Kaushalya Mata Mandir: दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर जहां होती है माता कौशल्या की पूजा, क्यों है ये जगह बेहद खास जानिए इतिहास
Kaushalya Mata Mandir: छत्तीसगढ़ के दिल में, रायपुर की हलचल भरी जिंदगी से थोड़ी दूर एक शांत और आध्यात्मिक स्थल है – चंदखुरी, जहां स्थित है माता कौशल्या का मंदिर। यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा स्थान है जो भगवान राम की मां कौशल्या को समर्पित है।

Kaushalya Mata Mandir: छत्तीसगढ़ के दिल में, रायपुर की हलचल भरी जिंदगी से थोड़ी दूर एक शांत और आध्यात्मिक स्थल है – चंदखुरी, जहां स्थित है माता कौशल्या का मंदिर। यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा स्थान है जो भगवान राम की मां कौशल्या को समर्पित है। रायपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर शांत झील के बीचो-बीच खड़ा है जहां पहुंचने के लिए हनुमान पुल से गुजरना पड़ता है। स्थानीय लोग इस जगह को केवल पूजा स्थल के रूप में नहीं मानते बल्कि माता कौशल्या की जन्म भूमि और भगवान राम का ननिहाल भी माना जाता है।
मंदिर का इतिहास और उत्पत्ति
इतिहास की ओर नजर डालें तो पता चलता है कि माता कौशल्या मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में सोमवंशी राजाओं के शासनकाल में हुआ। चंदखुरी गांव प्राचीन नगर आरंग का हिस्सा था जिसका उल्लेख महाभारत और रामायण दोनों कालों में मिलता है। इस क्षेत्र की एक प्रचलित लोककथा है की रामायण काल में यह कोसल नरेश राजा भानुमंत का राज्य था, जो कौशल्या के पिता थे। माता कौशल्या का मूल नाम भानुमति था, जो विवाह के बाद कौशल्या हो गया। माता कौशल्या के विवाह के पश्चात राजा भानुमंत ने 10000 गांव माता कौशल्या को दिए जिसमें चंदखुरी भी शामिल था।
मंदिर की वास्तुकला और प्राकृतिक विशेषताएं
मंदिर की वास्तुकला में सोमवंशी शैली झलकती है। मंदिर की एक और खास बात है जो की अंदर स्थापित मूर्ति में माता कौशल्या बालक राम को गोद में लिए हुए हैं, जिसमें उनका सिर छोटा और राम का सिर बड़ा दिखाया गया है। सन 1973 में किए गए जीर्णोद्धार के फल स्वरुप इस मंदिर की ऐतिहासिकता बरकरार है। यह मंदिर जलसेन नामक तालाब के बीचो-बीच स्थित है।
छत्तीसगढ़ के भक्तों का श्री राम से एक अलग ही रिश्ता है। प्रभु राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान भटकते हुए करीब 10 वर्ष दंडकारण्य के जंगलों में बिताए। विभिन्न प्रकार के घटनाओं जैसे निषाद राज और शबरी के झूठे बेर खिलाने तक सभी छत्तीसगढ़ में ही हुए हैं। श्री राम का ननिहाल होने के नाते मंदिर पारिवारिक बंधनों और मातृ प्रेम का प्रतीक है जो भक्तों को आकर्षित करता है।
मंदिर का हालिया विकास और पर्यटन
राज्य सरकार की विशेष पहल की वजह से हाल के कुछ वर्षों में मंदिर में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। 2020 में मंदिर के मूल ऐतिहासिक छवि को बनाए रखते हुए इसका जीर्णोद्धार किया गया। पर्यटकों के लिए विशेष झांकियां और बेहतर रास्ते जैसी सुविधाएं जोड़ी गई। “राम वनगमन पथ” परियोजना के तहत यहाँ लगभग 15 करोड़ रुपये की लागत से जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण कार्य किया गया। परिसर में भगवान श्री राम की 51 फीट विशाल मूर्ति भी स्थापित की गई।
छत्तीसगढ़ में भांजा और मामा की परंपरा
छत्तीसगढ़ में प्रचलित एक रोचक प्रथा जो इस मंदिर से गहराई से जुड़ी हुई है, वह परंपरा यह है कि जहां भांजा (भांजे) अपने मामा के पैर नहीं छूता, बल्कि मामा भांजे के पैर छूता है। इस मान्यता का गहरा संबंध भगवान श्री राम से जुड़ता है। चूंकि छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है, इसलिए राम यहां के लोगों के सामूहिक भांजे जैसे हैं। इसलिए हर भांजे में श्री राम का रूप देखते हुए मामा द्वारा उनके चरण स्पर्श किए जाते हैं।
