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New Year Trip Plan 2026 : बजट और टाइमिंग ने बिगाड़ा नए साल की Planing ! कोई बात नहीं, अपने क्षेत्र में ही करें काशी, पंचकोशी और खजुराहों के दर्शन

New Year Trip Plan 2026 : छत्तीसगढ़ के हर कण-कण में समाये हैं हमारे शिव, पौराणिकता और त्रिदेवों से है गहरा नाता, तो फिर नए वर्ष में करें इनके दर्शन और जीवन को बनाये सुखमय.

New Year Trip Plan 2026 : बजट और टाइमिंग ने बिगाड़ा नए साल की Planing ! कोई बात नहीं, अपने क्षेत्र में ही करें काशी, पंचकोशी और खजुराहों के दर्शन
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By Meenu Tiwari

New Year Trip Plan in chattisgarh shiv mandir,: हर इंसान के दिल की यही चाहत होती है कि उसका बीता वर्ष जैसा भी गया हो, पर नव वर्ष सुखमय और शांतिपूर्ण होना चाहिए. इसलिए नए वर्ष की शुरुआत पवित्र दिव्य स्थान से करनी चाहिए। और शिव की नगरी से पवित्र जगह कौन सी होगी। इसलिए इस नए साल में हम आपको छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों के प्रसिद्ध और मान्यता से भरे शिव धामों से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो अपने आप में दिव्यता, पौराणिकता और मान्यता से भरपूर है.


इसलिए इस बार हम आप सभी छत्तीसगढ़वासियों को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लगभग सभी दिव्य और अलौकिक शिवलिंगों से रूबरू करा रहे हैं, जिससे आप जहाँ के निवासी है वहां के शिवलिंगों के दर्शन प्राप्त कर सकें. और आप जो घर-परिवार, नौकरी या बच्चों की पढाई के चलते कहीं बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो अपने क्षेत्र के ही इन दिव्य काशी, पंचकोशी और खजुराहों जैसे जगहों पर अपना नया साल खास बना सकते हैं... तो चलिए फिर चलते हैं इस नये वर्ष शिव की नगरी.

रायपुर के प्रसिद्ध शिव धाम

हटकेश्वर महादेव मंदिर : रायपुर



छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 5 किमी दूर महादेव घाट पर खारुन नदी के किनारे हटकेश्वर महादेव मंदिर है. यह मंदिर अपने स्वयंभू शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है और नागर ब्राह्मणों के कुलदेवता हैं. यह मंदिर अपनी खूबसूरत वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और कार्तिक पूर्णिमा व महाशिवरात्रि पर लगने वाले मेलों के लिए जाना जाता है, जहाँ भक्त आस्था और पुण्य की डुबकी लगाने आते हैं। गर्भगृह में जमीन से स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। 1402 ईस्वी में कलचुरी वंश के राजा ब्रह्मदेव राय के शासनकाल में हाजीराज नाइक द्वारा इसे निर्मित किया गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर नौ ग्रह, देवी-देवता, रामायण-महाभारत के दृश्य और अन्य कलाकृतियां हैं।

पंचमुखी शिव मंदिर : सरोना



रायपुर जिले के कुम्हारी के समीप सरोना में विराजित 250 साल पुराना प्राचीन पंचमुखी शिवलिंग संतान प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है. यह शिव मंदिर दो तालाबों के बीच स्थित है.

मोहदेश्वर महादेव मंदिर : मोहदा (तरपोंगी)




रायपुर के धरसीवां क्षेत्र के तरपोंगी के मोहदा ग्राम के स्वयंभू शिवलिंग लगभग 200 साल से अधिक प्राचीन है. ये शिवलिंग साल में तीन बार स्वरूप बदलते है. यह रायपुर-बिलासपुर NH पर मोहदा गांव में स्थित है. तीन बार स्वरूप बदलने के कारन यह शिवलिंग आसपास में प्रसिद्द है. यहाँ होली के दिन मेला लगता है.

देवबलोदा शिव मंदिर : रायपुर




रायपुर से लगभग 21 किमी दूर दुर्ग जिले की सीमा के पास 12वीं-13वीं सदी का देवबलोदा शिव मंदिर है. यहाँ 12वीं सदी का अधूरा गुंबद है. मान्यता है की यह भूगर्भ से प्रकट शिवलिंग है. यहाँ 12वीं-13वीं सदी की कलाकृतियां मौजूद है. यह मंदिर अपने प्राचीनता के कारण प्रसिद्द है.

शिव मंदिर, चंदखुरी




रायपुर के मंदिर हसौद से 12 किमी दूर, NH-53 पर चंदखुरी है, जहाँ शिव मंदिर है. यह शिव मंदिर 10-11वीं सदी का नागर शैली का मंदिर है. मंदिर का निर्माण सोमवंशी नरेशों द्वारा कराया गया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1916 में कराया गया था। यह मंदिर चंद्रखुरी की घनी बस्ती के मध्य स्थित है। मंदिर के गर्भ में एक शिव लिंग स्थित है। इस शिवलिंग की आकृति चौकोर है। इसके अलावा मंदिर के बाहर भी कई प्राचीन मूर्तियों को स्थापित किया गया है।

नवागांव का प्राचीन शिव मंदिर : रायपुर




रायपुर के नवागांव का शिव मंदिर 12वीं सदी का ईंटों से बना है. अधूरा गर्भगृह वाला यह मंदिर अलौकिक है. यहाँ पास में ही 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति वाला एक मंदिर है.

बिलासपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिर


पातालेश्वर महादेव मंदिर : मल्हार




बिलासपुर से लगभग 32 किमी. दूर पातालेश्वर महादेव मंदिर (मल्हार) मल्हार पर स्थित है. अपने रहस्यमयी शिवलिंग और पातालोकि जलधारा के लिए यह मंदिर प्रसिद्द है. यहाँ शिवलिंग भूगर्भ में स्थित है, जिस पर चढ़ाया जल पाताल लोक तक जाता है, यह एक रहस्य है. यह कल्चुरी काल (10वीं-13वीं सदी) का है और 108 कोणों वाला मंदिर है.

नर्मदेश्वर महादेव मंदिर : बिलासपुर




बिलासपुर के बेलपान में नर्मदेश्वर महादेव मंदिर है. यह मंदिर 16वीं सदी का है और इसके प्रांगण में लगे बेल के वृक्षों के कारण इस मंदिर का नाम 'बेलपान' पड़ा. यहाँ एक पवित्र कुंड है, जिसे नर्मदा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है.


देवरानी-जेठानी मंदिर : ताला




बिलासपुर के ताला में प्राचीन शिव मंदिर है. जो अपनी नक्काशीदार मूर्तियों और संरचना के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ रुद्रशिव की विशाल प्रतिमा और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं.

प्राचीन शिव मंदिर : किरारीगोढ़ी




बिलासपुर के किरारीगोढ़ी में प्राचीन शिव मंदिर है. यह मंदिर कल्चुरी कालीन (11वीं-12वीं सदी) का एक और महत्वपूर्ण शिव मंदिर है, जिसे राज्य द्वारा संरक्षित किया गया है.

चांटीडीह शिव मंदिर : बिलासपुर

बिलासपुर शहर में लगभग 102 साल पुराना मंदिर है. जहाँ महाशिवरात्रि पर ध्वज चढ़ाने और शोभायात्रा निकालने की परंपरा है. यहाँ चारों धाम के दर्शन का अनुभव करने का दावा भी किया जाता है. इसलिए इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है.


बस्तर जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिर


गुमड़पाल शिव मंदिर : सिंघाईगुड़ी




बस्तर जिले में तीरथगढ़ के पास गुमड़पाल का शिव मंदिर, जो सिंघाईगुड़ी के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर काकतीय स्थापत्य कला का प्रतीक है. यह मंदिर 13वीं-14वीं शताब्दी का है. काकतीय शैली में निर्मित, बलुआ पत्थर से बना है. यहाँ योनिपीठ पर स्थापित अनोखा शिवलिंग है. यह एक ऐसा शिव मंदिर है जहाँ दो नंदी की प्रतिमाएँ है.

समलूर शिव मंदिर : बैलाडीला

बैलाडीला की गोद में बसा समलूर गाँव में समलूर शिव मंदिर है. यहाँ आदिवासी और हिंदू परंपराओं का संगम देखने को मिलता है. यह मंदिर नागवंश की महारानी द्वारा निर्मित किया गया है. बस्तर के प्राचीन मंदिरों में से ये मंदिर एक है. यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है.

भाटीपारा शिव मंदिर : जगदलपुर

जगदलपुर से लगभग 18 किमी दूर रायपुर रोड पर भाटीपारा शिव मंदिर है. यह मंदिर 11वीं शताब्दी का है. पत्थरों से निर्मित मंदिर में नंदी और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ है, जहाँ प्राचीन लिखावट और डिजाइन है. जो इस मंदिर की प्राचीनता को दिखाती है.

बस्तर का शिवालय : जगदलपुर

जगदलपुर-रायपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर 11वीं शताब्दी का स्वयंभू शिवलिंग है. इस शिवालय में नि:संतानों की मनोकामना पूर्ति होती है. इसके लिए यह प्रसिद्ध है. यहाँ शिवरात्रि के बजाय माघ महीने में गंगादई मेला लगता है. ये मंदिर बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाते हैं, जहाँ प्राचीन वास्तुकला और आदिवासी रीति-रिवाज एक साथ देखने को मिलते हैं.


जांजगीर-चांपा जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिर

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर : खरौद



जांजगीर-चांपा जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर (खरौद) भी सबसे खास है. इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहते हैं, क्योंकि लक्ष्मण ने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए इसकी स्थापना की थी. यहां का शिवलिंग 1 लाख छिद्रों (लक्ष्य लिंग) वाला है, जिसमें डाला गया पानी पाताल में समा जाता है. यहां सवा लाख चावल के दाने चढ़ाने की परंपरा है.

लखनेश्वर का अर्थ लाखों छिद्र वाला ईश्वर और लक्ष्मणेश्वर का अर्थ होता है- लक्ष्मण का ईश्वर. यहां के शिवलिंग की खासियत यह भी है कि शिवलिंग के लाखों छिद्र के अंदर कुंड बने हैं, जिसमें गंगा, जमुना और सरस्वती नदी का पवित्र जल है. इसलिए यहां पानी कभी कम नहीं होता. ऐसा माना जाता है कि महादेव की इस मंदिर में पूजा करने से लाखों शिवलिंग की पूजा का फल मिलता है और साथ ही छय रोग से भी मुक्ति मिलती है.

एक मान्यता और है की खर और दुषण की नगरी के रूप में खरौद नगर को जाना जाता है. मान्यता के अनुसार, इस मंदिर के शिवलिंग त्रेतायुग में स्वयं लक्ष्मण जी ने स्थापित किया था. राम रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी छय रोग से ग्रसित हो गए थे. तब उन्होंने इसी जगह पर शिवलिंग स्थापित कर महादेव की पूजा की और छय रोग से मुक्ति पाई थी.

लिंगेश्वर महादेव मंदिर : नवागढ़

नवागढ़ के पीथमपुर में लिंगेश्वर महादेव की नगरी है. इसे बाबा कलेश्वर नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह एक स्वयंभू शिवलिंग है, जो समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है. यह स्थान नवागढ़ को "लिंगेश्वर महादेव की नगरी" के रूप में जाना जाता है. यहां के शिवलिंग की जलहरी का जल पीने से पेटदर्द और बांझपन से मुक्ति मिलती है. यह हसदेव नदी के तट पर स्थित है. वहीँ तुर्रीधाम (शिव मंदिर) है. यहां एक प्राकृतिक जलस्रोत से शिवलिंग का निरंतर जलाभिषेक होता रहता है, जो एक रहस्य है.

गरियाबंद जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिर

भूतेश्वरनाथ महादेव मंदिर : मरोदा



गरियाबंद जिले के सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिर भूतेश्वरनाथ महादेव मंदिर है, जो मरोदा गाँव में स्थित है और अपने विशाल, प्राकृतिक रूप से बढ़ते शिवलिंग के लिए जाना जाता है. इसे भकुर्रा भी कहते हैं और यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह विश्व के सबसे विशाल शिवलिंगों में से एक है, जो प्राकृतिक रूप से स्वयं प्रकट हुआ है और हर साल इसकी ऊंचाई और गोलाई बढ़ती है (लगभग 6-8 इंच प्रति वर्ष)। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग के रूप में जाना जाता है और यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समान पूजनीय है। यहाँ शिवलिंग से बैल की आवाज आती है. स्थानीय लोग इसे इसलिए "भकुर्रा" महादेव कहते हैं.

फणिकेश्वर नाथ महादेव मंदिर : फिंगेश्वर




फिंगेश्वर में एक प्राचीन मंदिर है जो अपनी अद्भुत बनावट, कलाकृति और वास्तुकला के लिए जाना जाता है. माना जाता है कि वनवास के दौरान भगवान राम यहां से गुजरे थे और माता सीता ने यहां शिवजी की पूजा की थी, इसलिए इसे पंचकोसी धाम भी कहते हैं। वहीँ कचना धुरवा मंदिर गरियाबंद पहुंचने से पहले आता है और इसे रियासत के राजाओं का स्थान माना जाता है। यह एक तरह का धार्मिक प्रवेश द्वार है, जहां यात्रा की मंगल कामना की जाती है। ये मंदिर गरियाबंद जिले के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल हैं, जो आस्था और प्रकृति के संगम का अनुभव कराते हैं।

सरगुजा जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिर


मधेश्वर महादेव : सरगुजा



छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के जशपुर जिले के कुनकुरी विकासखंड स्थित मयाली गांव में विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद है, जिसे ‘मधेश्वर महादेव’ के नाम से जाना जाता है. चरईडांड-बतौली स्टेट हाईवे पर स्थित यह शिवलिंगनुमा विशाल पर्वत सावन मास में श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र बन जाता है. सैकड़ों वर्षों से लोग इस पर्वत को शिवलिंग के रूप में पूजते आ रहे हैं और आज भी सावन के पावन महीने में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन हेतु पहुंचते हैं. मधेश्वर पर्वत के नीचे स्थित प्राचीन गुफा में सैकड़ों साल पुराना मंदिर है, जहां स्वयंभू शिवलिंग रूप में भगवान शिव विराजमान हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है. विशेष रूप से बीमारियों से परेशान लोग इस पवित्र स्थान पर पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं. भक्तों का विश्वास है कि यहां दर्शन मात्र से मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं. सावन में यहां सुबह से ही लंबी कतारें लग जाती हैं.


महेशपुर का प्राचीन शिव मंदिर : सरगुजा




सरगुजा जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में महेशपुर शिव मंदिर रेड नदी के किनारे, उदयपुर से लगभग 45 किमी दूर स्थित है. यह मंदिर 10वीं शताब्दी का यह मंदिर अपनी नक्काशीदार मूर्तियों, बड़े शिवलिंग और जलहरी के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ विष्णु और अन्य देवताओं के अवशेष मिलते हैं। अंबिकापुर-लखनपुर मार्ग पर देवगढ़ का गौरी-शंकर मंदिर है. यहाँ का शिवलिंग अर्द्धनारीश्वर रूप में है, जिसमें शिव और पार्वती एक साथ अंकित हैं। यह रेणुका नदी के किनारे एकादश रुद्र मंदिरों के भग्नावशेषों के बीच स्थित है।

बेलसर हर्राटोला शिव मंदिर : शंकरगढ़

शंकरगढ़ के पास महानदी और केरछान नाला के संगम पर बेलसर हर्राटोला शिव मंदिर है. इस मंदिर में 8वीं शताब्दी के अवशेषों में कार्तिकेय, गौरी और उमा-महेश्वर की प्रतिमाएं मिली हैं। यह छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित है।वहीँ सरगुजा के पहाड़ी इलाके में चोकरीपानी धाम है. यह एक प्राकृतिक महादेव मंदिर है. यह शिवलिंग का आकार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यहाँ एक चोकरीनुमा जलप्रवाह है, जो भक्तों के दुख हरता है।

शिवपुर शिव मंदिर : प्रतापपुर

प्रतापपुर के पास शिवपुर शिव मंदिर है. यह भी एक प्राचीन और सुंदर स्थापत्य कला का नमूना है, जो प्राकृतिक शिवलिंग के लिए जाना जाता है। इन मंदिरों के अलावा, पारदेश्वर शिव मंदिर और कूदगढ़ (जो देवी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है) भी सरगुजा के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं।

महासमुंद जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिर


गंधेश्वर महादेव : सिरपुर



महासमुंद जिले के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में गंधेश्वर महादेव मंदिर (सिरपुर) सबसे प्रमुख है, जो शिवलिंग से आने वाली दिव्य सुगंध के लिए जाना जाता है और इसे 'छत्तीसगढ़ का बाबा धाम' भी कहते हैं। यहाँ का शिवलिंग हमेशा चंदन, तुलसी या गुलाब जैसी खुशबू बिखेरता है, इसलिए इसे गंधेश्वर कहते हैं। यह महानदी के किनारे सिरपुर में रायपुर से लगभग 84 किमी दूर स्थित है. यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है और इसे 'मिनी बैजनाथ धाम' भी कहा जाता है। सिरपुर में बालेश्वर महादेव है. 7वीं शताब्दी में निर्मित यह ऐतिहासिक मंदिर समूह है, जिसमें बालेश्वर और उदयेश्वर नाम के दो प्रमुख शिव मंदिर हैं।

श्वेत गंगा कुंड : बम्हनी

महासमुंद से 10 किमी पश्चिम में बम्हनी गांव में नदी में लगातार बहने वाला पवित्र श्वेत गंगा कुंड है, जिसके पास प्राचीन शिव मंदिर है। यहाँ से भक्त जल भरकर कांवड़ यात्रा करते हैं। बम्हणेश्वर महादेव भी बम्हनी गांव के पास स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है।

आदियोगी शिव मंदिर : बसना



आदियोगी शिव मंदिर कोयंबटूर के आदियोगी की तर्ज पर बनी एक आकर्षक प्रतिमा वाला मंदिर है। यह मंदिर महासमुंद जिला मुख्यालय से लगभग 91 किमी दूर बसना शहर के पास है.


सिरपुर में सुरंग टीला मंदिर

महासमुंद जिले के सिरपुर में सुरंग टीला मंदिर, 7वीं शताब्दी का पवित्र शिव मंदिर है. पश्चिम की ओर मुख किए हुए इस मंदिर में पांच गर्भगृह हैं, जिनमें अलग-अलग रंगों के शिवलिंग हैं- सफेद, काला, लाल और पीला. एक गर्भगृह भगवान गणेश को समर्पित है.

बलौदाबाजार के प्रसिद्ध शिव मंदिर

नारायणपुर का महादेव मंदिर : कसडोल

नारायणपुर का महादेव मंदिर कसडोल-सिरपुर मार्ग पर ग्राम ठाकुरिया के पास, महानदी के तट पर स्थित है। बलौदाबाजार जिले में प्रसिद्ध शिव मंदिरों में नारायणपुर का महादेव मंदिर अपने अधूरे निर्माण और शिव विवाह की कथाओं से जुड़ा है। यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। यहाँ 13-14वीं सदी के शिल्प और 16 स्तंभों वाला मंडप है। गर्भगृह में शिवलिंग है, लेकिन कोई मूर्ति नहीं है, और यह अधूरा निर्माण होने के कारण कई लोक कथाओं से जुड़ा है, जैसे कि शिव विवाह की कहानी।

सिद्धेश्वर मंदिर : पलारी




सिद्धेश्वर मंदिर बलौदाबाजार-रायपुर रोड पर, पलारी गाँव में बालसमुंद तालाब के पास स्थित है। लगभग 7-8वीं शताब्दी में निर्मित, यह ईंटों से बना एक सुंदर पश्चिमाभिमुखी मंदिर है। इसके प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना और शिव विवाह के सुंदर दृश्य उकेरे गए हैं। यह छत्तीसगढ़ के ईंट निर्मित मंदिरों का एक उत्कृष्ट नमूना है और राज्य द्वारा संरक्षित है।


छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव : कवर्धा




भोरमदेव मंदिर 11वीं–12वीं सदी के कल्चुरी-नागवंशी शाहियों की कलाकारी और संस्कृति का अद्भुत नमूना है. छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले (कवर्धा) में स्थित यह मंदिर ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहलाता है, क्योंकि इसकी चारों ओर बनी मूर्तियों में काम-शिल्प, काम-कामुकता और जीवन की विविध झलक स्पष्ट रूप से उभरती है. भोरमदेव मंदिर की नींव सन् 1089 में नागवंशी नरेश गोपाल देव ने रखी थी, और यह नागर शैली में निर्मित है, जिसमें प्रमुख रूप से चार मंजिलों वाला संरचना और शिखर शामिल है. यहां की विशेषता इसकी शांत और धार्मिक गणेश-शिव से परे काम-कामुक शिल्पकला है, जो भगवान और मानव जीवन के अद्वितीय सह-अस्तित्व को दर्शाती है. इस कारण इसे ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है. रायपुर से भोरमदेव की दूरी लगभग 125 किमी है. रायपुर -कवर्धा -भोरमदेव रूट से टैक्सी या बस द्वारा पहुंचा जा सकता है.

राजिम कुलेश्वर मंदिर : राजिम



राजिम का कुलेश्वर महादेव मंदिर महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जिस जगह मंदिर स्थित है, वहां कभी वनवास काल के दौरान मां सीता ने देवों के देव महादेव के प्रतीक रेत का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। आज जो मंदिर यहां मौजूद है उसका निर्मांण आठवीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है कि नदियों के संगम पर मौजूद इस मंदिर के अंदर एक गुप्त गुफा मौजूद है जो नजदीक ही स्थित लोमस ऋषि के आश्रम तक जाती है।

राजिम के त्रिवेणी संगम के बीच में वर्षों से टिका कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। करीब 1200 साल पहले बना यह मंदिर प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का अनोखा उदाहरण है। तीन नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यहां बारिश के दिनों में नदियां पूरी तरह आवेग में होती हैं। इसके बीच अपनी मजबूत नींव के साथ मंदिर सदियों से टिका हुआ है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 किलोमीटर दूर स्थित राजिम में नदी पर बना पुल 40 साल भी नहीं टिक पाया, जबकि वहां आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर आज भी खड़ा है।

राजिम में नदी के एक किनारे पर भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और बीच में कुलेश्वर महादेव का मंदिर। किनारे पर एक और महादेव मंदिर है, जिसे मामा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर को भांजे का मंदिर कहते हैं। किंवदंती है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहां से मामा बचाओ आवाज आती है। इसी मान्यता के कारण यहां आज भी नाव पर मामा-भांजे को एक साथ सवार नहीं होने दिया जाता है। नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।


सोमनाथ मंदिर : सिमगा




छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर मार्ग पर स्थित सिमगा गांव के समीप भी एक सोमनाथ मंदिर है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह सैकड़ों साल पुराना है। शिवलिंग की खासियत यह है कि प्रत्येक मौसम में शिवलिंग का रंग बदलता है। इसलिए, यहां दर्शन करने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। खारुन नदी और शिवनाथ नदी के संगम तट पर स्थित होने से प्रतिदिन पिकनिक मनाने के लिए सैकड़ों पर्यटक आते हैं। शिवलिंग की महत्ता इसलिए है कि मानसून, ग्रीष्म काल और शीतकाल में शिवलिंग का रंग बदल जाता है। शिवलिंग गर्मी के दिनों में लाल रंग का मानसून में भूरा और शीतकाल में काले रंग का दिखाई देता है।

सोमनाथ शिवलिंग 6वीं-7वीं शताब्दी पुराना है। रायपुर-बिलासपुर हाइवे रोड पर सिमगा के लखना गांव में स्थित मंदिर पूरे प्रदेशभर में प्रसिद्ध है। तीन फीट ऊंचे शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इसका आकार पहले छोटा था। कण-कण ऊंचाई बढ़ रही है।


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