Korba Tuman Ka Itihas: छत्तीसगढ़ की 1000 साल पुरानी राजधानी का इतिहास! आज भी खुदाई में निकलते है प्राचीन अवशेष
छत्तीसगढ़ का छोटा सा गांव अपने भीतर एक हजार साल पुराने गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है। छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजवंशों में कलचुरी वंश का नाम सबसे पहले लिया जाता है और तुम्मान इसी कलचुरी वंश की पहली राजधानी थी।

Korba Tuman Ka Itihas: प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ की धरती में अनेक राजवंशों का शासन रहा है। जिन्होंने अपने शासनकाल में कई बड़े व छोटे शहरों और राजधानियों को स्थापित किया। आज हम छत्तीसगढ़ के तुम्मान गांव (तुम्हाणखोल) के बारे में जानने वाले हैं। यह छोटा सा गांव अपने भीतर एक हजार साल पुराने गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है। छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजवंशों में कलचुरी वंश का नाम सबसे पहले लिया जाता है और तुम्मान इसी कलचुरी वंश की पहली राजधानी थी।
तुम्मान क्यों है खास
इस गांव की सबसे खास बात इसकी प्राकृतिक सुरक्षा व्यवस्था है। तुम्मान दो पहाड़ी श्रृंखलाओं के मध्य बसा हुआ है, जिसके पूर्व में अमरकंटक पहाड़ी श्रृंखला स्थित है और पश्चिम में हसदेव-बांगो घाटी फैली हुई है। अमरकंटक पहाड़ियों से निकलकर जटाशंकरी नदी गांव के पूर्वी हिस्से से बहती है जो इस क्षेत्र को प्राकृतिक रूप से जल प्रदान करती थी। यह भौगोलिक स्थिति किसी भी राजधानी के लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि यहां प्राकृतिक सुरक्षा के साथ-साथ जल संसाधन भी उपलब्ध था।
कैसे हुई राजधानी की स्थापना
कल्चुरी वंश का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है। इस वंश को हैहय वंश के नाम से भी जाना जाता है। दसवीं शताब्दी के आसपास जब भारत में अनेक राजवंशों का उदय हो रहा था उसी समय कलचुरी वंश ने दक्षिण कोसल में अपने शासन की नींव रखी। रतनपुर में जाज्जल्लदेव प्रथम के शिलालेख से हमें इस वंश के प्रारंभिक शासकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
कलिंगराज को इस वंश का संस्थापक माना जाता है, जिन्होंने अपने पैतृक देश त्रिपुरी को छोड़कर दक्षिण कोसल की ओर रुख किया। वे अत्यंत पराक्रमी योद्धा थे और उन्होंने अपने शौर्य के बल पर दक्षिण कोसल के विशाल भूभाग को जीत लिया। विजय के पश्चात उन्होंने तुम्मान को अपनी राजधानी के रूप में चुना।
तुम्मान में तीन पीढ़ियों का शासन
तुम्मान में कलचुरी वंश के तीन प्रमुख शासकों ने अपना शासन चलाया और इस क्षेत्र को समृद्धि की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। पहले शासक कलिंगराज थे। जिन्होंने लगभग 1000 ईस्वी के आसपास तुम्मान को राजधानी के रूप में स्थापित किया। उनका शासनकाल दक्षिण कोसल में कलचुरी वंश की नींव रखने का समय था।
उनके बाद उनके पुत्र कमलराज ने सत्ता संभाली। कमलराज का शासनकाल लगभग 1020–1045 ईस्वी तक रहा। उन्होंने अपने पिता की नीतियों को आगे बढ़ाया और तुम्मान को और अधिक समृद्ध बनाया।
तीसरे शासक रत्नदेव प्रथम या रत्नराज प्रथम थे। जिन्होंने 1045 से 1065 ईस्वी तक शासन किया। उन्होंने तुम्मान से शासन जारी रखते हुए एक नए शहर रतनपुर की स्थापना की। उन्होंने अपनी राजधानी को तुम्मान से रतनपुर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया और मंदिरों की स्थापना की। जो आगे चलकर कलचुरी वंश की मुख्य राजधानी बनी। रत्नराज प्रथम और पृथ्वीदेव प्रथम ने तुम्मान में अनेक मंदिर बनवाए।
इनमें रत्नेश्वर मंदिर और पृथ्वीदेवेश्वर मंदिर प्रमुख थे। मंदिर परिसर में 21 अन्य मंदिर के अवशेष भी पाए गए हैं। तुम्मान की सबसे बड़ी विशेषता यहां की धार्मिक विविधता है। यहां से शैव, वैष्णव और शाक्त परंपराओं के मंदिर और कलाकृतियां मिली हैं। यह स्थान कोरबा से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
