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नक्सल इतिहास के सबसे खूंखार परिवार का कैसे हुआ वर्चस्व खत्म...जानिए कितना था ईनाम, NPG की खास स्टोरी

नक्सल इतिहास के सबसे खूंखार परिवार का कैसे हुआ वर्चस्व खत्म...जानिए कितना था ईनाम, NPG की खास स्टोरी
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By NPG News

दिव्या सिंह

NPG DESK I कुख्यात नक्सली कंमाडर रमन्ना की पत्नी और कोण्टा एरिया कमेटी की इंचार्ज सावित्री ने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस दुर्दांत नक्सली कमांडर रमन्ना की तूती छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना, ओडिशा में भी बोलती थी। रमन्ना छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबलों पर हमले का मास्टर माइंड था। उसकी पत्नी सावित्री और बेटा रंजीत भी नक्सल मोर्चे पर बड़े पदों पर तैनात थे और लगातार खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया करते थे। आलम यह था कि रमन्ना पर दो करोड़ 40 लाख रुपयों का ईनाम था, लेकिन 2019 में उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। 2021 में बेटे रंजीत ने तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और आखिर में अब रमन्ना की पत्नी ने भी अपने घुटने टेक दिए और देखते ही देखते इस खूंखार परिवार का वर्चस्व समाप्त हो गया। आइए जानते हैं इस कुख्यात परिवार के बारे में, जो सैकड़ों जवानों की शहादत की वजह बना।

कमांडर रमन्ना- छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में नक्सली आतंक का पर्याय कमांडर रमन्ना उर्फ़ रावलु श्रीनिवास मूल रुप से तेलंगाना के वारंगल जिले का रहने वाला था। वह 1982 में नक्सल संगठन में शामिल हुआ। उसे सेंट्रल कमेंटी का मेंबर 2014 में बनाया गया था। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का हेड होने के नाते बस्तर के जंगलों में नक्सली मूवमेंट की जिम्मेदारी रमन्ना के कंधो पर ही थी। इसके अलावा महाराष्ट्र में पड़ने वाले गढ़चिरौली के जंगलों में भी रमन्ना का सिक्का चलता था।

पुलिस और सुरक्षबलों पर हमले के लिए कुख्यात था रमन्ना

रमन्ना छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों पर हुए कई हमलों का नेतृत्व किया था।2010 में दंतेवाड़ा के चिंतालनार गांव में 76 सीआरपीएफ की शहादत का सबब बने हमले का सूत्रधार रमन्ना ही था।इसके बाद 2014 में सुकमा जिले में 16 जवानों की मौत का कारण भी वही बना।2017 में बुरकापाल में 25 सीआरपीएफ के जवानों पर हमले के पीछे भी रमन्ना ही मास्टर माइंड था।

सभी हमलों में माना जाता है हाथ

रमन्ना का ठिकाना तो दंडकारण्य के जंगल थे लेकिन ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा में शायद ही कोई नक्सली हमला होता था जिसके पीछे उसका दिमाग नहीं काम करता था। वो नक्सली हमलों की प्लानिंग का मास्टर माइंड था। नक्सलियों के लिए हथियार बनाने का भी महारथी था और इसकी ट्रेनिंग भी दिया करता था। नक्सलियों की बंदूक के नाम से कुख्यात 'भरमार' बनाने का वो स्पेशलिस्ट माना जाता था।

नक्सलवाद के दंश से घायल छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा की सरकारों ने उस पर करीब दो करोड़ चालीस लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। अकेले बस्तर पुलिस ने उस पर 40 लाख रुपए का इनाम रखा था।

सावित्री - रमन्ना की पत्नी सोडी ईडीमी उर्फ सावित्री भी अंडरग्राउंड माओवादी लीडर थी। अब तक वह कोण्टा एरिया कमेटी के इंचार्ज के पद पर थी। वह दंडकारण्य महिला विंग की प्रमुख थी और बेहद सक्रीय थी। लेकिन सावित्री पिछले काफी समय से बीमार चल रही थी।

रंजीत- रमन्ना और सावित्री का बेटा श्रीकांत उर्फ रंजीत पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के लिए काम करता था। वह स्टेट कमेटी का मेंबर था। रंजीत ने तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों में रहकर ऊंचे दर्जे तक पढ़ाई भी की थी। 2017 में उसे तेलंगाना स्टेट कमेटी का सदस्य बनाया गया। उसे बड़ी जिम्मेदारियाँ दी ही जाने वाली थीं कि 2021 में उसने तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

परशरामुलु-पत्नी और पुत्र के अलावा रमन्ना का भाई पराशरामुलु भी पूर्व नक्सलवादी नेता था जो 1994 में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया था।

पति की मौत और बेटे के आत्मसमर्पण के बाद आखिर में सावित्री ने भी आत्मसमर्पण कर दिया।और इस तरह तीन दशक से भी अधिक समय से नक्सल बेल्ट पर चलता इस परिवार का वर्चस्व भी समाप्त हो गया। नक्सलवाद से त्रस्त राज्यों के लिए यह बड़ी राहत की खबर है। वहीं सावित्री के इस कदम से नक्सलियों में नाराजगी है। नक्सलियों की बस्तर डिवीजन के सचिव गंगा ने सावित्री को कायर और स्वार्थी कहा है लेकिन हकीक़त यह है नक्सली इस वक्त खुद बैकफुट पर हैं। इस खूंखार परिवार की छत्रछाया में दंडकारण्य एरिया नक्सलियों के लिए सेफ ज़ोन की तरह था। नक्सलियों को यहां पनाह पाने में आसानी होती थी लेकिन अब आगे उनकी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

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