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Supreme Court: कर्मचारियों के हित में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: नौकरी के दौरान दिव्यांग होने पर कर्मचारी को दूसरा नौकरी देना नियोक्ता की जिम्मेदारी

Supreme Court: Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के हित में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदिव कोई कर्मचारी सेवा के दौरान दिव्यांग हो जाता है कि कर्मचारी को दूसरा काम देना नियोक्ता की जिम्मेदारी बनती है। वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।

Supreme Court: कर्मचारियों के हित में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: नौकरी के दौरान दिव्यांग होने पर कर्मचारी को दूसरा नौकरी देना नियोक्ता की जिम्मेदारी
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By Radhakishan Sharma

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले से कर्मचारियों के लिए राहत वाली बात है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि यदि कोई कर्मचारी सेवाकाल के दौरान दिव्यांग का शिकार हो जाता है तो यह नियोक्ता की जिम्मेदारी बनती है उसे दूसरा काम दिया जाए। यह नियोक्ता की संवैधानिक के साथ ही वैधानिक जिम्मेदारी बनती है कि वह संबंधित कर्मचारी को उपयुक्त वैकल्पिक पद प्रदान करे।

आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम APSRTC के एक बस चालक को सेवाकाल के दौरान कलर ब्लाइंडनेस Colour Blindness के कारण सेवा से हटा दिया गया था। कर्मचारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सड़क परिवहन निगम के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें APSRTC द्वारा याचिकाकर्ता को सेवा से हटाने के निर्णय को सही ठहराया था, जबकि निगम ने याचिकाकर्ता के लिए कोई वैकल्पिक पद तलाशने या प्रस्तावित करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया।

0 सुप्रीम कोर्ट की समझाइश

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में टिप्पणी की, सेवा के दौरान दिव्यांगता प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को बिना उचित और न्यायसंगत पुनर्नियोजन के अवसर दिए सेवा से बाहर नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे कर्मचारियों को समायोजित करना केवल प्रशासनिक उदारता का विषय नहीं बल्कि संवैधानिक और विधिक बाध्यता है, जो गैर-भेदभाव, गरिमा और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है।

0 चिकित्सकीय रूप से अयोग्य होना मतलब पूरी तरह से सार्वजनिक सेवा के लिए अयोग्य होना नहीं

APSRTC की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया कि 1986 के समझौता ज्ञापन ने 1979 के MoS को प्रभावहीन बना दिया है और अब वैकल्पिक रोजगार देना अनिवार्य नहीं है। डिवीजन बेंच ने APSRTC के इस तर्क को खारिज कर दिया और Kunal Singh v. Union of India (2003) मामले का हवाला देते हुए कहा: यह मान लेना कि किसी विशेष पद के लिए चिकित्सकीय रूप से अयोग्य होना मतलब पूरी तरह से सार्वजनिक सेवा के लिए अयोग्य होना, कानूनन गलत है।

0 सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह के भीतर दें नौकरी

कोर्ट ने कहा कि कलर ब्लाइंडनेस भले ही ड्राइविंग के लिए बाधक हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं कि याचिकाकर्ता किसी गैर-ड्राइविंग काम के लिए भी अयोग्य है। न तो उसे पूर्णतः अक्षम घोषित किया गया, न ही यह कहा गया कि वह अन्य कार्य करने में असमर्थ है। याचिकाकर्ता ने श्रमिक पद के लिए पुनर्नियोजन का अनुरोध किया था, जो सामान्य रंग दृष्टि की मांग नहीं करता। लेकिन निगम ने न तो उसकी उपयुक्तता का मूल्यांकन किया और न ही ऐसे पदों की उपलब्धता की जांच की। सुप्रीम कोर्ट ने APSRTC को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को उसकी स्थिति के अनुसार उपयुक्त पद प्रदान करे, जो उसके पिछले वेतनमान पर ही हो। आदेश प्राप्त होने के आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को नौकरी देने का निर्देश दिया है।

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