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Sawan Me Rudraksha : राजनीतिक में छुएंगे आसमान, सरकारी नौकरी का भी बनेगा योग, बस सावन में कर लें ये उपाय

Sawan Me Rudraksha : राजनीतिक में छुएंगे आसमान, सरकारी नौकरी का भी बनेगा योग, बस सावन में कर लें ये उपाय
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By NPG News

रायपुर I Rudraksh Aur shiva: शिव के बिना सावन अधूरा है और रुद्राक्ष के बिना शिव। जो जीवन का महत्वपूर्ण आयाम है। भगवान शिव को रूद्राक्ष बहुत ही प्रिय है। कहते हैं कि रुद्राक्ष के दर्शन से, स्‍पर्श से तथा उसका जप करने से समस्‍त पापों का का नाश होता है।

पापों का नाश करने के लिए रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। जो सम्‍पूर्ण अभीष्‍ट मनोरथों का साधक है। भगवान शिव कहते हैं हे परमेश्‍वरी, लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फलदायी दूसरी कोई नहीं है। भगवान शिव ने समस्‍त लोकों का उपकार करने के लिए देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था। जानते हैं रुद्राक्ष की महिमा के बारे में.....

ऐसे बना रूद्राक्ष

शिव महापुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को रुद्राक्ष की पूरी महिमा सुनाई है। भगवान शिव के अनुसार वे मन को संयम में रखकर हजारों वर्षों तक घोर तपस्‍या में लगे रहे। एक दिन सहसा उनका मन क्षुब्‍ध हो उठा। वे सम्‍पूर्ण लोकों का उपकार करने वाले स्‍वतंत्र परमेश्‍वर है। अत: उस समय वे लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही उनके नेत्र पुटों से कुछ जल की बूंदें गिरीं। आंसुओं की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया।

रुद्राक्ष सर्वहितकारी

ब्रह्मचारी, वानप्रस्‍थ, गृहस्‍थ और संन्‍यासी - सबको नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने से पुण्‍य प्राप्‍त होता है। रुद्राक्ष शिव का मंगलमय लिंग विग्रह है। सूक्ष्म रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्‍त माना गया है। सभी आश्रमों, समस्‍त वर्णों, स्‍त्रियों और शूद्रों को भी भगवान शिव के आशीर्वाद के रुप में सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

श्‍वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिए।

गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिए हितकर बताया गया है।

वैश्‍यों के लिए प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्‍यक है ।

शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह वेदोक्‍त मार्ग है।

रुद्राक्ष कैसे करें धारण

शिव महापुराण के अनुसार रूद्राक्ष को हर मनुष्य को सारे मनोरथ पूर्ण करने के लिए धारण करने चाहिए। ग्‍यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्‍य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। साढ़े पांच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुंदर मुकुट बना लें और उसे सिर पर धारण करें। तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना धारण करें।

सिर पर ईशान मंत्र से, कान में तत्‍पुरुष मंत्र से तथा गले और हृदय में अघोर मंत्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। दोनों हाथों में अघोर-बीजमंत्र से रुद्राक्ष धारण करें। उदर पर वामदेव मंत्र से पंद्रह रुद्राक्षों द्वारा गुंथी हुई माला धारण करे। रुद्राक्ष की तीन, पांच या सात मालाएं ''नम: शिवाय'' मंत्र से ही रुद्राक्ष को धारण करें।

रुद्राक्ष धारण करने वाले मंत्र

एक मुखी - ॐ ह्रीं नम:

दो मुखी - ॐ नम:

तीन मुखी - ॐ क्लीं नम:

चार मुखी - ॐ ह्रीं नम:

पांच मुखी - ॐ ह्रीं नम:

छह मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

सात मुखी - ॐ हुं नम:

आठ मुखी - ॐ हुं नम:

नौ मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

दस मुखी - ॐ ह्रीं नम :

ग्‍यारह मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

बारह मुखी - ॐ क्रौं क्षौं रौं नम:

तेरह मुखी - ॐ ह्रीं नम:

चौदह मुखी - ॐ नम:

इन चौदह मंत्रों द्वारा क्रमश: एक से लेकर चौदह मुखों वाले रुद्राक्ष को धरण करने का विधान है।

शिव महापुराण में कहा गया है कि यदि आप निद्रा और आलस्‍य का त्‍याग करके श्रद्धा-भक्‍ति से सम्‍पन्‍न हो, सम्‍पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिये ऊपर लिखे मंत्रों द्वारा रुद्राक्षों को धारण करे। इसे देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा जो अन्‍य द्रोहकारी राक्षस आदि हैं, वे सब के सब दूर भाग जाते हैं।

रुद्राक्ष के कितने प्रकार

रुद्राक्ष अनेक प्रकार हैं। ये मोक्षरूपी फल देने वाले हैं।

दो मुखी : दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्‍वर कहा गया है। वह सम्‍पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है।

तीन मुखी : तीन मुखवाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधना का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं मिलती हैं।

चार मुखी : चार मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्‍पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है।

पंच मुखी : पांच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात कालाग्‍निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्‍ति देनेवाला तथा सम्‍पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुख रुद्राक्ष समस्‍त पापों को दूर कर देता है।

षड् मुखी : छह मुखवाला रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्‍वरूप है। यदि दाहिनी बांह में उसे धारण किया जाए तो धारण करने वाला मनुष्‍य ब्रह्महत्‍या आदि पापों से मुक्‍त हो जाता है।

सप्‍त मुखी : सात मुखवाला रुद्राक्ष अनंगस्‍वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्‍वर्यशाली हो जाता है।

अष्‍ट मुखी : आठ मुखवाला रुद्राक्ष अष्‍टमूर्ति भैरवरूप है, उसको धारण करने से मनुष्‍य पूर्णायु होता है और मृत्‍यु के पश्‍चात शूलधारी शंकर हो जाता है।

नौ मुखी : नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। साथ ही नौ रूप धारण करने वाली महेश्‍वरी दुर्गा उसकी अधिष्‍ठात्री देवी मानी गयी हैं। शिव कहते हैं, ''जो मनुष्‍य भक्‍तिपरायण हो अपने बायें हाथ में नौ मुख रुद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्‍चय ही मेरे समान सर्वेश्‍वर हो जाता है - इसमें संशय नहीं है।''

दश मुखी : दस मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् भगवान विष्‍णु का रूप है। उसको धरण करने से मनुष्‍य की सम्‍पूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

ग्‍यारह मुखी : ग्‍यारह मुख वाला जो रुद्राक्ष है, वह रुद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्‍य सर्वत्र विजयी होता है।

बारह मुखी : बारह मुखवाले रुद्राक्ष को केश प्रदेश में धरण करें। उसके धरण करने से मानो मस्‍तकपर बारहों आदित्‍य विराजमान हो जाते हैं।

तेरह मुखी : तेरह मुखवाला रुद्राक्ष विश्‍वेदेवों का स्‍वरूप है। उसको धारण करके मनुष्‍य सम्‍पूर्ण अभीष्‍टों को प्राप्‍त तथा सौभाग्‍य और मंगल लाभ करता है।

चौदह मुखी : चौदह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह परम शिवरूप है। उसे भक्‍ति पूर्वक मस्‍तक पर धरण करें। इससे समस्‍त पापों का नाश हो जाता है।

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