Land Copmensation Scam: मुआवजे के मास्टरमाइंड! छत्तीसगढ़ में अलग-अलग प्रोजेक्ट में मुआवजे का हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला...
Land Copmensation Scam: जीरो टॉलरेंस नीति पर चल रही विष्णु देव साय की सरकार ने कसा शिकंजा, जांच शुरू

Land Copmensation Scam: रायपुर। छत्तीसगढ़ में केंद्र और राज्य सरकार के कई अलग-अलग प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कहीं नेशनल हाइवे भारतमाला सीरीज की सड़कें बन रही हैं, तो कहीं सिंचाई परियोजना का काम चल रहा है। कहीं नहर परियोजना, तो कहीं कोल ब्लाक आवंटन का कार्य प्रगति पर है। इन सभी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण और भूअर्जन की प्रक्रिया भी चलती रहती है। इन सभी मामलों में जिनके घर, खेत, पेड़ या अन्य कोई संपत्ति है, उन्हें मुआवजा देने की प्रक्रिया भी चालू है। लेकिन भूमाफिया और प्रशासनिक सेवा के अफसर बाबुओं के दम पर मुआवजे का ऐसा खेल खेल रहे हैं, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। छत्तीसगढ़ में अलग-अलग प्रोजेक्ट में ऐसे करीब हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का मुआवजा घोटाला सामने आ चुका है। हालांकि लगभग एक एक केस में खुलासे के बाद जांच और कार्रवाई का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। क्योंकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है। गड़बड़ी में लिप्त किसी भी अधिकारी को बख्शा नहीं जाएगा। सरकार ने स्पष्ट किया है कि जनकल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इसलिए होते हैं घोटाले
दरअसल, भू अर्जन के दौरान जमीन चले जाने से प्रभावित परिवारों को मुआवजा तो मिलता ही है साथ ही विस्थापन होने के चलते विस्थापन राशि भी दी जाती है। एक खाता होने पर एक बार विस्थापन राशि दी जाएगी पर यदि इस एक जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े करने पर मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। की प्रोजेक्ट की स्थापना पर जमीन देने वाले प्रभावित परिवारों को नौकरी भी दी जाती है। जिसके चलते एक ही परिवार के एक जमीन के छोटे-छोटे कई टुकड़े कर कई सदस्यों के नाम चढ़ा दिए जाते हैं, जिससे उन्हें संबंधित संस्थान के प्रोजेक्ट में नौकरी का लाभ दिया जा सके। इस खेल के लिए प्रभावितों को अवैधानिक लाभ पहुंचाने की मंशा से प्रशासनिक अफसर भी अनियमितता और लापरवाही बरतते हैं।
एक्शन के पीछे एनपीजी न्यूज की 9 खबरें
रायपुर-विशाखापट्टनम सिक्स लेन ग्रीन कॉरिडोर में मुआवजा घोटाले को सबसे पहले एनपीजी न्यूज ने एक्सपोज किया। एनपीजी न्यूज ने भारतमाला मुआवजा घोटाले की लगातार नौ खबरें प्रकाशित की। लगातार खबरों के बाद नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने विधानसभा में मामले को उठाया। एनपीजी की खबर का असर यह हुआ कि सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारियों समेत आधा दर्जन से अधिक तहसीलदारों और पटवारियों को सस्पेंड किया। यही नहीं ईओडब्लू को मामले की जांच सौंपी गई। फिर जांच एजेंसी ने राज्य प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारियों, राजस्व विभाग के कई मुलाजिमों समेत 14 लोगों के ठिकानों पर छापा मारा। इसके बाद करोड़ों रुपए मुआवजे का गबन करने वाले भूमाफिया समेत चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। सरकार ने एक्शन लेते हुए अभनपुर के तत्कालीन एसडीएम और वर्तमान जगदलपुर नगर निगम कमिश्नर निर्भय साहू को सरकार ने सस्पेंड कर दिया। डिप्टी कलेक्टर शशिकांत कुर्रे को घोटाले का मास्टरमाइंड शीर्षक से छपी खबर के दो घंटे के भीतर सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया।
भ्रष्टाचार पर साय सरकार की जीरो टॉरलेंस की नीति
सीएम विष्णुदेव साय का कहना है कि उनकी सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है और किसी भी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी सर्वोपरि है। किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रदेश सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि कोई भी अधिकारी या कर्मचारी आमजन के अधिकारों का दुरुपयोग न करे, और यदि करता है तो उसे तत्काल विधिसम्मत कठोर कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह सिर्फ कार्रवाई नहीं, सुशासन का संकल्प है। ये सरकार के सुशासन का ही संकल्प है कि आमजन के अधिकारों का दुरुपयोग करने वाले कई आईएएस समेत करीब आधा दर्जन से ज्यादा प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। अफसरों के खिलाफ आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भ्रष्टाचार के मामले दर्ज कर जांच किए जा रहे हैं। प्रशासनिक सेवाओं में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार निरोध को लेकर सरकार ने आश्वास्त किया है कि सभी भ्रष्टाचार मामलों की निष्पक्ष जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
केस- 01 भारतमाला परियोजना
भारतमाला परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ में कुल 950 किलोमीटर सड़कों का निर्माण प्रस्तावित है। इसमें रायपुर से विशाखापट्टनम तक फोरलेन सड़क और दुर्ग से आरंग तक सिक्सलेन सड़क शामिल हैं। मंत्रालय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ में 2017-18 में भारतमाला परियोजना के तहत 290 किलोमीटर सड़क को मंजूरी दी थी। इस परियोजना में एनएच 26 के चौड़ीकरण का भी प्रस्ताव शामिल है, जो रायपुर से विशाखापट्टनम तक जाता है। छत्तीसगढ़ में 886 किलोमीटर सड़क निर्माण की योजना है, जिसकी लागत 25,650 करोड़ रुपये है। इस परियोजना के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण की गई थी, लेकिन कुछ किसानों को मुआवजा नहीं मिल पाया है और मुआवजे के नाम पर सरकारी फंड का दुरुपयोग भी हुआ है। भारत-माला प्रोजेक्ट में जमीन अधिग्रहण मामले में 43 करोड़ का घोटाला हुआ है। जमीन को टुकड़ों में बांटकर एनएचएआई को 78 करोड़ का भुगतान दिखाया गया। एसडीएम, पटवारी और भू-माफिया के सिंडिकेट ने बैक डेट पर दस्तावेज बनाकर घोटाले को अंजाम दिया। राजस्व विभाग के मुताबिक मुआवजा करीब 29.5 करोड़ का होता है। अभनपुर के ग्राम नायकबांधा और उरला में भू-माफिया ने राजस्व अधिकारियों के साथ मिलकर जमीन को छोटे टुकड़ों में काटकर 159 खसरे में बांट दिया। मुआवजा के लिए 80 नए नाम रिकॉर्ड में चढ़ा दिए गए। इससे 559 मीटर जमीन की कीमत करीब 29.5 करोड़ से बढ़कर 78 करोड़ रुपए पहुंच गई। अभनपुर बेल्ट में 9.38 किलोमीटर के लिए 324 करोड़ मुआवजा राशि निर्धारित की गई। जिसमें से 246 करोड़ रुपए मुआवजा दिया जा चुका है। वहीं 78 करोड़ रुपए का भुगतान अभी रोक दिया गया है। अवर सचिव के निर्देश पर बनी जांच रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है, कि अभनपुर इलाके में पदस्थ अधिकारियों ने बैक डेट में जाकर दस्तावेजों में गड़बड़ी की और जमीन मालिक को नुकसान पहुंचाया। इसका खुलासा इस बात से अफसरों ने किया, कि अभनपुर के ग्राम नायक बांधा और उरला में 4 एकड़ जमीन एक परिवार के पास थी। वही जमीन सर्वे होने के ठीक कुछ दिन पहले एक ही परिवार के 14 लोगों के नाम पर बांट दी गई। इसके बाद एक ही परिवार के सदस्यों को 70 करोड़ रुपए मुआवजा भुगतान कर दिया गया। जांच अधिकारियों ने तत्कालीन अफसरों की इस कार्यप्रणाली का सीधा जिक्र अपनी जांच रिपोर्ट में किया है। 25 अप्रैल को ईओडब्ल्यू ने छत्तीसगढ़ के 17 से 20 अधिकारियों के ठिकाने पर छापेमार कार्रवाई की थी। इनमें एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी और राजस्व निरीक्षक समेत राजस्व विभाग के कई अधिकारी शामिल हैं। इनके ठिकानों पर जांच कर दस्तावेजों को जब्त किया गया था। ईओडब्ल्यू ने रायपुर, महासमुंद, दुर्ग और बिलासपुर में रेड मारी थी। जिसमें निर्भय कुमार साहू, जितेन्द्र कुमार साहू, दिनेश पटेल, योगेश कुमार देवांगन, शशिकांत कुर्रे, लेखराम देवांगन, लखेश्वर प्रसाद किरण, बसंती धृतलहरे, रोशन लाल वर्मा, हरमीत सिंह खनूजा, उमा तिवारी, विजय जैन, दशमेश इन्ट्रावेंचर प्रा. लि., हृदय लाल गिलहरे और विनय कुमार गांधी के ठिकाने शामिल हैं। दशमेश इन्स्टा वेंचर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी तहसीलदार मनप्रीत कौर के पति हरमीत सिंह खनूजा और एसडीएम शशिकांत कुर्रे की पत्नी भावना कुर्रे की कंपनी है। हरमीत खनूजा और भावना दोनों कंपनी के डायरेक्टर हैं। पूरे मामले में हरमीत की भूमिका सबसे मुख्य है। हरमीत ने ही अधिकांश किसानों से संपर्क कर। उन्हें मुआवजे से ज्यादा पैसा दिलाने का झांसा दिया और उसने जमीन खरीदी थी।
केस- 02 अरपा-भैंसाझार नहर परियोजना
अरपा-भैंसाझार नहर परियोजना छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में अरपा नदी पर एक सिंचाई परियोजना है। 19 हजार 406 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करने वाली इस परियोजना की कुल लागत 1,141 करोड़ रुपए है। जिससे तखतपुर विकासखंड के 71 गांवों, बिल्हा विकासखंड के 30 गांवों और कोटा विकासखंड के एक गांव मिलाकर 102 गांवों को लाभ मिलेगा। 370.55 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण करने वाली इस परियोजना का शिलान्यास 2013 में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया था। इस परियोजना में 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की क्षमता थी, लेकिन वर्तमान में 12 हजार हेक्टेयर में सिंचाई की जा रही है। अरपा भैंसाझार परियोजना 2013 से चल रही है, लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई है। विवाद और घोटाले के कारण, यह अभी तक पूरी नहीं हुई है। अरपा-भैंसाझार नहर निर्माण में एसडीएम और सिंचाई अधिकारियों ने ऐसा गड़बड़झाला किया कि जिन किसानों की जमीन थी, उन्हें मुआवजा नहीं मिला। एसडीएम ने एक व्यापारी को 3.42 करोड़ दे दिया। और जिन किसानों की जमीनें नहर में गई, वे भटक रहे हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में इस नहर परियोजना में मुआवजे का खेल हुआ। विधानसभा में मंत्री द्वारा जांच का आदेश देने पर कलेक्टर ने उसकी जांच कराई। जांच में तत्कालीन एसडीएम समेत राजस्व विभाग के आधा दर्जन मुलाजिम दोषी पाए गए। इसके अलावा सिंचाई विभाग के आधा दर्जन इंजीनियरों को भी इस प्रकरण में लिप्त पाया गया। कोटा के तत्कालीन एसडीएम समेत 11 अधिकारी इस मामले में दोषी पाए गए, ये उनकी जांच रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा गया है। नीचे पढ़ियेगा बिलासपुर के तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण द्वारा कमिश्नर को भेजा गया पत्र। उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि जिला स्तरीय जांच में एसडीएम समेत 11 अधिकारी दोषी पाए गए हैं। अवनीश शरण ने इन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की थी। कलेक्टर के पत्र को बिलासपुर कमिश्नर ने अपनी अनुशंसा के साथ राजस्व विभाग को भेज दिया था। विधानसभा के बजट सत्र 2025 में विधानसभा में सरकार ने जानकारी दी कि इस मामले में कमिश्नर ने कार्रवाई करने राजस्व विभाग को पत्र लिखा है, उस पर कार्रवाई हो रही है। मगर आज तक उसमें कुछ नहीं हुआ।
केस- 03 बजरमुड़ा कोल ब्लाक आवंटन
रायगढ़ जिले के बजरमुड़ा में कोल ब्लाक आवंटन के लिए भूमि अधिग्रहण और भूअर्जन में राजस्व अफसरों ने करोड़ों का घोटाला किया है। तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार और राजस्व महकमे ने कागजों में लाखों की संख्या में फलदार और ईमारती लकड़ियों के पेड़ उगा दिया। झोपड़ी को पक्का दो गोदाम बना दिया। यही नहीं वर्षों से बंद पड़े और कंडम ट्यूबवेल को चालू बताकर मुआवजा के नाम पर सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया है। 13 अलग-अलग जांच कमेटियों की रिपोर्ट में राजस्व अफसरों के द्वारा भूअर्जन घोटाले को कैसे अंजाम दिया है विस्तार से खुलासा किया है। अचरज की बात ये कि पौने पांच अरब के इस घोटाले की जांच पांच महीने पहले पूरी हो गई थी। जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी। इसके बाद भी फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई थी। कलेक्टर के निर्देश के बाद अब जाकर फाइल एक बार फिर खुली है। घरघोड़ा एसडीएम को तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार सहित आधा दर्जन से ज्यादा राजस्व अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर का निर्देश दिया है। जांच रिपोर्ट में भूअर्जन के नाम पर राजस्व अफसरों द्वारा 4 अरब 78 करोड़ 68, लाख 87 हजार 786 रुपये का मुआवजा प्रकरण बनाकर घोटाले को अंजाम दिया है। जांच रिपोर्ट में खुलासा किया है कि मौके पर नलकूप बंद पाया गया। किन्तु मुआवजा पत्रक अनुसार नलकूप चालू बताकर मुआवजा राशि 1,75,100 रुपये का प्रकरण बनाया गया है। मौके पर पक्का मकान स्थित होना पाया गया। जिसे मुआवजा पत्रक अनुसार माधवलाल, ज्वालाप्रसाद वगैरह के नाम गोदाम पक्का कॉलम, कार्यालय पक्का कॉलम, शेड पाइप टीन बताकर मुआवजा राशि 3,59,23,303 रुपये का भुगतान किया गया है। इसी जमीन का खसरा नंबर बदलकर 2,81,34,602 का भुगतान कर दिया है। एक ही जमीन में मकान, फसल एवं वृक्षों का मुआवजा तैयार किया गया। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में बजरमुड़ा मुआवाज घोटाले को लेकर अवर सचिव के आदेश के 9 माह बाद एफआईआर के लिए आदेश किया गया। अब एफआईआर का आदेश हुए करीब माह भर होने को आ रहा है, लेकिन अब तक इस मामले में प्रकरण थाना तक नहीं पहुंच पाया है। जिसके कारण अब तक प्रकरण में एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है। घरघोड़ा के ग्राम बजरमुड़ा में छत्तीसगढ़ पॉवर जनरेशन कंपनी (सीजीपीडीसीएल) को आवंटित कोल ब्लाक के प्रभावित क्षेत्र में मुआवजा के लिए की गई परिसंपत्तियों की मूल्यांकन में खुलकर गड़बड़ी की गई। इसका राज्य स्तरीय जांच टीम ने पुष्टी की। इसके बाद राजस्व विभाग के अवर सचिव ने इस मामले में दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। उक्त आदेश के करीब 9 माह बाद जिले में दोषी अधिकारियों का नाम सामने आया और उनके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने के लिए आदेश दिया गया।
केस- 04 रायगढ़ के लारा में एनटीपीसी प्लांट प्रोजेक्ट
साल 2014 मेंरायगढ़ के विकासखंड में स्थित ग्राम लारा में एनटीपीसी अपना प्लांट स्थापित करने जा रहा था। इस दौरान लारा विकासखंड में एनटीपीसी के भू अर्जन व मुआवजा वितरण में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। इस धांधली के लिए तत्कालीन एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को मुख्य जिम्मेदार माना गया। एनटीपीसी के यहां प्लांट लगने के साथ ही आदेश जारी कर वहां जमीनों की खरीदी बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। मगर कुछ दिन बाद ट्रांसफर होकर आए तीर्थराज अग्रवाल ने चुपके से रोक हटा दिया। इसके बाद जमकर खेला हुआ। प्लांट के आसपास उस समय 300 प्लाट थे, इसे 1300 टुकड़ों में इसलिए बांट दिया गया ताकि चार गुना मुआवजा प्राप्त किया जा सके। आरोप है कि इससे एनटीपीसी प्रबंधन को 500 करोड़ का नुकसान हुआ। देश की सबसे बड़ी सरकारी पावर कंपनी एनटीपीसी ने रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड में अपना प्लांट लगाने की शुरुआत की। प्लांट लगाने से पहले जमीनों का अधिग्रहण हुआ। भूअर्जन में किसी भी तरह की गड़बड़ी रोकने के लिए 6 जुलाई 2012 को उस वक्त के तत्कालीन एसडीएम ने अधिसूचना जारी कर प्लांट लगने वाली जगह में से ग्राम बघनपुर, घनागार,और कोड़ातराई की जमीन की खरीदी बिक्री तथा खाता बंटवारे पर रोक लगाई थी। पर एक ही खाते के जमीन के कई टुकड़े कर अलग-अलग खाता बना मुआवजा राशि हड़पने के खेल को अंजाम देने के लिए और अनुविभागीय अधिकारी राजस्व तीर्थराज अग्रवाल ने 22 अप्रैल 2013 को पत्र जारी कर इस निर्देश को हटा लिया। इस आदेश के चलते प्रभावित गांवों के एक ही परिवार के कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर खाता विभाजन कर दिया गया। जिसके चलते एक खाते पर दिया जाने वाला मुआवजा राशि अलग-अलग खाते होने के चलते अलग-अलग दिया गया जिससे एनटीपीसी को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड स्थिति लारा पावर प्लांट की स्थापना लारा, झिलगीटारए, देवलसुराए, आड़मुड़ा, बोड़ाझरिया, कांदागढ़, छपोरा,महलोई,तथा रियापली में कुल 780.869 हेक्टेयर, लगभग 781 हेक्टेयर जमीन का भू अर्जन हुआ। जमीन के भू अर्जन से पहले वह भू अर्जन के प्रक्रिया के दौरान एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के आदेश के चलते जमीन के भू अर्जन से पहले एक ही जमीन के छोटे-छोटे कई टुकड़ों में खाता विभाजन हुआ। छोटे-छोटे टुकड़ों में जमीन का क्रय विक्रय किया गया। जिसमें एसडीएम अग्रवाल ने बंटवारा तथा नामांतरण के संबंध में राजस्व कानूनों का पालन नहीं करवाया और जम कर धांधली की गई। रायगढ़़ के तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल ने इसकी जांच कराई। 1300 पेज की जांच रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि लैंड स्केम के सूत्रधार एसडीएम तीर्थराज थे। इसके बाद कलेक्टर ने सरकार को कार्रवाई करने की सिफारिश की। इसके साथ ही उन्होंने पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराया। अगस्त 2013 को राज्य शासन ने मामले में तीर्थराज अग्रवाल को दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया। दिसंबर 2014 में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। अदालत ने निलंबित एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था। पर तीर्थराज अग्रवाल गिरफ्तारी से बचते रहे और किसी तरह अंततः जेल जाने से बच गए और उसके बाद लगातार कई महत्वपूर्ण पदों पर काम भी किया।
केस- 05 दीपका कोल माइंस का विस्तार
एसईसीएल ने कोरबा जिले में दीपका कोल माइंस के विस्तार की प्रक्रिया शुरू की। इसके लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में मलगांव और सुआभोड़ी गांव की जमीन का अधिग्रहण किया गया। इस भूमि अधिग्रहण मामले में करोड़ों का फर्जीवाड़ा सामने आया है। 26 बाहरी लोगों के नाम की सूची बनाई गई और इनके नाम से पक्के मकान दिखाकर 17 करोड़ का वारा-न्यारा कर दिया गया है। भू विस्थापन में बड़ी गड़बड़ी सामने आने और जांच के बाद एसईसीएल विजिलेंस ने मामला सीबीआई को सौंप दिया है। जानकारी के अनुसार सीबीआई ने जांच शुरू भी कर दिया है। एसईसीएल साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड की कोल माइंस विस्तार के लिए अधिग्रहण और भूमि मुआवजा में करोड़ों का वारा-न्यारा किया गया है। विजिलेंस टीम की जांच में इस बात की पुष्टि के बाद एसईसीएल ने पूरे मामले की जांच के लिए प्रकरण सीबीआई को सौंप दिया है। जानकारी के अनुसार सीबीआई ने जांच शुरू भी कर दिया है। एसईसीएल के दीपका कोल माइंस विस्तार के लिए मलगांव की जमीन का अधिग्रहण किया गया है। अधिग्रहण के बाद मुआवजा वितरण में बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। विजिलेंस की जांच में तकरीबन 17 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा सामने आया है। घोटाले की तार राज्य शासन के राजस्व विभाग व एसईसीएल के अधिकारियों के बीच जुड़ा हुआ है। लिहाजा सीबीआई ने इन दो महत्वपूर्ण बिंदुओं के अलावा और भी मामले की जांच में जुट गई है। राज्य में जब कांग्रेस की सरकार काबिज थी तब पूरे पांच साल के लिए छत्तीसगढ़ में सीबीआई की एंट्री बंद कर दी गई थी। भाजपा की सरकार बनते ही सीजीपीएससी,कोल व डीएमएफ स्कैम की जांच का जिम्मा राज्य सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया है। आज से 20 साल पहले एसईसीएल के दीपका कोल माइंस एक्सटेंशन के लिए मलगांव के किसानों व ग्रामीणों की तकरीबन 400 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। मलगांव के भू विस्थापितों की संख्या 235 है। इसमें 136 भू विस्थापितों को वर्ष 2022 में मुआवजा का वितरण कर दिया गया है। इन्हें 110 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। मुआवजा का वितरण प्रशासन के जरिए किया गया था। मुआवजा वितरण के बाद से ही गड़बड़ी के आरोप लगाए जा रहे थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए एसईसीएल के विजिलेंस टीम को जांच कर रिपोर्ट पेश करने कहा गया था। विजिलेंस जांच में बड़ा खुलासा हुआ है। जांच के दौरन चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। 26 ऐसे लोगों को मुआवजा दिया गया है जो ना तो गांव में रहते हैं और ना ही उनके नाम पर जमीन है।