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Kandel Nahar Satyagraha: कंडेल नहर सत्याग्रह; छत्तीसगढ़ की असहयोग गाथा, कैसे अग्रेजों की दमनकारी नीति को दी मात

Kandel Nahar Satyagraha: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक छोटे-बड़े जनआंदोलन हुए, जिन्होंने अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिला दिया। इन्हीं आंदोलनों में से एक था कंडेल नहर सत्याग्रह, जिसने न केवल किसानों की आर्थिक व्यथा को उजागर किया, बल्कि छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संघर्ष की चेतना को भी जागृत किया। यह आंदोलन जल, जमीन और श्रम के अधिकारों के लिए किसानों द्वारा लड़ी गई एक ऐतिहासिक लड़ाई थी।

Kandel Nahar Satyagraha: कंडेल नहर सत्याग्रह; छत्तीसगढ़ की असहयोग गाथा,  कैसे अग्रेजों की दमनकारी नीति को दी मात
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By Chirag Sahu

Kandel Nahar Satyagraha: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक छोटे-बड़े जनआंदोलन हुए, जिन्होंने अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिला दिया। इन्हीं आंदोलनों में से एक था कंडेल नहर सत्याग्रह, जिसने न केवल किसानों की आर्थिक व्यथा को उजागर किया, बल्कि छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संघर्ष की चेतना को भी जागृत किया। यह आंदोलन जल, जमीन और श्रम के अधिकारों के लिए किसानों द्वारा लड़ी गई एक ऐतिहासिक लड़ाई थी।

कंडेल नहर संघर्ष की शुरुआत

सन् 1920 में धमतरी तहसील के कंडेल गांव और आसपास के किसानों पर अंग्रेज सरकार ने एक कठोर नहर कर थोपा। सरकार चाहती थी कि किसान दस वर्षों के लिए अनुबंध कर भारी भरकम सिंचाई कर चुकाएँ। किसानों की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर थी, ऐसे में इस कर को मान लेना उनके लिए असंभव था। जब किसानों ने अनुबंध करने से इंकार किया तो शासन ने लगभग चार हजार रुपये का जुर्माना ठोंक दिया और उनकी संपत्ति तथा मवेशियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

आंदोलन के नेतृत्वकर्ता और प्रतिरोध

इस अन्यायपूर्ण कर नीति के खिलाफ किसानों ने खुलकर आवाज उठाई। आंदोलन का नेतृत्व पंडित सुन्दरलाल शर्मा, पंडित नारायणराव मेघावाले और बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने किया। बाबू छोटेलाल, जिन्हें बाद में "कंडेल के बापू" कहा गया, किसानों को एकजुट कर ब्रिटिश शासन का डटकर मुकाबला करने में आगे रहे।

जब सरकार ने किसानों के मवेशियों की नीलामी कराकर कर वसूलने का प्रयास किया तो ग्रामीणों ने असाधारण साहस दिखाया। नीलामी में किसी ने भाग नहीं लिया, जिससे प्रशासन को असफलता हाथ लगी। यह सामूहिक असहयोग किसानों की शक्ति और एकता का प्रतीक बन गया।

गांधीजी का पहला छत्तीसगढ़ आगमन

यह आंदोलन लगातार पाँच महीने तक चला और किसानों ने महात्मा गांधी से मार्गदर्शन के लिए संपर्क किया। गांधीजी ने कंडेल आंदोलन को गहनता से समझा और इसे असहयोग आंदोलन का एक सशक्त उदाहरण माना। 21 दिसंबर 1920 को गांधीजी स्वयं कंडेल पहुंचे।

यह उनका छत्तीसगढ़ में पहला आगमन था, जिसने आंदोलन को नई दिशा और प्रेरणा दी। गांधीजी की उपस्थिति मात्र से ही किसानों का मनोबल कई गुना बढ़ गया और अंग्रेज प्रशासन को जुर्माना वापस लेने तथा जब्त संपत्ति लौटाने पर मजबूर होना पड़ा।

स्वतंत्रता संग्राम का महत्व

कंडेल नहर सत्याग्रह केवल एक कर-विरोध आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ग्रामीण किसानों के आत्मसम्मान और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया। इस आंदोलन को छत्तीसगढ़ का पहला "जल सत्याग्रह" कहा गया। यह आंदोलन बारदोली सत्याग्रह से आठ वर्ष पहले ही किसानों के प्रतिरोध का अनोखा उदाहरण बनकर सामने आया। इससे यह साबित हुआ कि आमजन भी यदि एकजुट होकर अन्याय का विरोध करें तो किसी भी सत्ताधारी शक्ति को झुकना पड़ सकता है।

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