Begin typing your search above and press return to search.

RTI मामले में HC का बड़ा फैसला: शिक्षा विभाग के अफसरों की लगाई क्लास, पूछा- 'अब तक क्या हुई कार्रवाई?'

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के तहत चल रहे फर्जीवाड़े और बिना मान्यता वाले स्कूलों के खिलाफ एक कड़ा रुख अपनाया है..

RTI मामले में HC का बड़ा फैसला: शिक्षा विभाग के अफसरों की लगाई क्लास, पूछा- अब तक क्या हुई कार्रवाई?
X

Chhattisgarh High Court (NPG FILE PHOTO)

By Ashish Kumar Goswami

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के तहत चल रहे फर्जीवाड़े और बिना मान्यता वाले स्कूलों के खिलाफ एक कड़ा रुख अपनाया है। बीते बुधवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शिक्षा विभाग के अफसरों को जमकर फटकार लगाई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीज़न बेंच ने इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से लिया है।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के अनुसार, भिलाई के एक सामाजिक कार्यकर्ता भगवंत राव ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के माध्यम से हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि RTE कानून के तहत गरीब बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर बड़े और अमीर घरों के बच्चे फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दाखिला ले रहे हैं।

इसके अलावा, राज्य में बिना किसी मान्यता के कई नर्सरी और केजी स्कूल गली-गली में चल रहे हैं। याचिका में कहा गया था कि, शिक्षा विभाग इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है। इसके आलावा आरटीआई कार्यकर्ता विकास तिवारी ने भी बिना मान्यता वाले नर्सरी स्कूलों के खिलाफ एक और जनहित याचिका दायर की थी।

शिक्षा सचिव पर जताई नाराजगी

इस मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने शिक्षा सचिव से व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर शपथ पत्र देने को कहा था। लेकिन, सुनवाई के दिन शिक्षा सचिव के बजाय संयुक्त सचिव ने शपथ पत्र पेश किया, जिसमें उनकी व्यस्तता का हवाला दिया गया था।

इस पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र अग्रवाल की डिवीज़न बेंच ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि, 'कोर्ट की कार्यवाही को मजाक में ना लें।' उन्होंने साफ तौर पर कहा कि, किसी भी अधिकारी या व्यक्ति को कोर्ट की कार्यवाही को हल्के में नहीं लेना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, अगर कोई अधिकारी अनुपस्थित रहना चाहता है, तो उसे पहले से ही आवेदन देना अनिवार्य है।

कोर्ट ने पूछा- 'अब तक क्या कार्रवाई हुई?'

कोर्ट ने शिक्षा विभाग से सीधे सवाल किया कि, जिन लोगों ने गरीब बच्चों का हक मारकर फर्जी दस्तावेजों से अपने बच्चों का एडमिशन कराया है, उन पर अब तक क्या कार्रवाई की गई है? कोर्ट ने शिक्षा विभाग से उन स्कूलों के खिलाफ भी की गई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है, जो बिना मान्यता के चल रहे हैं।

हाई कोर्ट ने याद दिलाया कि, 5 जनवरी 2013 को ही एक सर्कुलर जारी किया गया था, जिसमें बिना मान्यता वाले नर्सरी और प्ले स्कूलों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद पिछले 15 सालों से ऐसे संस्थान खुलेआम चल रहे हैं, जिसे कोर्ट ने एक गंभीर लापरवाही माना है।

अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को

हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर एक स्पष्ट कार्ययोजना और शपथ पत्र पेश करने का निर्देश दिया है। इसमें उन्हें बताना होगा कि RTE फर्जीवाड़े और बिना मान्यता वाले स्कूलों पर क्या-क्या कार्रवाई की गई है। इस मामले की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को तय की गई है।

शिक्षा विभाग ने शुरु किया जानकारी जुटाना

इस फटकार के बाद, राज्य सरकार ने अपने जवाब में बताया कि, सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को 15 दिन के भीतर राज्य के सभी प्ले स्कूल और प्री-प्राइमरी स्कूलों की जानकारी इकट्ठा करने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा, नई शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिशों के आधार पर नए नियम और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए एक सात-सदस्यीय समिति का भी गठन किया गया है। हाई कोर्ट की इस सख्ती से यह उम्मीद की जा रही है कि, अब छत्तीसगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे फर्जीवाड़े और अनियमितताओं पर लगाम लगेगी और गरीब बच्चों को उनका सही हक मिल पाएगा।

Next Story