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Delhi News: नाबालिग को सामान्य तरीके से छूना पॉक्सो कानून के तहत यौन अपराध है? दिल्‍ली HC का बड़ा फैसला

Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सोमवार को कहा कि सामान्य तरीके (general methods)से स्पर्श करने को पेनिट्रेटिव यौन अपराध (Penetrative Sexual Assault) करने के लिए किसी नाबालिग के शरीर से छेड़छाड़ (body manipulation)नहीं माना जा सकता है।

Delhi News: नाबालिग को सामान्य तरीके से छूना पॉक्सो कानून के तहत यौन अपराध है? दिल्‍ली HC का बड़ा फैसला
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By S Mahmood

Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सोमवार को कहा कि सामान्य तरीके (general methods)से स्पर्श करने को पेनिट्रेटिव यौन अपराध (Penetrative Sexual Assault) करने के लिए किसी नाबालिग के शरीर से छेड़छाड़ (body manipulation)नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति अमित बंसल (Justice Amit Bansal) की पीठ ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट एक अलग तरह का अपराध है।

इसके साथ ही अदालत ने आरोपी को उसके शिक्षक भाई से ट्यूशन पढ़ने वाली छह साल की बच्ची के निजी अंग को छूने पर एग्रेवेटिड पेनट्रेटिव यौन अपराध का दोषी ठहराये जाने के फैसले को बरकरार रखने से इनकार कर दिया। हालांकि अदालत ने कानून के तहत एग्रेवेटिड यौन अपराध के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने तथा पांच साल कैद की सजा सुनाये जाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया।

अदालत ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दोषी की अपील को निपटाते हुए कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (सी) के अवलोकन से पता चलता है कि पेनिट्रेटिव यौन अपराध के लिए आरोपी को पेनिट्रेशन के लिए बच्ची के शरीर के किसी अंग से छेड़छाड़ करनी होती। आदेश में कहा गया कि स्पर्श करने के सामान्य कृत्य को कानून की धारा 3 (सी) के तहत छेड़छाड़ करने वाला नहीं समझा जा सकता है।

अदालत ने कहा- POCSO अधिनियम की धारा 3 (सी) के अवलोकन से पता चलता है कि किसी कृत्य को प्रवेशन यौन हमला मानने के लिए, आरोपी का बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से से गंभीर छेड़छाड़ जरूरी है ताकि पेनिट्रेशन हो सके। साधारण स्पर्श को अधिनियम की धारा 3 (सी) के तहत गंभीर छेड़छाड़ नहीं माना जा सकता है। यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि POCSO अधिनियम की धारा 7 (यौन उत्पीड़न) के लिए किया गया बैड टच एक अलग अपराध है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा- विद्वान एपीपी की दलील उचित है कि किसी भी स्पर्श को गंभीर माना जाएगा, तो अधिनियम की धारा-7 निरर्थक हो जाएगी। अदालत ने पाया कि उक्त मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि पीड़िता के शरीर के किसी हिस्से से कोई गंभीर छेड़छाड़ की गई थी ताकि पेनिट्रेशन की वारदात को अंजाम दिया जा सके।

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