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“बेटियां हमेशा बेटियां रहती है, बेटे तो बस शादी तक….”…सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी… कहा- बेटियों को भी देना होगा बेटों के बराबर जायदाद में हिस्सा…. 2005 के बाद के बंटवारे में लागू करना होगा ये नियम

“बेटियां हमेशा बेटियां रहती है, बेटे तो बस शादी तक….”…सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी… कहा- बेटियों को भी देना होगा बेटों के बराबर जायदाद में हिस्सा…. 2005 के बाद के बंटवारे में लागू करना होगा ये नियम
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By NPG News

नयी दिल्ली 11 अगस्त 2020। सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को भी पिता या पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सेदार बताया है। जस्टिस अरूण मिश्रा की बेच ने एक अहम फैसले में कहा है कि ये उत्तराधिकार कानून 2005 में संशोधन की व्याख्या है। यानि किसी पिता की मृत्यु के बाद बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटे या बेटों के बराबर ही हिस्सा दिया जायेगा।

कोर्ट ने कहा है कि बेटियां हमेशा बेटियां रहती हैं, लेकिन बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद साफ हो गया है कि 5 सितंबर 2005 को संसद ने हिंदू परिवार के उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किया था, जिसके जरिये बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सेदार माना था। ऐसे में नौ सितंबर 2005 को ये संशोधन लागू होने से पहले भी अगर किसी पिता की मौत हुई है और संपत्ति का बंटवारा अभी हो रहा हो तो बेटियों को उसकी हिस्सेदारी देनी होगी।

इस मामले कर इतिहास में जाएं तो 1985 में जब एनटी रामाराव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उस समय उन्होंने पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर की हिस्सेदारी का कानून पास किया था. इसके ठीक 20 साल बाद संसद ने 2005 में उसी का अनुसरण करते हुए पूरे देश भर के लिए पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर बेटों के बराबर हिस्सेदार मानने का कानून पास किया. ये मामला बहन भाइयों के बीच संपत्ति के बंटवारे का था. सुप्रीम कोर्ट में बहन कि गुहार थी जिसमें भाइयों ने अपनी बहन को यह कहते हुए संपत्ति की बराबर की हिस्सेदारी देने से मना कर दिया कि पिताजी की मृत्यु 2005 में 9 सितंबर से पहले हुई थी. लिहाजा यह संशोधन इस मामले में लागू नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के जरिए साफ कर दिया है 9 सितंबर 2005 से पहले अगर किसी पिता की मृत्यु हो गई हो तो भी बेटियों को संपत्ति में बेटों के बराबर हिस्सेदारी मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी अहम है कि बेटियां पूरी जिंदगी माता-पिता को प्यार करने वाली होती हैं. एक बेटी अपने जन्म से मृत्यु तक माता-पिता के लिए प्यारी बेटियां होती हैं. जबकि विवाह के बाद बेटों की नीयत और व्यवहार में बदलाव आता है लेकिन बेटियों की नीयत में नहीं. विवाह के बाद बेटियों का प्यार माता-पिता के लिए और बढ़ता ही जाता है. इस मामले में इस नजरिए से सुप्रीम कोर्ट का फैसला अहम है कि जब पूरी दुनिया में लड़कियां लड़कों के बराबर अपनी हिस्सेदारी साबित कर रही हैं, ऐसे में सिर्फ संपत्ति के मामले में उनके साथ यह मनमानी और अन्याय ना हो. जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने यह फैसला देते हुए यह साफ कर दिया है बेटियों को आइंदा भी बेटों के बराबर संपत्ति में हिस्सेदारी मिलेगी. यानी इससे नारी शक्ति को मजबूत करने का एक और रास्ता साफ होगा.

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