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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा: चार्जशीट में जिन तथ्यों का जिक्र नहीं, ट्रायल कोर्ट द्वारा निजी हलफनामों के आधार पर अपराध जोड़ना उचित नहीं

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद कहा, ट्रायल कोर्ट केवल निजी गवाह के हलफनामे के आधार पर उन बातों को संज्ञान नहीं ले सकता जो चार्जशीट में ना हो। ट्रायल कोर्ट द्वारा निजी हलफनामों के आधार पर अपराध जोड़ना यांत्रिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए.

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा: चार्जशीट में जिन तथ्यों का जिक्र नहीं, ट्रायल कोर्ट द्वारा निजी हलफनामों के आधार पर अपराध जोड़ना उचित नहीं
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supreme court of india (NPG file photo)

By Anjali Vaishnav

Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद कहा, ट्रायल कोर्ट केवल निजी गवाह के हलफनामे के आधार पर उन बातों को संज्ञान नहीं ले सकता जो चार्जशीट में ना हो। ट्रायल कोर्ट द्वारा निजी हलफनामों के आधार पर अपराध जोड़ना यांत्रिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी ट्रायल कोर्ट को केवल निजी गवाहों द्वारा दाखिल किए गए शपथपत्र के आधार पर बिना जांच वड़ताल किये चार्जशीट में उल्लेख किये गए तथ्यों के अतिरिक्त अपराधों का संज्ञान नहीं लेना चाहिए। डिवीजन बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को मंजूरी दी थी, जिसमें शिकायतकर्ता के गवाहों द्वारा पेश शपथपत्र के आधार पर IPC की धारा 394 (डाका डालने या प्रयास के दौरान जानबूझकर चोट पहुंचाना) के अपराध का संज्ञान लिया गया था, बिना यह तय किए कि यह धारा इस मामले पर लागू होती है या नहीं।

डिवीजन बेंच ने कहा, केवल शिकायतकर्ता की ओर से दायर शपथपत्र के आधार पर, कोर्ट ने धारा 394 के तहत संज्ञान लिया। हम इस तरह के अभ्यास को इस प्रकार स्वीकार नहीं करते।” कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा निजी हलफनामों के आधार पर अपराध जोड़ना यांत्रिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें उचित जांच पर भरोसा करना चाहिए। यदि किसी आरोप के छिपाए जाने का मामला हो, तो आगे की जांच का आदेश देना चाहिए।

पुल्स ने धारा 394, 452, 323, 504, 506 IPC और एससी, एसटी अधिनियम के तहत FIR दर्ज किया था। पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट में धारा 394 को शामिल नहीं किया। इसके बाद शिकायतकर्ता की बार-बार अर्जी पर, ट्रायल कोर्ट ने केवल गवाहों के शपथपत्र के आधार पर धारा 394 का संज्ञान लिया। ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चेलेंज किया था। मामले की सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुते याचिका को खारिज कर दिया था। इसे सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज किया था।

मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ट्रायल कोर्ट को पुलिस से पूरा केस डायरी प्रस्तुत करने को कहना चाहिए था, जिसमें सभी गवाहों के बयान दर्ज हों। कोर्ट ने यह भी पाया कि अभियोजन पक्ष की ओर से शिकायतकर्ता के गवाहों के 161 CrPC के तहत दिए गए पूर्ण बयान कोर्ट को उपलब्ध नहीं कराए गए, जिससे कोर्ट को स्वतंत्र रूप से उनके सत्यापन का मौका नहीं मिला।

चूक को लेकर ये कहा

कोर्ट ने कहा, इस मामले में, जिस प्रकार यह कार्यवाही की गई, वह कानून के अनुसार नहीं है। हाई कोर्ट द्वारा मामले को वापस भेजे जाने के बाद, ट्रायल कोर्ट के लिए यह जरूरी था कि वह स्वयं यह तय करे कि धारा 394 आईपीसी लागू होती है या नहीं, जो भी सामग्री शिकायतकर्ता या प्रतिवादी या जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत की गई हो, उसके आधार पर या अपने तरीके से जांच करके। जब आरोप था कि गवाहों ने पुलिस के सामने कुछ बयान दिए थे, जिन्हें धारा 161 CrPC के तहत दर्ज किया गया, तो अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी थी कि सभी बयान कोर्ट को उपलब्ध कराए। ऐसा नहीं किया गया।

पुलिस सेमंगानी थी केस डायरी

बेंच ने कहा, ट्रायल कोर्ट को पुलिस से पूरी केस डायरी मंगवानी चाहिए थी, जिसमें सभी गवाहों के पूर्ण बयान दर्ज हों। इसके बाद, उन हिस्सों को देखकर, जो पहले कोर्ट को नहीं दिए गए थे, ट्रायल कोर्ट स्वतंत्र रूप से यह निर्णय ले सकता था कि विभिन्न धाराओं, विशेष रूप से धारा 394 के तत्व पूरे होते हैं या नहीं। ऐसा नहीं किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने जरूरी निर्देश के साथ ट्रायल कोर्ट को सुनवाई के दिया निर्देश

डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह धारा 172 CrPC के तहत पूरी पुलिस केस डायरी बुलाए और यदि किसी गवाह का बयान गायब हो, तो शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत हलफनामों को पुलिस के पास सही प्रक्रिया के तहत दर्ज करने के लिए भेजा जाए। कोर्ट ने कहा, अपीलकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लेने का आदेश रद्द किया जाता है। मामला ट्रायल कोर्ट को भेजा जाता है, जिसे निर्देश दिया जाता है कि वह पुलिस से पूरी जांच और गवाहों के बयान मंगवाए।

कोर्ट ने तय किया डेडलाइन

सुप्रीम कोर्ट ने कहा यदि किसी गवाह का बयान पुलिस ने दर्ज नहीं किया, तो शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत हलफनामों को पुलिस को भेजा जाए और पुलिस आगे की जांच करे और संबंधित कोर्ट में रिपोर्ट जमा करे। इसके लिए बेंच ने डेडलाइन तय करते हुए छह सप्ताह का समय दिया है। पक्षों की सुनवाई के बाद संज्ञान लेने, चार्ज तय करने और मुकदमे की कार्यवाही आगे बढ़ाने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया है।

एसपी होंगे जिम्मेदार

सुओरीम ने साफ कहा, जांच के दौरान पुलिस ने कोई सामग्री या तथ्य छुपाई तो झांसी एसपी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने “स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच” की आवश्यकता पर जोर देते हुते कहा, सभी तथ्य व सामग्री सच्चाई के साथ कोर्ट के सामने रखी जाए।

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