का अध्यक्ष बनना कदापि संभव नहीं था।
क्योंकि, सिद्धू ने जब तक विधायकों की ताकत नहीं दिखाई थी, कैप्टने अमरिंदर आलाकमान के काबू में नहीं आ पा रहे थे। ये सही है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अब अपने फैसलों में काफी सख्ती बरत रहे हैं। उत्तराखंड में भी ये दिखा। लेकिन, सबसे अहम संख्या बल है। इसे नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में विधायकों की बात करें तो फिलहाल सीएम भूपेश बघेल का पलड़ा भारी दिखता है। कल शाम खबर है सीएम हाउस में 54 विधायक जुट गए थे। टीएस सिंहदेव के साथ संख्या बल की क्या स्थिति है, ये फिलहाल स्पष्ट नहीं हो पाई है। सिंहदेव ने कल जब सदन छोड़ा तब उनके साथ मंत्री प्रेमसाय सिंह विधानसभा के पोर्च तक आए। हालांकि, वे सिंहदेव के कोटे से ही मंत्री बनने हैं। लिहाजा, इतना बनता भी था। बाकी इस घटना के बाद सिर्फ एक विधायक शैलेष पाण्डेय मजबूती के साथ सिंहदेव के साथ खड़े दिखे। सिंहदेव जैसे ही सदन से निकले, शैलेष भी अपनी गाड़ी से उनके पीछे हो लिए। इस एपीसोड के बाद कल वे पूरे समय सिंहदेव के साथ रहे। उनके अलावा और कोई विधायक खुलकर साथ में नहीं आया। सियासी समीक्षक हालांकि, यह भी इस बात का रेफें्रस देते हैं कि अजीत जोगी जब मुख्यमंत्री बनाए गए थे, तब उनके साथ एक भी विधायक नहीं थे। ये संदर्भ सही है। मगर उस समय की परिस्थितियां अलग थीं। तब नया मुख्यमंत्री बनाने का मसला था। फिर, उसके बाद चीजें काफी बदल चुकी है।
लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस नेताओं का विवाद विधानसभा में जरूर खतम हो गया है। लेकिन, आगे चलकर निश्चित तौर पर ये और बड़ा रूप लेगा। क्योंकि, चंदुलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज को इश्यू बनने से सरकार भी हतप्रभ है।