Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का फैसला: फर्जी दस्तावेज जमा करने वाले को अगर फायदा नहीं मिला तब धोखाधड़ी का नहीं बनता अपराध...
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा, फर्जी दस्तावेज पेश करने वाले को अगर दस्तावेजों के आधार पर कोई लाभ नहीं मिला है तब ऐसी परिस्थिति में संबंधित व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध नहीं बनता है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

Supreme Court News: दिल्ली। फर्जी दस्तावेज पेश करने और अपराध के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा है, फर्जी दस्तावेज जमा करने वालों को अगर दस्तावेज के आधार पर कोई लाभ नहीं मिला है तो उसके खिलाफ अपराध नहीं बनता है। डिवीजन बेंच ने कहा, धोखाधड़ी साबित करने के लिए जरूरी है कि कोई व्यक्ति झूठा बयान देकर दूसरे को नुकसान पहुंचाए और उसे ऐसा करने के लिए उकसाए जो वह नहीं करता। इस मामले में ऐसा कोई बेईमान इरादा नहीं था। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद एक शैक्षणिक संस्थान प्रमुख के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी का मामला रद्द कर दिया है। संस्थान प्रमुख पर आरोप है कि फर्जी फायर डिपार्टमेंट एनओसी का इस्तेमाल कर संबद्धता Affiliation हासिल कर लिया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच ने कहा कि कॉलेज को मान्यता दिलाने के लिए फायर डिपार्टमेंट की नकली NOC जमा करना न तो धोखाधड़ी Cheating है और न ही जालसाजी है। यह दस्तावेज़ जमा करना कानूनी तौर पर अनिवार्य नहीं था, और न ही शिक्षा विभाग को संबद्धता देने के लिए इससे कोई वास्तविक प्रभाव पड़ा।
याचिकाकर्ता एक शैक्षणिक सोसाइटी का प्रमुख है। 14.20 मीटर ऊंची इमारत में कॉलेज चला रहा है। शिक्षा विभाग में फर्जी एनओसी जमा कीर संबद्धता हासिल करने का आरोप लगाया गया है। जिला फायर अफसर की शिकायत पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 420 धोखाधड़ी के तहत एफआईआर दर्ज कर चालान पेश किया था। पुलिस ने जिस फर्जी दस्तावेज के आधार पर संबद्धता लेने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज किया था, दस्तावेज हासिल नहीं कर पाया।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए लिखा है राष्ट्रीय भवन संहिता National Building Code, 2016 के तहत 15 मीटर से कम ऊंचाई वाली शैक्षणिक इमारतों के लिए फायर एनओसी लेने की अनिवार्यता नहीं है। ऐसी इमारतों के लिए संबद्धता नवीनीकरण में एनओसी नहीं मांगने का निर्देश हाई कोर्ट ने पहले ही जारी कर दिया था।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के सामने तर्क पेश करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के मद्देनजर एनओसी लेने की ज़रूरत ही नहीं थी, तो इस आधार पर शिक्षण संस्थान को संबद्धता मिलने का सवाल ही नहीं उठता। लिहाजा याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं बनता। मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धोखाधड़ी साबित करने के लिए जरूरी है कि कोई व्यक्ति झूठा बयान देकर दूसरे को नुकसान पहुंचाए और उसे ऐसा करने के लिए उकसाए जो वह अन्यथा नहीं करता। इस मामले में ऐसा कोई बेईमान इरादा dishonest inducement नहीं था।
डिवीजन बेंच ने कहा, याचिकाकर्ता को बिना एनओसी कानूनीतौर पर मान्यता मिलने का अधिकार था, इसलिए न तो उसे कोई अनुचित लाभ हुआ और न ही शिक्षा विभाग को कोई नुकसान पहुंचा। बेंच ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 468 जालसाजी और धारा 471 फर्जी दस्तावेज़ का इस्तेमाल भी लागू नहीं होतीं, क्योंकि यहां याचिकाकर्ता का आवश्यक 'दुर्भावना पूर्ण इरादा सिद्ध नहीं होता।
