महंत के बेमौसम बयान ने कांग्रेस की गुटीय विवाद को और खाद-पानी दे दिया, पहले दो गुट थे, अब तीसरा गुट भी बन जाएगा!
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार के बाद भी लगता है कांग्रेस के नेता गुटबाजी को लेकर कोई सबक नहीं ले रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत के ताजा बयान को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। उन्होंने टीएस सिंहदेव की अगुआई में अगला विधानसभा चुनाव कराने का बयान तब दिया, जब दोनों प़क्ष की सेना मैदान में आमने-सामने खड़ी है। ऐसे मौके पर पार्टी में एकजुटता की अपेक्षा की जाती है। मगर महंत के बयान जाहिर है, पीसीसी चीफ दीपक बैज भी हिल गए होंगे। प्रदेश में अभी भूपेश बघेल और एंटी भूपेश बघेल गुट है। अब तीसरा खेमा भी बन जाएगा।

बिलासपुर। नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस के सीनियर लीडर डा चरणदास महंत का एक बयान आया। अगला विधानसभा चुनाव पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की अगुवाई में कांग्रेस लड़ेगी। बयान के बाद यह चर्चा शुरू हो गई कि और सवाल उठने लगा कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को किनारे करने के लिए यह बयान दिया गया। महंत मंजे हुए राजनेता है, बिना सोचे-समझे कुछ बोलते नहीं, मगर नगरीय निकाय चुनाव में उतरे कार्यकर्ताओं को लगता है कि महंत का यह बयान समय के अनुकूल नहीं था।
इस बयान ने एक साथ कई एंगल पर विपरीत सियासी तस्वीर दिखाने लगी। पूर्व सीएम के समर्थक कार्यकर्ता व प्रदेश के दिग्गज नेता जहां राजनीतिक रूप से असहज महसूस करने लगे हैं वहीं कांग्रेस की राजनीति में एक और बड़ा एंगल सामने आने लगा है। वह है पीसीसी चेयरमैन दीपक बैज और उनके समर्थकों का गुट। महंत के बयान ने पीसीसी चेयरमैन सहित गुट से ताल्लुक रखने वाले कार्यकर्ताओं,पदाधिकिरियों और दिग्गजों की एकाएक राजनीति महत्वाकांक्षा को बढ़ा दिया है। जाने अनजाने डा महंत ने पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष को बढ़ावा देने का ही काम किया है।
छत्तीसगढ़ की मौजूदा राजनीति और माहौल पर नजर डालें, यह समय स्थानीय चुनाव का है। नगरीय निकाय और त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। चुनाव मैदान में दोनों ही दल आमने-सामने है। निकाय से लेकर पंचायतों के चुनाव में पीसीसी ने गुटीय राजनीति में काफी हद तक सामंजस्य बैठाते हुए टिकट का वितरण किया है। निकाय चुनाव में तो यह काफी हद तक दिखाई भी दिया। चूंकि ग्रामीण राजनीति में स्थानीय प्रभाव और रसूख के अनुसार लोगों की अपनी अलग-अलग राजनीतिक प्रतिबद्धताएं है,लिहाजा पीसीसी ने जिला व जनपद पंचायत के उम्मीदवारी को पूरी तरह से फ्री छोड़ दिया है। इसमें पार्टी की तरफ से अधिकृत उम्मीदवारी का बंधन नहीं बांधा गया है और ना ही सियासी प्रतिबद्धता। मसलन कांग्रेस के ग्रामीण नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने के लिए फ्री कर दिया है।
त्रि स्तरीय पंचायत की राजनीति में कांग्रेस ने भाजपा से अलग रणनीति अपनाई है। जाहिर सी बात है कार्यकर्ता से लेकर नेताओं की अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं है और अलग-अलग नेताओं से संपर्क और सीधे ताल्लुकात। डा महंत के इस बयान से चुनावी माहौल में चल रही सामंजस्य की राजनीति में दुराव बढ़ने की संभावना भी देखी जा रही है। खासकर पूर्व सीएम भूपेश बघेल के समर्थकों और डा महंत से लेकर टीएस सिंहदेव के समर्थकों के बीच। जैसा कि राजनीतक रूप से आशंका जताई जा रही है,अगर ऐसा हुआ तो आपसी सामंजस्य की राजनीति में ऐसी दरार पड़ेगी जिसकी कल्पना पीसीसी के रणनीतिकारों ने भी नहीं की होगी।
0 तीसरे गुट की बढ़ने लगी संभावना
वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दिल्ली ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पद पर सांसद दीपक बैज को बैठाया था। हालांकि उनके नेतृत्व में पार्टी दोबारा सत्ता में वापस नहीं आ पाई। दिल्ली को यह भी अच्छी तरह पता है कि तब बैज को कुछ ही महीने हुए थे पीसीसी चेयरमैन की कुर्सी संभाले। यही कारण है कि राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी ना होने के बाद भी बैज को कंटीन्यू कर दिया है। माना जा रहा है कि संगठन आगे भी बैज के हाथों में ही रहेगा। डा महंत के बयान के बाद इस बात की चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में एक तीसरा और शक्तिशाली गुट ना बन जाए। जिसकी संभावना काफी हद तक देखी जा रही है। आदिवासी समाज से आने और युवा होने के चलते बैज की सियासी संभावनाओं को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। विधानसभा चुनाव में अभी चार साल का समय है। वैसे भी कांग्रेस की राजनीति खासकर गुटीय राजनीति को कांग्रेस के ही दिग्गज भरोसे के साथ नहीं कह सकता है कि जो आज है वह कल यथावत रहेगा। दिल्ली का मन कब किसके लिए बदल जाए और उनकी प्रतिबद्धता में कौन खरा उतरे कहा नहीं जा सकता।