बिहान ने लाया राखी के जीवन में बिहान...आजीविका मिशन ने बदल जी जिंदगी, अब आत्मनिर्भर होकर घर की जिम्मेदारी उठा रही...
राजनांदगाव। राजनांदगांव की रहने वाली राखी राजपूत कभी घर से निकलने में भी संकोच करती थी, लेकिन आज वो सेल्स, अकाउंट्स और कस्टमर रिलेशनशिप जैसे काम बेधड़क करती हैं। आज वो अपने जैसी लड़कियों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं तो आईये मिलते हैं राखी राजपूत से। राजनांदगांव के थिल्काडीह की रहने वाली राखी के पिता श्री विजय सिंह राजपूत भी एक माइक्रोफाइनेंस कम्पनी में काम करते हैं। राखी भी पढ़ाई के साथ-साथ आमदनी करना चाहती थीं इसलिए बी.ए सेकंड ईयर के दौरान ही उन्होंने काम की तलाश शुरू कर दी। राखी को अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए काम की तलाश थी और इसी तलाश ने उन्हें DDU-GKY तक पहुंचा दिया।
राखी की माताजी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 'बिहान' के एक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थीं जहाँ से उन्हें DDU-GKY के बारे में जानकारी मिली। राखी ने सही फैसला करते हुए राज्य में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, 'बिहान' द्वारा संचालित DDU-GKY के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने का फैसला कर लिया। दुर्ग में DDU-GKY के साथ सम्बद्ध 'कार्यक्रम क्रियान्वयन एजेंसी'-कृष्णा एजुकेशन सोसाइटी में बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा (BFSI) में प्रशिक्षण लिया और राजनांदगांव में ही आज एक निजी कंपनी में काम कर रही हैं।
DDU-GKY की ट्रेनिंग ने बदली ज़िन्दगी
DDU-GKY में पहले निशुल्क ट्रेनिंग मिली और उसके बाद नौकरी हासिल करने में मदद भी मिली. राखी को पहली नौकरी एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी में मिली जहाँ उनकी सैलेरी 14 हज़ार रुपये प्रतिमाह थी। 1 साल तक काम करने के बाद राजनांदगांव में ही महिंद्रा शोरूम में नौकरी मिल गई जहाँ वो टेलीकॉलर का काम करने लगीं। 8 महीने काम करने के बाद राखी ने नौकरी बदल दी और राजनांदगांव में ही शरद मोटर्स में सेल्स डिपार्टमेंट में नौकरी करने लगीं। शरद मोटर्स में 2 साल काम करने के बाद अब वक़्त आगे बढ़ने का था। राखी फ़िलहाल ABIS ग्रुप में 8 महीने से काम कर रही हैं। कभी संकोची रही राखी आज हर दिन घर से ऑफिस तक 20 किलोमीटर का सफ़र अकेले तय करती हैं।
पहली सैलरी से माँ के लिए लिया 'अनमोल तोहफ़ा'
DDU-GKY की ट्रेनिंग से मिला आत्मविश्वास और ख़ुशी दोनों राखी के चेहरे पर साफ़ झलकता है। राखी ख़ुशी-ख़ुशी कहती हैं कि वो हर महीने मिलने वाली सैलरी अपने माँ के हाथ में रख देती हैं। राखी याद करते हुए कहती हैं कि उन्होंने अपनी पहली सैलेरी से माँ के लिए चांदी की पायल ली थी। दिवाली पर पूरे परिवार के लिए 2-2 जोड़ी कपड़े भी लिए थे और आज भी हर दिवाली पूरे परिवार के लिए कपड़े राखी ही खरीदती है। राखी भले ही अपने भाई से छोटी हैं लेकिन वो बड़े भाई के लिए दवाइयों के पैसे भी देती हैं।
राखी की सलाह
राखी आज अपनी उम्र की जिन युवाओं से भी मिलती हैं DDU-GKY से जुड़ने की सलाह देती हैं। वो घर से बाहर निकल कर काम करने में DDU-GKY का बड़ा योगदान मानती हैं। फ़िलहाल ABIS ग्रुप के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में काम करती हैं जहाँ गाड़ियों की आवाजाही सहित पैसों का भी पूरा हिसाब किताब देखती हैं। राखी कहती हैं कि जिन्होंने घर से बाहर की दुनिया नहीं देखी है वो DDU-GKY के प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाकर देखें, यहाँ आपके लिए बेहतरीन अवसर हैं। DDU-GKY और कृष्णा एजुकेशन सोसाइटी का धन्यवाद करते हुए राखी राजपूत कहती हैं कि DDU-GKY ने आगे बढ़ने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अवसर दिया है।