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जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025: कैसे लेफ्ट यूनिटी ने किया क्लीनस्वीप? सेंट्रल पैनल से ABVP का हुआ सफाया! जानिए कैसे 1971 से अब तक कैसे JNU बना हुआ है लेफ्ट का अभेद्य किला?

JNU Student Union Election 2025: जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 में लेफ्ट यूनिटी ने चारों पद जीते। जानिए कैसे 1971 से अब तक जेएनयू वामपंथ का किला बना रहा, एबीवीपी के उभार और AISA–SFI की भूमिका के साथ।

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025: कैसे लेफ्ट यूनिटी ने किया क्लीनस्वीप? सेंट्रल पैनल से ABVP का हुआ सफाया! जानिए कैसे 1971 से अब तक कैसे JNU बना हुआ है लेफ्ट का अभेद्य किला
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By Ragib Asim

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के छात्रसंघ चुनाव में एक बार फिर वामपंथी संगठन ‘लेफ्ट यूनिटी’ ने चारों पदों पर जीत दर्ज की है। अदिति मिश्रा (President), के. गोपिका बाबू (Vice President), सुनील यादव (General Secretary) और दानिश अली (Joint Secretary) की जीत ने यह साफ कर दिया है कि जेएनयू में वाम राजनीति का प्रभाव था, है और रहेगा।


कौन हैं लेफ्ट यूनिटी में?

इस गठबंधन में चार प्रमुख वामपंथी छात्र संगठन शामिल हैं AISA (All India Students Association), SFI (Students Federation of India), DSF (Democratic Students Front) और AISF (All India Students Federation)। ये संगठन विचारधारात्मक रूप से भले अलग हों लेकिन जेएनयू कैम्पस में इनका साझा लक्ष्य सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा में लोकतांत्रिक अवसरों को बचाए रखना है।
1971 से अब तक- कैसे बना जेएनयू लेफ्ट राजनीति का गढ़
जेएनयू का छात्रसंघ ( JNUSU ) 1971 में गठित हुआ था। तब से अब तक कैंपस की राजनीति पर लेफ्ट विचारधारा का गहरा प्रभाव रहा है। शुरुआती दौर में SFI का लगातार दबदबा रहा जिसने 1971 से 1978 तक लगभग हर चुनाव जीता। आपातकाल के समय डी. पी. त्रिपाठी जैसे नेता जेएनयू के विरोध का चेहरा बने।
लेफ्ट गठबंधन का विस्तार और विभाजन
1978 में पहली बार SFI ने AISF के साथ गठबंधन किया और यह साझेदारी 1990 तक चलती रही। 1993 में AISA के रूप में एक नई लेफ्ट शक्ति उभरी जिसने SFI–AISF गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा। 1996 में AISA ने पहली बार प्रेसिडेंट का पद जीत लिया। बाद में 1997 में लेफ्ट यूनिटी फिर से एकजुट हुई और लगातार चारों पदों पर जीत का सिलसिला जारी रहा।
एबीवीपी का उभार और चुनौतियां
1980 के अंत में RSS से जुड़ा छात्र संगठन ABVP जेएनयू में एक्टिव हुआ। 1991 में उसने पहली बार संयुक्त सचिव का पद जीता और 1996 में तीन मुख्य पदों पर जीत हासिल की। साल 2000 में संदीप महापात्र जेएनयू के पहले ABVP प्रेसिडेंट बने यह जेएनयू इतिहास का टर्निंग पॉइंट था। लेकिन उसके बाद कैंपस राजनीति फिर वाम पंथ के पक्ष में झुक गई।
2015 के बाद वाम राजनीति की वापसी
2015 के चुनावों में कन्हैया कुमार, शेहला रशीद और रामा नागा की लेफ्ट टीम ने तीन मुख्य पद जीते जबकि ABVP के सौरभ शर्मा ने जॉइंट सेक्रेटरी पद पर कब्ज़ा किया। इसके बाद चारों लेफ्ट संगठन SFI, AISA, DSF और AISF ने मिलकर ‘यूनाइटेड लेफ्ट’ गठबंधन बनाया जो तब से लगातार चुनावों में मजबूत रहा है।
2025 की जीत का मतलब
लेफ्ट यूनिटी की यह जीत सिर्फ़ चुनावी नतीजा नहीं बल्कि कैंपस के विचार और संस्कृति पर लगी मुहर भी है। जेएनयू में सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता, और स्वतंत्र विचार की परंपरा वाम विचारधारा के ज़रिए लगातार जीवित रही है। लेखक (खुद JNU संबंध रहा है) के मुताबिक यह चुनाव दिखाता है कि युवा अब भी क्रिटिकल थिंकिंग और विचारधारात्मक राजनीति को महत्व दे रहे हैं।
भविष्य की चुनौतियां
हालांकि लेफ्ट यूनिटी ने फिर से अपनी बढ़त साबित की है, लेकिन डिजिटल एज में राजनीतिक ध्रुवीकरण और नए वैचारिक समूहों की चुनौतियां बढ़ रही हैं। जेएनयू के लिए अब सबसे बड़ी कसौटी यह होगी कि वह अपनी विचारधारा को कैम्पस से बाहर देश की युवा राजनीति तक कैसे ले जाता है?

Ragib Asim

रागिब असीम – समाचार संपादक, NPG News रागिब असीम एक ऐसे पत्रकार हैं जिनके लिए खबर सिर्फ़ सूचना नहीं, ज़िम्मेदारी है। 2013 से वे सक्रिय पत्रकारिता में हैं और आज NPG News में समाचार संपादक (News Editor) के रूप में डिजिटल न्यूज़रूम और SEO-आधारित पत्रकारिता का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने करियर की शुरुआत हिन्दुस्तान अख़बार से की, जहाँ उन्होंने ज़मीन से जुड़ी रिपोर्टिंग के मायने समझे। राजनीति, समाज, अपराध और भूराजनीति (Geopolitics) जैसे विषयों पर उनकी पकड़ गहरी है। रागिब ने जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है।

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