सिर्फ धान पर निर्भरता नहींः विष्णुदेव सरकार की योजनाओं से जैविक और प्राकृतिक खेती से आत्मनिर्भर होकर नया इतिहास रच रहे छत्तीसगढ़ के किसान
छत्तीसगढ़ के किसान अब सिर्फ धान की एक फसली खेती पर निर्भर नहीं हैं। अब दो फसली, तीन फसली खेती की जा रही है। छत्तीसगढ़ अब सब्जियों के मामले में भी आत्मनिर्भर होने की स्थिति में है।

रायपुर। हमारे देश की प्राचीन परंपराओं में ऋषि कृषि की संकल्पना निहित है, जिसमें गौ आधारित प्राकृतिक एवं जैविक कृषि पद्धतियों का प्रयोग किया जाता था। प्राकृतिक एवं जैविक कृषि धरती माता को स्वस्थ रखने के साथ ही फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करती है। साथ ही मानव, पशु-पक्षी, कीट-पतंगों, सूक्षम जीवों तथा पर्यावरण के स्वास्थ्य की भी रक्षा करती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की मदद से छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार के प्रयासों से देश में लाखों किसानो ने प्राकृतिक एवं जैविक कृषि को अपनाया है। किसान अपने खेतों पर अगली फसल के लिए जैविक पद्धति से बीज तैयार कर रहे हैं। साथ ही खाद, कीट नाशक तथा अन्य सामग्री तैयार कर स्वावलंबी कृषि ओर बढ़ रहे हैं। जैविक कृषि फसल एवं पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए भी लाभकारी है।
हरित क्रान्ति भारत के लिए जरूरी थी लेकिन उसके कारण देश के कई महत्वपूर्ण परंपरागत बीज कृषि प्रणाली से बाहर हो गये। इसी प्रकार श्वेत क्रान्ति ने भी हमारी बहुमूल्य देशी गौ प्रजातियों को समाप्त कर दिया। कुछ सौ साल पहले भारत का हर गांव कृषि के मामले में स्वावलंबी था जहां अनाज से लेकर दलहन, तिहलन तथा फल सब्जियों का पर्याप्त उत्पादन होता था लेकिन बाजार आधारित कृषि ने गांवों को विपन्न बना दिया है। आज हमारा देश हर वर्ष केवल खाद्य तेलो के आयात पर 75 हजार करोड़ रूपये व्यय कर रहा है। आज आवश्यकता हमारी प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं को पुनर्जीवित करने तथा उन पर अमल करने की है। प्राकृतिक एवं जैविक कृषि प्रणाली के द्वारा हम फिर से भारत को सोने के चिड़िया बनाने में समर्थ होंगे।
आज पूरा विश्व भी भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। प्रदेश के किसान सुगंधित चावल विष्णुभोग चावल, देवभोग चावल, जीराफूल चावल, तुलसी मंजरी चावल, ब्लैक साईस, रेड साईस, ग्रीन साईस, ब्राउन साईस, एचएमटी चावल, कोदो चावल, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर,मशरूम बड़ी, मशरूम पापड़, मशरूम पाउडर, मशरूम अचार, महुआ लड्डू, शहद, बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी, तेल, मल्टीग्रेन आटा, रागी का आटा, चावल का आटा, कॉन्सेंट्रेट, हनी बी वैक्स, लिप बाम, फुट क्रीम, हर्बल साबुन, मोरिंगा पाउडर, फिनाइल, दालें, अरहर दाल, उड़द दाल, मसूर दाल, लाखड़ी दाल, पोहा, ज्वार, बाजरा, सफेद तिल, चना दाल, सरसों, काजू, इमली की जैविक और प्राकृतिक पैदावार कर रहे हैं।
खेती बना केशगंवा की पहचान
कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के छोटे से गांव की 20 महिलाएं आज जैविक खेती के माध्यम से आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी हैं। स्व-सहायता समूह की इन महिलाओं ने उद्यानिकी विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से 50-50 डिसमिल भूमि पर लौकी, करेला और एक-एक एकड़ में मिर्ची और टमाटर की जैविक खेती कर रही हैं। बिना किसी रासायनिक खाद और कीटनाशक के उगाई गई ये फसलें न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि स्वाद और पोषण में भी बेहतरीन हैं। यह पहल न केवल इन महिलाओं के लिए आजीविका का साधन बनी है, बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति, सामाजिक पहचान और पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शुद्धता, स्वाद और स्वास्थ्य का यह मेल अब गांव की हर किचन तक पहुँच रहा है। जिले की कलेक्टर चंदन त्रिपाठी के मार्गदर्शन में यह प्रयास शुरू हुआ। उन्होंने विगत दिनों स्वयं खेतों का निरीक्षण किया था और महिलाओं की सराहना करते हुए कहा, ‘जैविक खेती महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर है।‘ कलेक्टर ने यह भी कहा कि प्रशासन ग्रामीण महिलाओं को रोजगार और आय के सशक्त अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है। स्व-सहायता समूह की महिलाएं न केवल जैविक फसल उगा रही हैं, बल्कि उन्हें थोक मंडियों और फुटकर विक्रेताओं को बेचकर नियमित आय अर्जित कर रही हैं। अभी तक 15-15 क्विंटल लौकी और करेला बेच चुके हैं, जिससे उन्हें 35 हजार रुपए की आमदनी हुई है। उद्यानिकी विभाग के अधिकारी विनय त्रिपाठी ने बताया कि इन समूहों को 1690 हाईब्रिड पौधा दिया गया था, इसके अलावा फेसिंग, मल्चिंग, ड्रिप सिस्टम, जैविक खाद, दवाई आदि उपलब्ध कराया गया था। उन्होंने कहा कि इस पहल ने इनका आत्मविश्वास बढ़ाया है और घर की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया है। एक महिला किसान ने कहा, ‘अब हम खुद को गर्व से किसान कहती हैं। हमारी मेहनत अब आमदनी बढ़ रही है।
जब किसान के खेत पहुंचे मुख्यमंत्री साय
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय आज सुशासन तिहार के तहत औचक निरीक्षण पर बेमेतरा जिले के ग्राम सहसपुर आये। इस दौरान वे सहसपुर ग्राम के उत्कृष्ट किसान रोहित साहू के खेत में भी पहुंचे। मुख्यमंत्री को रोहित साहू ने बताया कि वे पिछले 9 साल से केला और पपीता की खेती कर रहे हैं, जिससे वे लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं और 15-20 लोगों को अपने खेत में रोजगार भी दे रहे हैं। मुख्यमंत्री को किसान ने अपने खेत के ताजे केला और पपीता भेंट किये।
मुख्यमंत्री को उन्होंने बताया कि वे 5 एकड़ में केला और साढ़े तीन एकड़ में पपीता की खेती कर रहे हैं। जिससे वे केले से प्रति एकड़ डेढ़ लाख रुपये व पपीता से 1 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं। रोहित साहू ने बताया कि केला और पपीता की खेती से वे धान के मुकाबले अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि धान के अतिरिक्त अन्य लाभप्रद फसलों की ओर भी किसानों को बढ़ने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ की मिट्टी बहुत उर्वरा है। इस तरह किसान कृषि से और लाभ कमा पाएंगे। मुख्यमंत्री ने किसान की सराहना करते हए कहा कि उनकी खेती सभी किसानों के लिए प्रेरणादायी है।
आधुनिक खेती से बढ़ी रमाकांत की आमदनी
महासमुंद जिले के सरायपाली ब्लॉक स्थित ग्राम पण्डरीपानी के किसान रमाकांत पटेल आधुनिक कृषि उपकरणों एवं नवीन तकनीक का सही इस्तेमाल कर अपनी आमदनी बढ़ाने में सफलता हासिल की है। अधिकतर किसान जहां पारंपरिक खेती के भरोसे सीमित आमदनी से जूझ रहे हैं, वहीं रमाकांत ने शासकीय योजनाओं का समुचित लाभ उठाते हुए और आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाकर खेती को समृद्धि और आत्मनिर्भरता का जरिया बना दिया है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना 2024-25 के तहत रमाकांत ने मात्र 0.40 हेक्टेयर भूमि में ग्राफ्टेड बैंगन की खेती की। रमाकांत ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना 2024-25 के तहत मिले सहयोग से केवल 0.40 हेक्टेयर भूमि में ग्राफ्टेड बैंगन की खेती शुरू की। परंपरागत तरीके छोड़कर उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, मल्चिंग तकनीक और आधुनिक कृषि यंत्रों का इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप, उन्हें 300 क्विंटल बैंगन की शानदार पैदावार प्राप्त हुई, जिससे उन्होंने लगभग 5 लाख रुपए की आमदनी अर्जित की। रमाकांत बताते हैं कि यदि बाजार भाव और बेहतर होते, तो कमाई इससे भी अधिक हो सकती थी। सफलता से उत्साहित होकर अब वे 3 एकड़ भूमि में मिर्च, बैंगन और करेला जैसी फसलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यदि बाजार में फसल की अच्छी कीमत मिलती, तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता था। इस सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अब मिर्च, बैंगन और करेला की खेती को विस्तार देते हुए 3 एकड़ भूमि में यह कार्य शुरू किया है। रमाकांत की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यदि छोटे किसान आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाएं और सरकारी योजनाओं का सही ढंग से लाभ उठाएं, तो वे आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ सकते हैं और सब्ज़ी की खेती से शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। रमाकांत की मेहनत और सूझबूझ इस बात का उदाहरण है कि यदि नीति, तकनीक और परिश्रम का सही संगम हो, तो गांवों से ही समृद्धि की नई इबारत लिखी जा सकती है।
शिक्षा और शोध पर साथ काम करेंगे आईआईटी भिलाई और कृषि विवि
छत्तीसगढ़ के दो प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भिलाई शिक्षा, शोध तथा प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। दोनों संस्थानों के विद्यार्थियां के प्रशिक्षण, गुणवत्तापूर्ण स्नातकोत्तर शोध, संकाय शोध तथा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास की संयुक्त परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु आज यहां दोनों संस्थानों के मध्य पांच वर्षीय समझौता किया गया। समझौता ज्ञापन पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भिलाई के निदेशक डॉ. राजीव प्रकाश ने हस्ताक्षर किये। प्रदेश के दो उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों के बीच हुए समझौते से राज्य में शोध, अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को नई दिशा मिलेगी।
इस अवसर पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.), भिलाई एवं छत्तीसगढ़ बायोटेक प्रमोशन सोसायटी के मध्य स्टार्टअप इन्क्यूबेशन एवं प्रौद्योगिकी विकास में सहयोग हेतु भी समझौता ज्ञापन किया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भिलाई के मध्य संपन्न समझौते के तहत दोनो संस्थानों में स्नातकोत्तर तथा शोध पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के शोध कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए दोनों संस्थान एक-दूसरे को मान्यता देंगे। दोनों पक्ष चुनौतीपूर्ण शोध समस्याओं पर केन्द्रित संयुक्त सहयोगी शोध में भी संलग्न होंगे, जिससे समस्या की पहचान, जैविक सामग्री के आदान-प्रदान तथा शोध कार्यां का संपादन किया जा सकेगा। दोनों संस्थानों में उपलब्ध शोध सुविधाओं और पुस्तकालय सुविधाओं का उपयोग भी किया जा सकेगा। शैक्षणिक शोध और प्रशिक्षण के लिए छात्रों का आदान-प्रदान होगा तथा वे दोनों संस्थानों में उपलब्ध छात्रावास सुविधा का लाभ भी ले सकेंगे। दोनों संस्थान उपलब्ध सूचनाओं, वैज्ञानिक या तकनीकी डेटा, प्रौद्योगिकी तथा अन्य जानकारियों का भी परस्पर उपयोग कर सकेंगे। समझौते के तहत दोनों संस्थानों के संकाय सदस्य भी एक-दूसरे संस्थान में शोध एवं अनुसंधान कार्य संपादित कर सकेंगे।
मूंगफली से लिया 4 गुना मुनाफा
परंपरागत खेती से इतर नगदी फसलों की ओर रुझान बढ़ने से ग्रामीण अंचलों में खेती एक लाभकारी व्यवसाय बनती जा रही है। फसल विविधीकरण अपनाकर किसान न केवल लागत में कमी ला रहे हैं, बल्कि आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि कर रहे हैं। ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है छुरिया विकासखंड के वनांचल ग्राम घोटिया के किसान नारद पटेल ने, जिन्होंने रबी मौसम में मूंगफली की खेती कर लागत से 4 गुना से अधिक मुनाफा हासिल किया है। नारद पटेल ने एक हेक्टेयर भूमि में मूंगफली की खेती कर 12 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया, जिससे उन्हें 72 हजार रुपये की कुल आय हुई। इस फसल पर मात्र 14 हजार रुपये की लागत आई, जिससे उन्हें 57 हजार 953 रुपये की शुद्ध आमदनी प्राप्त हुई।
मूंगफली की खेती में कम पानी, कम खाद और कम दवाई की आवश्यकता होती है, जिससे उत्पादन लागत काफी कम हो जाती है। नारद पटेल के पास कुल 2 हेक्टेयर कृषि भूमि है, जिसमें से एक हेक्टेयर में वे उद्यानिकी फसलें और शेष एक हेक्टेयर में मूंगफली की खेती करते हैं। नारद विगत 12 वर्षों से सब्जी, मक्का और मूंग की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें फसल विविधिकरण का अच्छा खासा अनुभव है। कृषि विभाग द्वारा उन्हें टीआरएफए तिलहन योजनांतर्गत बीज प्रदान किया गया एवं खेत में निंदाई, गुड़ाई तथा फसल प्रबंधन में तकनीकी मार्गदर्शन दिया गया, जिससे उत्पादन बेहतर हुआ। उनकी इस सफलता से आसपास के किसान भी प्रभावित हुए हैं और अब वे भी फसल विविधीकरण तथा नगदी फसलों की उन्नत खेती की दिशा में प्रेरित हो रहे हैं।