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Supreme Court News: सजा 7 साल, जेल में काट लिया 8 साल, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब, पूछा... आखिर ऐसा क्यों हुआ...

Supreme Court News: दुष्कर्म के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने एक व्यक्ति को सात साल की सजा सुनाई थी। सात साल की सजा काटने के बाद भी उसकी जेल से रिहाई नहीं हुई। राह देखते-देखते एक साल और बीते गया। जेल से रिहाई ना होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रिहाई की मांग की है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को इस संबंध में स्पष्टीकरण देने कहा है। कोर्ट ने पूछा है कि आखिर इतनी बड़ी व गंभीर चूक कैसे हुई और किस स्तर पर की गई।

Supreme Court News: सजा 7 साल, जेल में काट लिया 8 साल, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब, पूछा... आखिर ऐसा क्यों हुआ...
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By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। बलात्कार के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सात साल की सजा सुनाई थी। सात साल के बजाय वह आठ साल से जेल में बंद है। एक साल बाद भी उसकी रिहाई नहीं हो पाई है। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार से पूछा है कि सात साल की सजा काटने के बाद याचिकाकर्ता को रिहा क्यों नहीं किया गया। किन कारणों से एक साल से ज्यादा वह जेल में बंद है और रिहाई क्यों नहीं की जा रही है। डिवीजन बेंच ने इसे गंभीर चूक माना है। राज्य सरकार को इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि इस तरह की गंभीर चूक किस स्तर पर की गई है। याचिकाकर्ता को 2004 में मध्य प्रदेश सेशन कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 376(1), 450 और 560 बी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के फैसले को बलात्कार के आरोपी ने चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सेशन कोर्ट के फैसले में जरुरी तब्दीली कर दी। हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा को घटाते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई। याचिकाकर्ता ने सात के बजाय आठ साल की सजा काट ली थी। तब रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने इस मामले को संज्ञान में लिया। जून में याचिकाकर्ता को जेल से रिहा कर दिया गया है।

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