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कलेक्टरों का सूट

कलेक्टरों का सूट
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By NPG News

संजय के. दीक्षित
तरकश, 15 अगस्त 2021
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में कलेक्टर झंडा फहराते हैं और सलामी भी लेते हैं। लेकिन, मध्यप्रदेश के समय से ही यहां यह परिपाटी चलती आ रही कि प्रभारी मंत्री झंडारोहन करते हैं। सिर्फ एक बार राष्ट्रपति शासन के दौरान कलेक्टरों को यह मौका मिला था। बहरहाल, कलेक्टर्स और एसपी को साल में ये ही दो अवसर मिलता है, जब सरकारी कार्यक्रम के लिए वे सजते हैं। खासकर, हर कलेक्टर के पास एक ब्लैक प्रिंस सूट जरूर होता है। नए कलेक्टर पदभार ग्रहण करते ही इन दो मौकों के लिए सबसे पहले सूट का इंतजाम करते हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी के अलावा गिने-चुने कलेक्टर किस्मती निकलते हैं, जब उनके इलाके में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का विजिट हो जाता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के विजिट में भी कलेक्टरों का बंद गला का सूट ड्रेस कोड होता है।

सीएस सचिवालय में ओएसडी?

वैसे तो चीफ सिकरेट्री सचिवालय के डिप्टी सिकरेट्री आईएएस होते हैं। छत्तीसगढ़ में भी इशिता राय, शहला निगार और रीतू सेन इस पद पर रहीं हैं। लेकिन कुछेक बार डिप्टी कलेक्टरों को भी मौका मिला है। श्रद्धा तिवारी, तारन सिनहा और जयश्री जैन राज्य सेवा के अधिकारी रहे। तारन और जयश्री इतने सीनियर थे कि सीएम सचिवालय में रहने के दौरान ही उन्हें आईएएस अवार्ड हुआ। मगर अबकी प्रमोटी डिप्टी कलेक्टर पूनम सोनी को सीएस सचिवालय में पदस्थ किया गया है। पूनम नायब तहसीलदार कैडर की हैं। रैंक छोटा है, इसलिए उन्हें डिप्टी सिकरेट्री की जगह ओएसडी का दर्जा दिया गया है। हालांकि, इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि आईएएस बनने के बाद भी जयश्री बिलासपुर की अपर कलेक्टर बनीं। जयश्री सीएस सचिवालय में सबसे लंबी पोस्टिंग का रिकार्ड बनाई है। वे पहली स्टाफ आफिसर रहीं, जो विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल और अमिताभ जैन के साथ काम की। याने पांच मुख्य सचिवों के साथ। फिर भी बिलासपुर…? अमिताभ जैन को चाहिए था कि कम-से-कम जयश्री को किसी जिला पंचायत का सीईओ बनवा देते। बहरहाल, सीएस आफिस को रोज भारत सरकार के विभागों के साथ ही कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय से संवाद करना होता है। वहां से 80 परसेंट लेटर अंग्रेजी में आते हैं। सीएस की मीटिंग और वीडियोकांफें्रसिंग सुबह से देर शाम तक चलती रहती है। रोज ढेरों पत्र आते हैं। सीएस सचिवालय का काम सीएम सचिवालय की तरह लाइमलाइट वाला नहीं होता। लेकिन, काम जमकर करना होता है। मगर ये भी सही है कि सीएस को कैसा आफिसर चाहिए ये मीडिया थोड़े तय करेगा….।

दो-दो पूर्व आईएएस

रिटायर आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने दिल्ली में भाजपा का दामन थाम कर सबको चौंका दिया। संकेत हैं, सूबे की ब्राम्हण बहुल सीट बेमेतरा से उन्हें विधानसभा की टिकिट मिल सकती है। गणेश शंकर से पहले रायपुर कलेक्टरी छोड़कर ओपी चौधरी ने बीजेपी ज्वाईन किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में ओपी खरसिया से मैदान में उतरे थे, लेकिन कांग्रेस की अभूतपूर्व लहर और संवेदनशील सीट होने की वजह से उन्हें कामयाबी नहीं मिली। उधर, कांग्रेस में पूर्व आईएएस सरजियस मिंज को सरकार ने हाल ही में वित आयोग का प्रमुख बनाया है। सरजियस ने विधानसभा चुनाव के ऐन पहिले कांग्रेस ज्वाईन किया था। इसलिए, पिछली बार उन्हें टिकिट नहीं मिल पाई थी। वहीं, पूर्व आईएएस एसएस सोढ़ी कांग्रेस से विधायक हैं। यानि कांग्रेस और बीजेपी में अब दो-दो पूर्व आईएएस हो गए। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 2023 के विधानसभा चुनाव में ये चारो पूर्व आईएएस विरोधी प्रत्याशी के साथ दो-दो हाथ करते नजर आएंगे। इनके अलावा भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी भी अगले साल कांग्रेस ज्वाईन करेंगे। वे बिलासपुर जिले के बेलतरा से कांग्रेस के दावेदार होंगे, जहां से कांग्रेस लंबे समय से पराजित होते आ रही है।

सिस्टम पर सवाल

मनेंद्रगढ़ में ई-रजिस्ट्री में सेंधमारी कर फर्जी रजिस्ट्री की घटना ने पूरे रजिस्ट्री सिस्टम को कलंकित कर दिया है। सवाल उठते हैं, सीएजी की गंभीर आपत्ति के बाद भी झारखंड की कंपनी को अफसरों ने फिर एक्सटेंशन क्यों दे दिया। वो भी ऐसी कंपनी, जिसे झारखंड सरकार ने ठेका देने के बाद उसे निरस्त कर दिया। उस पर अपने पंजीयन विभाग की इतनी मेहरबानी क्यों…? इसका जवाब इस वाकये से मिल जाएगा। एक बार तत्कालीन सीएस विवेक ढांड ने पंजीयन आफिस का मुआयना किया था। उन्होंने कंपनी के लोगों से पूछा, छत्तीसगढ़ के रजिस्ट्री आफिसों में कंप्यूटर की नेटवर्किंग का सेटअप लगाने में कितना खर्च आया। तो उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया आठ करोड़। और पहले साल में रजिस्ट्री से इनकम कितना जेनरेट होगा तो 20 करोड़। तब ढांड बोले थे, दुनिया का यह पहला प्रोजेक्ट होगा, जिसमें एक साल में पूंजी से तीगुनी आमदनी होगी। ढांड ने कहा था, इतनी कमाई है तो फिर रेट कम करो। ताकि आम आदमी को लाभ मिले। लेकिन, तब तक वे सीएस से हट गए। और रजिस्ट्री की संख्या जैसे-जैसे बढती गई, कंपनी की कमाई दुगुनी होती गई। जब कंपनी छत्तीसग़़ढ़ के लोगों की जेब काट रही है तो जाहिर है, उसी हिसाब से उसका हिस्सा अफसरों की जेब में जाता होगा। ऐसे में, फिर कंपनी पर कौन अंकुश लगा सकता है।

फर्जीवाड़े में इनाम

मनेंद्रगढ़ के तहसीलदार उत्तम रजक के कार्यकाल में रजिस्ट्री घोटाला हुआ। रजक के पास ही रजिस्ट्री आफिस का एडिशनल चार्ज था। भले ही कार्यवाही करने के लिए रजक ने ही पंजीयन विभाग को पत्र लिखा लेकिन उन्हें अपने पदीय दायित्वों की लापरवाही से कैसे मुक्त किया जा सकता है। अगर वे ध्यान से अपना काम करते तो उनका प्रायवेट कंपनी का ऑपरेटर उनका आईडी, पासवर्ड से इतना बड़ा खेल कैसे कर देता। बावजूद इसके तहसीलदार को राज्य सरकार ने प्रमोट कर डिप्टी कलेक्टर बना दिया। ताज्जुब है न!

कलेक्टरों के नीचे अंधेरा

कलेक्टर टाईम लिमिट की बैठक में सारे विभागों की समीक्षा करते हैं और अफसरों को फटकार लगाते हैं ये काम इतने समय में क्यों नहीं हुआ। लेकिन, काश! एक बार अपने राजस्व विभाग का रिव्यू भी कर लेते तो जमीन, संपत्ति जैसे 80 फीसदी विवादों का निबटारा हो जाता। पटवारी की प्रताड़ना से सूबे मेंं पिछले दिनों एक किसान ने आत्महत्या कर लिया, उस किसान की जान बच जाती। किसान पटवारी को पांच हजार रुपए दिया था ऋण पुस्तिका के लिए। लेकिन, पटवारी को इससे ज्यादा चाहिए था। कलेक्टर अगर टीएल की बैठक में तहसीलदार से पूछ लेते कि किसान की ऋण पुस्तिक क्यों रोकी गई है तो उसे जानलेवा कदम उठाने की भला जरूरत क्यों पड़ती। दरअसल, कलेक्टर कभी अपने तहसीलदार, एसडीएम से जमीन की रजिस्ट्री, ऋण पुस्तिका और नामंतरण के बारे में पता ही नहीं करते कि कितने मामले पेंडिंग हैं और क्यों हैं। कलेक्टर अगर महीने में एक बार राजस्व की मीटिंग ले लें तो लोगों को पटवारी और तहसीदार राज से मुक्ति मिल जाएगी।

सरकार, प्लीज कुछ कीजिए

मध्यप्रदेश सरकार ने नामंतरण का लफड़ा खतम कर दिया है। वहां अब जमीन की रजिस्ट्री के साथ आटोमेटिक नामंतरण हो जाएगा। इसके लिए पटवारी और तहसीलदार का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं। इसी तरह पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व कोर्ट समाप्त कर दिया है। राजस्व कोर्ट अंग्रेजों के समय की व्यवस्था थी। वो भी इसलिए कि उस समय राजस्व प्राप्ति का और कोई जरिया नहीं था। लेकिन, नौकरशाही इस कोर्ट को समाप्त नहीं करना चाहती। इसकी आड़ में उन्हें मनमानी करने के असिमित मौके मिल जाते हैं। आखिर, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर और कमिश्नर का कोर्ट क्यों होना चाहिए। इसीलिए वे गलत फैसले के बाद भी जिम्मेदारी से बच जाते हैं कि कोर्ट का आदेश है, आप उपर में अपील कीजिए। अगर कोर्ट नही होगा तो उन्हें उपर मे जवाब देना पड़ जाएगा। इसलिए, अफसर चाहते हैं कि कोर्ट सिस्टम बना रहे। छत्तीसगढ़ में अनेक अधिकारी इसी कारण गलत फैसला देने के बाद भी हाईकोर्ट में बच गए कि यह अफसर का नहीं, कोर्ट का आदेश था। ऑनलाइन रजिस्ट्री के दौर में ऋण पुस्तिका का भी कोई मतलब नहीं है। फिर भी पटवारियों की कमाई का यह बड़ा जरिया बना हुआ है। चूकि प्रदेश में भूपेश बघेल जैसे निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री हैं, इसलिए एक फैसले से लाखों लोगों को प्रताड़ना से बचा सकते हैं। ऋण पुस्तिका, नामंतरण से हर आदमी का पाला पड़ता है। राजस्व की पेचीदगियां अगर सरकार ने दूर कर दी तो शरीफ लोग भी जमीन में पैसा इंवेस्ट करना शुरू कर देंगे। औद्योगिक निवेश भी बढ़ेगा। अभी धनाढ्य और मसल्स पावर का राजस्व में दबदबा है। आखिर, पटवारी को कलेक्टर से बड़ा क्यों कहा जाता है…सिस्टम का फेल्योरनेस ही तो है ये।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जुआ, सट्टा को संरक्षण देने वाले एसपी साहब लोग आजकल इन पर लगातार छापे क्यों डाल रहे हैं?
2. डीजीपी डीएम अवस्थी की कुंडली में कौन-सा ऐसा ग्रह प्रबल है, जो उनके विरोधियों की चलने नहीं दे रहा है?

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