Nirbhay Gujjar Ki Kahani: बिहड़ का सबसे अय्याश डकैत- जिस गाँव जाता बलात्कार करके ही लौटता
Nirbhay Gujjar Ki Kahani : निर्भय सिंह गुर्जर चंबल का सबसे दुर्दांत और आखिरी डकैत था। 30 वर्षों के अपने आपराधिक इतिहास में उसने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीहड़ को खूब आतंकित किया था...
Nirbhay Gujjar Ki Kahani : निर्भय सिंह गुर्जर चंबल का सबसे दुर्दांत और आखिरी डकैत था। 30 वर्षों के अपने आपराधिक इतिहास में उसने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीहड़ को खूब आतंकित किया था। दिन में महज दो घंटे की नींद लेने वाले डाकू नि दर्ज थे। साथ ही दो राज्यों की सरकारों ने उसपर 2.5-2.5 यानी पूरे 5 लाख का इनाम घोषित किया था. जिन्दा या मुर्दा.
डकैत निर्भय के बारे में कहा जाता था कि वह जितना दुर्दांत था उतना ही रंगीन मिजाज भी था। उसके गिरोह के जिंदा बचे कुछ सदस्यों ने निर्भय की मौत के बाद उसका रहस्य खोलते हुए बताया था कि, निर्भय जिस गांव में भी दाखिल होता, बिना किसी का बलात्कार किये वापस नहीं लौटता था। बीहड़ में भी उसके साथ परमानेंट तीन महिलाएं, जिनमें नीलम गुप्ता, सरला जाटव और मुन्नी पांडेय रहती थीं। उसने इन तीनों का अपहरण कर अपने साथ रखा था। निर्भय का अपने बेटे की पत्नी से भी अफेयर था। जब दोनों एक साथ भाग गये तो निर्भय इस धोखे से उबर नहीं पाया था। कहते हैं, यहीं से उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी।
मय पर उसकी क्रूरता के किस्से सामने आते। जो पीड़ित थे वह डर के कारण कहानी भी बताने से बचते थे। चोरी, डकैती, मर्डर करता था और साथ ही वह लोगों के हाथ पैर भी काट लेता था। 200 से ज्यादा मामले निर्भय गुर्जर पर दर्ज थे। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्य की सरकारों ने उस पर ढाई ढाई लाख रूपए का इनाम रखा था। पकड़ अर्थात अपहरण उसका मुख्य काम था। जो उस दौर के लोग हैं, वह आज भी किस्से सुनाते हैं कि कैसे चम्बल के किनारे बसे शहरों में लोग अपने घरों में रंगों रोगन कराने से डरते थे। क्योंकि उन्हें नहीं पता होता था कि कब पकड़ हो जाएगी! और पकड़ एक जिले तक सीमित नहीं थी। पकड़ को कैसे नियंत्रित किया जाता था, यह उसकी चौथी पत्नी नीलम गुप्ता ने खुद एक न्यूज चैनल को बताया था।
बिहड़ का सबसे अय्याश डकैत
निर्भय गुर्जर जितना दुर्दांत था, उतना ही अय्याश भी था। उसने चार शादियाँ की थीं। सीमा परिहार से लेकर नीलम गुप्ता तक उसकी चार बीवियां थीं। सीमा परिहार ने आत्मसमर्पण के बाद राजनीति में कदम रखकर नई शुरुआत की थी, और वह बिग बॉस में भी भाग ले चुकी हैं। मगर एक समय में उन पर 70 हत्याओं के मुक़दमे चल रहे थे। सीमा ने साल 2003 में आत्मसमर्पण कर दिया था। उसकी चौथी और अंतिम बीवी नीलम गुप्ता उसे छोड़कर उसके दत्तक बेटे के साथ भाग गयी थी, जिस पर गुस्सा होकर उसने यह कहा था कि वह उसे पकड़ कर लाने वाले को इक्कीस लाख रूपए का इनाम देगा। मगर बाद में नीलम गुप्ता ने भी साल 2004 में आत्मसमर्पण कर दिया था।
60 सदस्यों का साम्राज्य और 200 से अधिक मामले
निर्भय गूरेजर के गिरोह में 60 सदस्य थे। इनमें युद्ध सिंह उर्फ लाठी वाला, श्याम जाटव, सरला, नीलम, मंगल सिंह और शोबरन सिंह प्रमुख थे। अपने गिरोह के बूते उसने चंबल के बीहड़ों में अपना एकछत्र राज स्थापित किया था। एक दौर ऐसा था कि पुलिस वाले भी उसके गिरोह से मुकाबला करने से घबराते थे। यहीं से निर्भय के कदम धीरे-धीरे अपराध की ओर बढ़ने लगे। बाद के दिनों में निर्भय दस्यु लालाराम गिरोह के सम्पर्क में आ गया। इसी गिरोह के साथ मिलकर निर्भय ने हत्या, लूट, अपहरण, डकैती जैसे संगीन वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया। निर्भय के ऊपर यूपी और एमपी के विभिन्न जिलों में लूट, अपहरण, हत्या और डकैती के 200 से अधिक मामले दर्ज थे।
1989 में दर्ज हुआ पहला मामला
निर्भय गुर्जर का जन्म साल 1961 में औरैया जिले के थाना अयाना स्थित गंगदासपुर गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता मान सिंह के पास सात-आठ बीघा जमीन थी, लेकिन उस जमाने में सिंचाई की सुविधा नहीं थी। इस कारण पैदावार अच्छी नहीं होती थी। उसके परिवार में माता पिता के अलावा में पांच बहनें और एक छोटा भाई भी था। निर्भय की एक बहन भिंड के घिनौची गांव मे ब्याही है। आमदनी कम होने के कारण परिवार के भरण पोषण में मुश्किल आती थी। परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए निर्भय छोटी-मोटी चोरियां करने लगा। उसके खिलाफ पहला मामला वर्ष 1989 में जनपद जालौन के थाना चुर्खी में डकैती में दर्ज किया गया था।
गर्लफ्रेंड के धोखे से टूटा निर्भय
2005 में निर्भय अजीतमल थाना क्षेत्र के गांव सीता की गढिय़ा में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मारा गया था। बताया जाता है कि निर्भय के दत्तक पुत्र श्याम का उसकी पत्नी नीलम से प्रेम संबंध हो गया था। दोनों करीब-करीब एक ही उम्र के थे। साल 2005 में गैंग का उत्तराधिकारी कहा जाने वाला श्याम, निर्भय की पत्नी नीलम को लेकर फरार हो गया। निर्भय को इससे काफी दुख पहुंचा था।
दत्तक पुत्र की बगावत से शुरू हुआ अंत
श्याम और नीलम भागकर पुलिस के पास पहुंच गए। उनके सरेंडर करने से पुलिस को गिरोह के बारे में खुफिया जानकारियां मिल गईं। इसके बाद जालौन में पुलिस सतर्क हुई और उसके ठिकानों पर मुठभेड़ शुरू कर दी। सबसे पहले निर्भय का राइट हैंड बुद्ध सिंह लाठी मारा गया। इसके बाद कानपुर के तत्कालीन डीआईजी दलजीत चौधरी ने अपना जाल फैलाकर 2005 में ही चंबल के आतंक यानी निर्भय का खात्मा कर दिया था।
ऐसे हुआ निर्भय के आतंक का अंत
किस्सा बहुत रोचक है, कि आखिर इतने शहरों में फैले हुए इस आतंक के साम्राज्य पर रोक कैसे लगी थी? जो गिरोह आसपास के सभी चुनावों पर असर डालता था, घोषणाएं जारी करता था, और सपा का खास आदमी बताता था, उसका अंत कैसे हुआ था? क्यों मारा गया था? दरअसल कहा जाता है कि सत्ता की नजदीकियों नें नहीं बल्कि उससे जुड़ाव ने उसकी हत्या कराई थी। जैसे-जैसे वहयह कहता गया कि वह सपा का ख़ास है, और उसने यह कह दिया था कि शिवपाल यादव उसके भैया हैं, उसके बाद से ही कहा जाता है कि सपा में उसके प्रति नाराजगी पैदा होने लगी थी. इसके बाद, उसने यह कहना शुरू किया कि वह सपा से चुनाव लड़ना चाहता है, इतना ही नहीं यह भी वीडियो सामने आया था कि वह मुलायम सिंह के सामने ही आत्मसमर्पण करना चाहता है। यह भी सुनने में आया कि उसने सपा के लोगों को हरवा दिया था, उसके बाद ही उसके सफाए का अभियान गति पकड़ने लगा था। अमिताभ यश को उसे मारने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। और फिर उसे बीहड़ में ही घेरा जाने लगा, उसके गैंग के करीबियों के एनकाउन्टर किए गए और अंत में 7 नवम्बर 2005 को पुलिस से हुई मुठभेड़ में निर्भय गुर्जर की मौत हो गई।