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Vinod Kumar Shukla: छत्तीसगढ़ को गर्वान्वित करने वाले विनोद शुक्ल को वो सम्मान मिला, जिसके हकदार थे?

Vinod Kumar Shukla: देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कथाकार विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे। उनके निधन के बाद सवाल उठता है, अपनी कालजयी रचनाओं के जरिये देश में छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाने वाले विनोद शुक्ल को क्या वो सम्मान मिला, जिसके वो हकदार थे। राज्य बनने के 25 साल में एक बार भी उन्हें पद्श्री या पद्मविभूषण देने पर विचार नहीं किया गया। प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि छत्तीसगढ़ में अभी तक दो दर्जन से अधिक लोगों को पद्मश्री मिला, उनसे वे किस मायने में कमजोर थे।

Vinod Kumar Shukla: छत्तीसगढ़ को गर्वान्वित करने वाले विनोद शुक्ल को वो सम्मान मिला, जिसके हकदार थे?
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By Sandeep Kumar

Vinod Kumar Shukla: रायपुर। विख्यात साहित्यकार और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का आज शाम देहावसान हो गया। उनके निधन की खबर से छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश में शोक व्याप्त हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर शुक्ल को श्रद्धासुमन अर्पित किया। उन्होंने लिखा कि साहित्य के क्षेत्र में विनोद शुक्ल का योगदान अविस्मरणीय रहेगा। पीएम मोदी पिछले महीने राज्योत्सव के मौके पर रायपुर आए थे, तो उन्होने एयरपोर्ट से निकलते ही सबसे पहले एम्स में भर्ती विनोद कुमार शुक्ल के परिजनों से फोन पर बात की थी।

राजनांदगांव से जीवन और साहित्यिक यात्रा शुरू करने वाले विनोद कुमार शुक्ल का पहला उपन्यास नौकर की कमीज, इतनी ज्यादा चर्चा में आयी कि लोग कभी भूल नहीं पाएंगे। 1979 में प्रकाशित इस उपन्यास का फ्रेंच सहित कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद तक हो चुका है। इस उपन्यास के आधार पर विख्यात फिल्मकार मणिकौल द्वार फिल्म का निर्माण किया गया था, वर्ष 1999 में यही फिल्म केरल अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कृत हो चुकी है। इस उपन्यास ने विनोद कुमार शुक्ल को देश के साहित्य जगत का सितारा बना दिया।

मगर वो सम्मान नहीं

विनोद कुमार शुक्ल जिस कद के शख्सियत थे, छत्तीसगढ़ में उन्हें वो सम्मान मिला? छत्तीसगढ़ के लोगों को यह प्रश्न मथता रहेगा। या तो उन्हें मेट्रो सिटी की बजाए छोटे शहर के होने की कीमत चुकानी पड़ी या फिर उन्होंने आधुनिक साहित्यकारों की तरह खुद की ब्रांडिंग नहीं की। इतना बड़ा आदमी छत्तीसगढ़ में था, जिसके देहावसान की खबर राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में है, प्रधानमंत्री शोक संवेदना प्रगट कर रहे हैं। मगर छत्तीसगढ़ बनने के 25 सालों में कभी यहां उन्हें पद्मश्री तक देने पर विचार नहीं किया गया, अनुशंसा करने की तो बात अलग है। जबकि, राज्य बनने के बाद दो दर्जन से अधिक लोगों को अभी तक पद्मश्री दिए जा चुके हैं। ऐसे में, प्रश्न खड़ा होता है विनोद शुक्ल किस मायने में उन सभी से कमजोर पड़ते थे। जाहिर है, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं होगा। जिन्हें पद्मश्री के लिए चुना गया, एनपीजी न्यूज उस पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं कर रहा। उन सभी विभूतियों का पूरा सम्मान है। सवाल सिर्फ यह है कि विनोद कुमार किस वजह से राष्ट्रीय स्तर के इस प्रतिष्ठित सम्मान से वंचित रह गए। जबकि, साहित्य जगत का सबसे बड़ा उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिल गया।

विनोद शुक्ल ने ही लिखा है...

ईश्वर अब अधिक है

सर्वत्र अधिक है

निराकार साकार अधिक

हरेक आदमी के पास बहुत अधिक है।

बहुत बंटने के बाद

बचा हुआ बहुत है।

अलग-अलग लोगों के पास

अलग-अलग अधिक बाक़ी है।

इस अधिकता में

मैं अपने ख़ाली झोले को

और ख़ाली करने के लिए

भय से झटकारता हूँ

जैसे कुछ निराकार झर जाता है।

इस कविता को जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार एक नया अर्थ समझ में आएगा, एक नया भाव दिखेगा। कुछ इसी तरह के व्यक्तित्व के हैं विनोद कुमार शुक्ल। जितनी बार उनसे मुलाकात करेंगे, बात करेंगे, हर बार वे नए लगेंगे, जीवन के प्रति हर बार नया दृष्टिकोण देंगे। उनके साहित्य ही नहीं, उनकी बातों में भी विशिष्टता झलकती है। उनका जादुई अंदाज और बात कहने का तरीका, सब-कुछ एक धरोहर ही तो है।

विनोद कुमार शुक्ल की गिनती देश के विख्यात साहित्यकारों से अलग, विशिष्ट रूप में होती है, जिन्होंने अपने हिंदी साहित्य में अनूठे शब्दों, वाक्यों का उपयोग किया। उपन्यास और कविता की विधाओं में उनका स्वाभाविक लेखन विशिष्ट शब्दों से लबरेज रहा है। शुक्ल का पहला कविता संग्रह 1971 में लगभग जय हिन्द था और इसके बाद 1979 में नौकर की कमीज़ चर्चित उपन्यास आया। इनके एक उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

राजनांदगांव से शुरू हुआ सृजन

एक जनवरी 1937 को वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में शुक्ल का जन्म हुआ था और अध्यापन को रोजगार के रूप में उन्होंने चुना था। इसके बाद भी उनका पूरा फोकस साहित्य सृजन में रहा, जो जीवनभर अनवरत चलता रहा है। लेखन के दौरान उन्होंने विशिष्ट शब्दों, वाक्य विन्यास बनाए। इतनी ही गहराई लिए उनकी संवेदना भी झलकती रही। यही विशेषता साहित्य प्रेमियों को आकर्षित करती रही है। एक जादुई यथार्थ ने उनकी लेखन शैली को संवारा और यही पढ़ कर महसूस किया जा सकता है। कवि के साथ सफल कथाकार विनोद शुक्ल के उपन्यास में आधुनिक युग के मानव और लोक गाथाओं का मिश्रण दिखता रहा है, जो अद्भुत कौशल का प्रमाण है। मध्यम वर्ग जीवन को उन्होंने लेखन में विलक्षण चरित्र से संवारा है, भारतीय वैश्विक साहित्य को अलग ही पहचान दी, समृद्ध किया है।

रचनाएं ऐसी कि चर्चा बंद नहीं होती

शुक्ल ने जीवनभर ऐसी साहित्यिक रचनाएं की, जिनकी चर्चा कभी थमी नहीं। नौकर की कमीज के बाद कहानियां आदमी की औरत और पेड़ पर कमरा...पर आधारित एक फिल्म का निर्माण राष्ट्रीय फिल्म इंस्टीट्यूट, पुणे द्वारा अमित दत्ता के निर्देशन में किया गया था। इस फिल्म को वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह 2009 में स्पेशल मेनशन अवार्ड से सम्मानित किया गया। उपन्यास - दीवार में एक खिड़की रहती थी, इतना ज्यादा उत्सुकता से भरा है कि इस पर नाट्य निर्देशक मोहन महर्षि ने नाट्य मंचन कराया।

विनोद शुक्ल द्वारा रचित पंक्तियां नीचे पढ़ें और समझें इस सादगी भरे साहित्यकार के गूढ़ अर्थ को-

विनोद शुक्ल लिखते हैं-

स्पर्श का सारा गुण अनुमान में भी होना चाहिए। जिसका अनुमान लगा रहे हैं उसे सचमुच स्पर्श कर रहे हैं। सच का अनुमान लगा रहे हैं और सच को स्पर्श कर रहे हैं। झूठ का अनुमान लगाते हैं और झूठ का स्पर्श करते हैं।

’जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।’

फिर विनोद जी एक जगह लिखते हैं-

अदब और कायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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