Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा: सामाजिक परिस्थितियों में अपराध करने वाली महिलाओं के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक
Supreme Court News: हत्या के एक मामले में युवती की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी महिलाएं व युवतियों जो अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह के मामले में सामाजिक परिस्थितियों के चलते अपराध करती हैं, इनके प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने युवती व उसके सहयोगियों को राज्यपाल के समक्ष क्षमादान याचिका पेश करने का निर्देश दिया है। तब तक सजा को निलंबित रखा है।

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दिल्ली। कर्नाटक की कालेज पढ़ने वाली युवती का विवाह परिजनों ने युवक से तय कर दी। युवती उस युवक से शादी नहीं करना चाहती थी। लिहाजा युवती ने अपने मित्र के साथ मिलकर मंगेतर की हत्या करा दी। युवती ने अपने दोस्त को बताया कि उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके माता पिता उसकी साथ युवक से करा रहे थे। युवती ने अपने करीबी दोस्त अरुण वर्मा व दो अन्य लोगों वेकटेश व दिनेश की मदद से मंगेतर की हत्या करा दी। हत्या के आरोप में हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। युवती की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के समक्ष क्षमादान याचिका पेश करने का निर्देश दिया है। तब तक सजा पर रोक लगा दी है।
याचिकाकर्ता कॉलेज छात्रा शुभा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह के मामले में सामाजिक परिस्थतियों के दबाव में आकर अपराध करने वाली युवतियों व महिलाओं के प्रति सुधारात्मकक दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे लैंगिक असमानताएं और सामाजिक मानदंड व बंधन एक महिला को अलग-थलग कर सकते हैं। सामाजिक बंधनों के कारण उसे अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने से रोका जाता है। इसका भयावह परिणाम कानून के विरुद्ध अवज्ञाकारी काम करने के लिए प्रेरित करना भी हो सकता है।
डिवीजन बेंच कर्नाटक हाई कोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध पेशअपील पर सुनवाई कर रहा था जिसमें याचिकाकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और धारा 120 बी के तहत दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सज़ा को बरकरार रखा गया था। मामला युवा कॉलेज छात्रा शुभा द्वारा अपने मंगेतर की हत्या से संबंधित है। जिसमें उसने अपने करीबी दोस्त अरुण वर्मा और दो अन्य लोगों, वेंकटेश और दिनेश उर्फ दिनाकरन की मदद से हत्या की थी।
कोर्ट ने पाया कि मृतक की हत्या की साजिश रचने का शुभा का मकसद था कि उसके माता-पिता उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे शादी के लिए मजबूर कर रहे थे और उसने यह बात अपने करीबी दोस्त अरुण को बताई थी। विवाह के लिए सामाजिक दबाव, बाहरी तत्व और असमानताएं महिलाओं को अपराध करने के लिए कैसे प्रेरित करती है। डिवीजन बेंच ने सामाजिक, परिस्थितिजन्य कारण व कारकों का विश्लेषण किया जो एक महिला के विद्रोही आचरण को आकार देने में योगदान दे सकते हैं। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे सामाजिक असमानताएं, गहरी लैंगिक भूमिकाएं, और दबावपूर्ण परिस्थितियां अक्सर महिलाओं को अपनी पसंद और स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने से रोकती हैं।
कोर्ट की गंभीर टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की की प्रतिक्रिया एक गरीब या यहां तक कि एक अमीर परिवार की लड़की की तुलना में भिन्न हो सकती है। एक महिला द्वारा लिया गया निर्णय उसके जीवन में विशिष्ट परिस्थितियों के प्रभाव के आधार पर अलग हो सकता है। कैसे ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जहां विवाह करने की मजबूरी में फंसी महिलाओं के लिए आशा के सभी द्वार बंद हो जाते हैं। जिसके कारण या तो वे चुपचाप कष्ट सहती हैं या अत्यंत विद्रोही कदम उठाती हैं।
पुनर्वास के साथ सुधार करना जरुरी
कोर्ट ने कहा कि अपराधी की कानूनी या सामाजिक स्थिति को बदल सकता है, लेकिन उसके कार्यों के मूल कारण का पता लगाना या उन मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कारकों को दूर करना पर्याप्त नहीं होगा जिनके कारण उसने अपराध किया। विचलित व्यक्ति को सुधारा जाए और उसका पुनर्वास किया जाए ताकि उसे समाज के दायरे में वापस लाया जा सके। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब अपराधी उन कारणों के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार न हो जिनके कारण अपराध हुआ।
क्षमादान का दिया अवसर, राज्यपाल के समक्ष अपील करने कहा
महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को राज्यपाल के समक्ष क्षमादान मांगने का अवसर दिया है। कोर्ट ने अवसर देने के साथ ही यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता शुभा ने अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने के लिए मजबूर करने की हताशा में यह अपराध किया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके अपराध को क्षमा नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता वयस्क होने के बावजूद, अपने लिए निर्णय लेने में असमर्थ थी। ऐसा कहने के बाद, हम उसके कृत्य को क्षमा नहीं कर सकते। इससे इसके परिणामस्वरूप एक निर्दोष युवक की जान चली गई।
क्षमादान याचिका के लिए आठ सप्ताह की मोहलत
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत क्षमादान के अधिकार का प्रयोग करने की छूट देते हुए राज्यपाल के समक्ष क्षमादान याचिका पेश करने कहा है। इसके लिए आठ सप्ताह का समय दिया है। राज्यपाल द्वारा क्षमादान याचिकाओं पर निर्णय लिए जाने तक सजा पर रोक लगा दी है।
