Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बिलासपुर हाई कोर्ट का एक फैसला: NDPS Act में ट्रायल कोर्ट को सजा देने की शक्ति का किया खुलासा
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने बिलासपुर हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें हाई कोर्ट ने NDPS Act की धारा 32 B के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को दिए गए 12 साल की सजा को कम करते हुए 10 साल कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस धारा के तहत ट्रायल कोर्ट को न्यूनतम से अधिक सजा देने का अधिकार है। ट्रायल कोर्ट की शक्ति को नहीं रोका जा सकता।

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Supreme Court News: दिल्ली। एनडीपीएस एक्ट के मामले में दायर SLP पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिलासपुर हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 NDPS Act की धारा 32B जिसमें न्यूनतम सजा से अधिक सजा देने के लिए ध्यान में रखे जाने वाले कारकों का विवरण है। ट्रायल कोर्ट को लगता है कि मामला गंभीर है तो न्यूनतम 10 साल से अधिक की सजा देने के लिए ट्रायल कोर्ट को अधिकार सम्पन्न किया गया है। ट्रायल कोर्ट की शक्ति को प्रतिबंधित नहीं करती है। इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 12 साल की सजा सुनाई थी।
याचिकाकर्ता को NDPS एक्ट की धारा 21 (c) के तहत विशेष न्यायाधीश NDPS ने एक अन्य आरोपी के साथ कोडीन फॉस्फेट, एक साइकोट्रोपिक पदार्थ युक्त विभिन्न खांसी सिरप की 236 शीशियों के कब्जे में होने के लिए दोषी ठहराया था। याचिकाकर्ता को 12 साल के कठोर कारावास और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
स्पेशल कोर्ट एनडीपीएस के फैसले को हाई कोर्ट में दी थी चुनौती
स्पेशल कोर्ट एनडीपीएस के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने दोषसिद्धी की पुष्टि करने के साथ ही सजा को 12 साल से घटाकर 10 करने का आदेश जारी किया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया था। रफीक कुरैशी बनाम नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो ईस्टर्न जोनल यूनिट (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि सजा सुनाते समय, ट्रायल कोर्ट को धारा 32-B के खंड (a) से (f) में प्रदान किए गए गंभीर कारकों को ध्यान में रखना होगा। ऐसे कारकों की अनुपस्थिति की स्थिति में निर्धारित न्यूनतम 10 साल से अधिक सजा नहीं दे सकता है।
हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। याचिकाकर्ता ने पुलिस द्वारा जब्त किए मादक पदार्थों को दूषित बताया था। याचिका के अनुसार वह गंभीर बीमारी से पीड़ित था। एसएलपी की सुनवाई डिवीजन बेंच में हुई। सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने एसएलपी को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने किया स्पष्ट
एसएलप की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने धारा 32 B को दिए गए प्रावधान के तहत सूचीबद्ध कारकों की अनुपस्थिति में न्यूनतम से अधिक सजा देने के लिए ट्रायल कोर्ट की शक्ति को प्रतिबंधित करने के रूप में गलत समझा। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की समझ सही नहीं है। किसी दिए गए मामले में ट्रायल कोर्ट को धारा 32-बी में निर्धारित कारकों पर विचार करना आवश्यक नहीं हो सकता है। निषिद्ध पदार्थ की मात्रा, स्वापक अथवा मनप्रभावी पदार्थ की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट को न्यूनतम से अधिक सजा देने का अधिकार है। ऐसी परिस्थितियों में हाई कोर्ट के पास रफीक कुरैशी पर के मामले को सामने रखते हुए सजा को 12 साल से घटाकर 10 साल करने का कोई उचित कारण नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रकीफ कुरैशी प्रकरण में यह साफ किया गया है कि धारा 32 B की भाषा स्वाभाविक रूप से सूचीबद्ध कारकों से परे अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के लिए न्यायालय के विवेक को संरक्षित करती है। विशेष रूप से मादक पदार्थ की मात्रा को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रगणित उत्तेजक कारकों की अनुपस्थिति के बावजूद न्यूनतम से अधिक सजा के लिए एक प्रासंगिक कारक माना जाता था।
