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Parry Nadi Sitabari: छत्तीसगढ़ में खुदाई के दौरान मिला था ढाई हजार साल पुराना कुआं, अब देखने के लिए उमड़ रही लोगों की भीड़...

Parry Nadi Sitabari: सीताबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले वर्षों में खुदाई की गई थी।

Parry Nadi Sitabari: छत्तीसगढ़ में खुदाई के दौरान मिला था ढाई हजार साल पुराना कुआं, अब देखने के लिए उमड़ रही लोगों की भीड़...
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By Sandeep Kumar Kadukar

Parry Nadi Sitabari रायपुर। राजिम कुंभ कल्प मेला का आयोजन ’रामोत्सव’ की थीम पर मनाया जा रहा है। आयोजन को लेकर राजिम सहित आसपास के क्षेत्रों में लाइट से डेकोरेट किया गया है। वहीं राजिम मेला क्षेत्र के पैरी नदी किनारे सीताबाड़ी में लोगों की भीड़ बढ़ रही है। सीताबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले वर्षों में खुदाई की गई थी। खुदाई के दौरान मौर्यकाल तक के अवशेष मिले थे। अवशेष के आधार पर पुरातत्ववेता के अनुसार इस जगह पर किसी समय में बंदरगाह होने की पुष्टि मिलती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बंदरगाह से व्यापार किया जाता रहा है।

सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा की जा चुकी है खुदाई

कुछ वर्ष पहले सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की गई थी। खुदाई के दौरान मौर्यकाल तक के अवशेष मिले थे। तात्कालीन सीताबाड़ी खुदाई के प्रभारी रहे डॉ. अरुण शर्मा ने बताया था कि सिरपुर के उत्खनन में करीब 2600 वर्ष पहले के अवशेष प्राप्त हुए थे। लेकिन राजिम में उत्खनन के सबसे नीचे तह में करीब 2800 वर्ष पूर्व निर्मित तराशे हुए पत्थरों से निर्मित दीवारें मिली थी, जिनसे बड़े-बड़े कमरे बनते थे।

ज्ञात हो कि प्राचीन काल नगरीय सभ्यता का विकास नदी के किनारे ही हुआ है और सभ्यताएं यही से निखरी हैं। पहले लोग घुमंतू होते थे और जीवन की तलाश में हमेशा ऐसी जगह को प्राथमिकता देते थे जहां पानी, भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हो। इस लिहाज से माना जा सकता है कि महानदी तट पर विकसित सभ्यता के साथ व्यापारिक आदान-प्रदान के लिये उपयोगी जलमार्ग के कारण यहां बंदरगाह के अवशेष पाये जाना तर्क संगत हो सकता है।

वैसे भी राजिम को तेल व्यवसाय का बड़ा और मुख्य केन्द्र माना जाता है। तेल का व्यवसाय करने वाली जाति की आज भी इस क्षेत्र में काफी बाहुल्यता है। राजिम की किंवदंतियों के तेली समाज की अहम भूमिका भी सुनने को मिली है। एक किंवदंतियों यह भी है कि राजिम तेलिन बाई नामक भक्तिन माता के नाम से ही इस शहर का नाम राजिम पड़ा, जो प्राचीन काल में कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी के नाम से प्रख्यात था।

आज राजिम प्रदेश के विकसित नगरों में से एक है यहां की प्राचीन धरोहरों के अवशेष राजिम की महानदी घाटी की सभ्यता का सशक्त द्योतक है। जिसकी प्रमाणिकता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा हुआ है। राजिम के साहित्यकार और भागवताचार्य संत कृष्णारंजन तिवारी ने अपनी किताब महानदी घाटी की सभ्यता में राजिम के विभिन्न बिन्दुओें का तार्किक ढंग से व्याख्या की है जिसमें उन्होंने सिंधु घाटी की सभ्यता की तरह महानदी घाटी की सभ्यता को भी काफी विकसित और समृद्धशाली बताया है। हालांकि इसकी पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं किया जा सकता। चूंकि शासन द्वारा राजिम माघी पुन्नी मेला को कुंभ कल्प का स्वरूप दिया गया है। इससे राजिम की कला, संस्कृति और सभ्यता की ख्याति भी देश-दुनिया तक फैली है। जिसका मुख्य कारण राजिम में आयोजित होने वाला कुंभ कल्प ही है। यह श्रेय भी राजिम कुंभ कल्प को जाता है।

Sandeep Kumar Kadukar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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