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Sindoor khela in Bengal: आज होगी बंगाल में सिंदूर खेला की रस्म, मां को प्रेमपूर्वक दी जाएगी विदाई

Sindoor khela in Bengal: आज होगी बंगाल में सिंदूर खेला की रस्म, मां को प्रेमपूर्वक दी जाएगी विदाई
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By Sandeep Kumar Kadukar

रायपुर। आज बंगाल में विश्वविख्यात 'सिंदूर खेला' की रस्म निभाई जाएगी। सिंदूर खेला यानी दुर्गा मां की विदाई की रस्म। यह खास रस्म आज 24 अक्टूबर को पूरी की जाएगी। नौ दिन पूर्व मायके आई विवाहित बेटी 'मां दुर्गा' के वापस जाने से पूर्व उनके साथ विवाहित महिलाएं सिूंदूर खेलती हैं। माता के साथ सिंदूर खेलने के बाद विवाहित स्त्रियां आपस में भी सिंदूर खेलती हैं। फिज़ा में उड़ते सिंदूर की लालिमा,प्रेम और प्राथर्ना से गुंजायमान होता आसमान और पंडालों में बहता प्रेमरस... दीदार के लिए देश विदेश से आए दर्शकों को अपने रंग में ऐसे भिगोता है कि लगता है दुनिया में इस पल सबसे सुंदर कुछ है तो सिर्फ दुर्गा पंडाल का यह अद्भुत नजारा। सिंदूर खेला की इस खास परंपरा के बारे में आज आपको हम इस लेख में बताते हैं।

बहुत खास है बंगाल की दुर्गा पूजा और उसका समापन

बंगाल में दुर्गा मां के आगमन का आहवान कर भव्य पंडाल सजाए जाते हैं। ये इतने विराट और मनमोहक होते हैं कि टेलीविजन पर वहां के दश्य देख ही देश - विदेश के लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा के पंडालों के दर्शन के लिए आगंतुकों का मेला लगता है। इस दौरान यहां का माहौल इतना भक्तिपूर्ण और उत्साह से भरा होता है जैसे लोग अपना दैनिक जीवन और उसकी सारी परेशानियां भूल सिर्फ दुर्गा मां में मगन हैं। नौ दिन की दुर्गा पूजा के बाद दशमीं के दिन माता की विदाई से पूर्व संपन्न होती है सिंदूर खेला की रस्म।

ऐसे खेला जाता है सिंदूर

सिंदूर खेला में महिलाओं का हुजूम उमड़ता है। कौन किसे जानता है,कौन नहीं,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी महिलाएं एक - दूसरे से ऐसे घुल मिलकर सिंदूर खेलती हैं जैसे सालों पुराना रिश्ता हो। सबसे पहले पंडाल में महाआरती का आयोजन होता है। उसके बाद मां को भोग लगाया जाता है जिसमें पंता भात,शाक,कोचुर आदि चीजें शामिल होती हैं। इसके बाद परंपरा के अनुसार मां दुर्गा के सामने शीशा रखा जाता है जिसमें मां के चरणों के दर्शन होते हैं। चरण वंदना कर घर परिवार में सुख संपदा की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद शुरू होता है सिंदूर खेला।

सिंदूर खेला में विवाहित महिलाएं एक - दूसरे को पान के पत्ते से सिंदूर लगाती हैं। आसमान में सिंदूर उड़ता है। जो उत्सवी माहौल में रंग भर देता है। भावविभोर महिलाएं नृत्य करती हैं और परस्पर प्रेम लुटाती हैं। इस दौरान कई महिलाओं के आंखों में खुशी के आंसू भी उमड़ आते हैं। भावनाओं का यह ज्वार माता की विदाई के दृश्य को अविस्मरणीय बना देता है। सिन्दूर खेला के बाद अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाता है। करीब 450 साल पुरानी सिंदूर खेला की यह अद्भुत रस्म अपने पूरे सौंदर्य और गरिमा के साथ बंगाल के साथ-साथ देश के अनेक हिस्सों में आज 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी।

Sandeep Kumar Kadukar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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