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Supreme Court: सुप्रीम फैसला: राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में उपभोक्ता आयोग के सदस्यों के वेतन और भत्ते होंगे एक समान

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी कर उपभोक्ता आयोग के सदस्यों के वेतन और भत्ते को एक समान करने का निर्देश दिया है। आयोग के सदस्यों को वतन व भत्ते देशभर में एकसमान होगा।

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By Radhakishan Sharma

Supreme Court: नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जिला और राज्य उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों को दिए जाने वाले वेतन और भत्तों का एक समान पैटर्न तैयार किया है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की डिवीजन बेंच ने उपभोक्ता फोरम के सदस्यों के वेतन और सेवा शर्तों में असमानताओं से संबंधित स्वत: संज्ञान वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश जारी किया है।

डिवीजन बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण (राज्य आयोग और जिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें) मॉडल नियम, 2020 को अधिसूचित करने के बाद कई राज्यों ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 102 के तहत अपने स्वयं के नियम बनाए हैं, जिससे राज्यों के बीच वेतन में असमानता पाई गई है। बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि राज्य आयोगों के सदस्यों और जिला आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों को मिलने वाले वेतन और भत्ते में बहुत भिन्नता है। लिहाजा कुछ राज्यों में उन्हें बहुत कम राशि मिल रही है।

बेंच ने कहा कि 2019 अधिनियम उपभोक्ता हितों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने और उपभोक्ता विवादों के प्रभावी निवारण के लिए बनाया गया था और राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि जब तक उन्हें उचित पारिश्रमिक और भत्ते नहीं दिए जाते, वे अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन नहीं करेंगे। चूंकि नियमों में बहुत भिन्नता है, इसलिए वेतन और भत्तों के संबंध में सेवा शर्तों के एक समान पैटर्न को निर्धारित करने

0 डिवीजन बेंच ने यह कहा

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि नियमों में बहुत असमानता है, लिहाजा वेतन और भत्तों के संबंध में सेवा शर्तों के एक समान पैटर्न को निर्धारित करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना उचित मामला है।

मॉडल नियमों के नियम 7, 8 और 9 मकान किराया, परिवहन, अवकाश और चिकित्सा सुविधाओं जैसे भत्तों से संबंधित हैं। डिवीजन बेंच ने कहा कि रिटायर जिला न्यायाधीशों और फोरम के सदस्य के रूप में नियुक्त सरकारी अधिकारियों द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन की सुरक्षा की जानी चाहिए।

इन संशोधनों के साथ समान रूप से मॉडल नियमों का करना होगा पालन

राज्य उपभोक्ता आयोग के सदस्य द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग द्वारा निर्धारित वेतन के सुपर टाइम स्केल में जिला न्यायाधीश को स्वीकार्य वेतन और सभी भत्ते पाने के हकदार होंगे। परिणामस्वरूप, नियम 7, 8 और 9 में निर्दिष्ट भत्ते उन पर लागू नहीं होंगे।

जिला आयोगों के अध्यक्षों को भी द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सुपर टाइम स्केल में जिला न्यायाधीशों के बराबर वेतन और भत्ते मिलेंगे। भत्ते से संबंधित नियम भी उन पर लागू नहीं होगा।

जिला आयोगों के सदस्यों को द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग द्वारा निर्धारित जिला न्यायाधीशों के चयन ग्रेड के अनुसार वेतन और भत्ते मिलेंगे। इन सदस्यों के भत्ते मॉडल नियमों के नियम 7, 8, 9 और 11 द्वारा शासित नहीं होंगे।

किसी भी अध्यक्ष या सदस्य द्वारा लिया गया अंतिम वेतन संरक्षित किया जाएगा यदि यह न्यायालय के निर्देशों के तहत निर्धारित वेतन से अधिक है। ऐसे मामलों में, वे अपने वेतन में से किसी भी लागू पेंशन को घटाकर प्राप्त

बेंच ने यह भी गौर किया कि सदस्य पूर्णकालिक हैं या अंशकालिक, या वे न्यायिक या गैर-न्यायिक पृष्ठभूमि से आते हैं, इस आधार पर भेद 2019 अधिनियम के तहत नहीं किए गए हैं। ऐसे सभी व्यक्तियों को वेतन और भत्ते के उद्देश्य से पूर्णकालिक सदस्य माना जाएगा।

0 कोर्ट ने यह यह आदेश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से होंगे लागू

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में साफ कहा कि ये निर्देश देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से लागू होंगे। हालांकि, यदि कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश वर्तमान में अधिक पारिश्रमिक दे रहा है, तो उसे संरक्षित किया जाना जारी रहेगा।

इन निर्देशों के तहत देय सभी बकाया राशि आदेश की तारीख से छह महीने के भीतर वितरित की जानी चाहिए।

0 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दी ये छूट

डिवीजन बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 102 के तहत अपने मौजूदा नियमों में संशोधन करने की स्वतंत्रता दी, ताकि उन्हें न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप बनाया जा सके। कोर्ट ने राज्यों द्वारा अनुपालन की रिपोर्ट करने लिए मामले को 22 सितंबर, 2025 को सूचीबद्ध किया। इस दिन अगली सुनवाई होगी।

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