Kamarchhat 2025 : कल ब्रश नहीं करेगी माताएं... मिट्टी-कांसे और लकड़ी के बर्तनों से बनेगा लाल भात और भाजी, पुत्र की स्वस्थ-खुशहाल जीवन की कामना लिए करेंगी कठिन व्रत और नियम
Kamarchhat 2025 : इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। हल को वे अपने अस्त्र के रूप में कँधे पर धारण किये रहते थे , इसलिय पूजा के बाद व्रत पारणा में भी हल से उपजे अन्न का उपयोग नहीं किया जाएगा.

Kamarchhat 2025 : छत्तीसगढ़ की माताएं अपनी संतान की समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए कल कमरछट, हलछठ यानि हलषष्ठी व्रत रखेंगी। वैसे तो हिन्दू धर्म में कई व्रत और त्यौहार हैं, पर इस अंचल में दो ही व्रत ऐसे हैं जिन पर महिलाओं की सबसे ज्यादा आस्था है। एक तीजा और दूसरा कमरछट। महामाया मंदिर के पुजारी मनोज शुक्ल के अनुसार इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। हल को वे अपने अस्त्र के रूप में कँधे पर धारण किये रहते थे , इसलिय पूजा के बाद व्रत पारणा में भी हल से उपजे अन्न का उपयोग नहीं किया जाएगा। न ही हल चले स्थानो पर जाया जाता है। आज के दिन भैंस के अलावा किसी भी अन्य जानवर का दूध व दुग्ध उत्पाद महिलाओं के लिए वर्जित होता है, चाय भी वो भैंस के दूध से बनी ही पी सकती हैं। महिलाओं का किसी भी ऐसे स्थान पर जाना वर्जित होता है जहां हल से काम किया जाता हो, यानि खेत, फॉर्म हाउस, यहां तक की अगर घर के बगीचे में भी यदि हल का उपयोग होता है तो वहां भी नहीं। आज के दिन महिलाएं टूथ-ब्रश और पेस्ट की बजाये खम्हार पेड की लकडी का दातुन करती हैं,
हलषष्ठी का अर्थ बलराम जी हल को धारण करने वाले हैं जिनके कारण हलधर भी कहा जाता है साथ ही षष्ठी तिथि में बलदाऊ जी का जन्मदिन पड़ने के कारण इस व्रत का नाम हलषष्ठी व्रत पड़ा हलषष्ठी व्रत को बलदाऊ भैया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में किया जाता है।
आचार्य राहुल जी महराज के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने नारद जी के द्वारा देवकी को कही गई कथा को राजा युधिष्टिर से सुनाते हुए कहते हैं हे राजन जो कोई माताएं इस हलषष्ठी व्रत को करती है उनके संतान दीर्घायु होते हैं जिन्हें संतान न हो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है पुत्र से संबंधित समस्त मनोकामना पूर्ण होती है ।
इस व्रत के नियम
- आज के दिन भैंस के अलावा किसी भी अन्य जानवर का दूध व दुग्ध उत्पाद महिलाओं के लिए वर्जित होता है, चाय भी वो भैंस के दूध से बनी ही पी सकती हैं।
- महिलाओं का किसी भी ऐसे स्थान पर जाना वर्जित होता है जहां हल से काम किया जाता हो, यानि खेत, फॉर्म हाउस, यहां तक की अगर घर के बगीचे में भी यदि हल का उपयोग होता है तो वहां भी नहीं।
- आज के दिन महिलाएं टूथ-ब्रश और पेस्ट की बजाये खम्हार पेड की लकडी का दातुन करती हैं, खम्हार ग्रामीण अंचल व जंगलों में पाया जाने वाले पेड़ की एक प्रजाति है।
- सभी महिलाएं एक जगह एकत्रित होती हैं, वहां पर आंगन में एक गड्ढा खोदा जाता है जिसे सगरी कहा जाता है।
- महिलाएं अपने-अपने घरों से मिटटी के खिलौने, बैल, शिवलिंग, गौरी- गणेश इत्यादि बनाकर लाती हैं जिन्हें उस सगरी के किनारे पूजा के लिए रखा जाता है।
- उस सगरी में बेल पत्र, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, कांसी के फूल, श्रृंगार का सामान, लाई और महुए का फूल चढ़ाया जाता है, महिलाएं एक साथ बैठकर हलषष्ठी माई के व्रत की कथाएँ सुनती हैं।
- उसके बाद शिव जी की आरती व हलषष्ठी देवी की आरती के साथ पूजन समाप्त होता है।
- पूजा के बाद माताएं नए कपडे का टुकड़ा सगरी के जल में डुबाकर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के कमर पर से छह बार छुआति हैं, इसे पोती मारना कहते हैं।
- पूजा के बाद बचे हुए लाई, महुए और नारियल को महिलाएं प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांटती हैं और अपने- अपने घर लेकर जाती हैं।
- घर पहुंचकर, महिलाएं फलाहार की तैयारी करती हैं। फलाहार के लिए पसहर का चावल भगोने में बनाया जाता है, इस दिन कलछी का उपयोग खाना बनाने के लिए नहीं किया जाता, खम्हार की लकड़ी को चम्मच के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
- छह प्रकार की भाजियों को मिर्च और पानी में पकाया जाता है, भैंस के घी का प्रयोग छौंकने के लिए किया जा सकता है पर आम तौर पर नहीं किया जाता।
- इस भोजन को पहले छह प्रकार के जानवरों के लिए जैसे कुत्ते, पक्षी, बिल्ली, गाय, भैंस और चींटियों के लिए दही के साथ पत्तों में परोसा जाता है। फिर व्रत करने वाली महिला फलाहार करती है। नियम के अनुसार सूर्यास्त से पहले फलाहार कर लेना चाहिए।
पूजा सामग्री
भैस का दूध दही घी ,लाई ,महुवा, कासी, आमपत्र, पसहर चावल,पुष्प, दूर्वा,रोली, गुलाल, चन्दन, अगरबत्ती,ऋतुफल नारियल,छ प्रकार की सुहाग सामग्री, छ प्रकार की खिलौने (बाटी, भोरा, गिल्ली, फुग्गा, चरखी, गाड़ी),छ प्रकार की भाजी , छ प्रकार के अनाज (चना, तुवर, मटर, लाई,अरहर, महुवा) इत्यादि ।
व्रत पूजन विधि- आचार्य राहुल जी महराज के अनुसार
पुत्रवती एवं पुत्र की इच्छा रखने वाली माताएं प्रातः ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो कर दैनिक पूजन करें तथा व्रत के दिन निराहार रहे और हल चली हुई या जिस जगह पर हल चलती हो ऐसे जगह पर न जाये सात्विक विचार रखे क्रोध न करें ।
व्रत के दिन दोपहर के समय किसी देवालय में या नदी एवं सरोवर के समीप पवित्र स्थान में जाये यदि सुविधा न हो तो घर के आंगन में ही अथवा वृक्ष के नीचे बनावटी तालाब बनाकर पानी भरे कमल फूल रखे सगरी के चारों ओर काशी के फूल बनावटी झाड़ आदि बनावे गौ के गोबर से भूमि का लेपन कर शुद्धिकरण करें एक पीढ़ा में गौरी गणेश ,कलश, शिव पार्वती की प्रतिमा रखे उसके बाद पंडित जी के द्वारा पूजन कराए तरूपरांत कथा श्रवण करें प्रत्येक अध्यय में पसहर चावल पुष्प चढ़ाए व घी गुड़ का अग्नि में अर्पण करें कथा पूर्ण होने पर सगरी की 6 परिक्रमा करें प्रसाद बाटे ब्राम्हण को दक्षिणा प्रदान करें तथा अपने से बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद ले व छोटो को स्नेह प्रदान करे पूजन के निमित्त बनाये गए खिलौने बच्चों में बाट दे ।पीला वस्त्र से 6 थापा बच्चों के पीठ में लगाए ।
इसके बाद पसहर चावल एवं छ प्रकार की भाजी पकाकर व्रत का पारणा करना चाहिए पारण ग्रहण करने से पहले कुत्ता, बिल्ली, कौवा, भयस, ब्राम्हण, बालक इन छहो के लिए प्रसाद निकालने चाहिए एक बात का विशेष रूप से ध्यान रखे कि सूर्यास्त के पूर्व पूर्णतया व्रत पूजन हो जाना चाहिए फिर पूजनस्थल की साफ साफ सफाई कर सामग्री विसर्जित कर देना चाहिए ।
हलषष्ठी व्रत कथा
मथुरा के राजा कंस अपनी बहन देवकी को विवाह उपरांत विदा करने जा रहे थे तो आकाशवाणी के वचन सुन कि देवकी का आठवाँ गर्भ तेरी मृत्यु का कारण बनेगा, जानकार बहन-बहनोई को कारागार में डाल दिया और वसुदेव-देवकी के छह पुत्रों को एक-एक कर कंस ने मार डाला । जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद जी वसुदेव-देवकी से मिलने पहुंचे और उनके दुख का कारण जानकार देवकी को हलषष्ठी देवी के व्रत रखने की सलाह दी। देवकी ने नारद जी से हलषष्ठी व्रत की महिमा व कथा पूछी तो नारद ने पुरातन कथा कहना प्रारम्भ किया कि-
चन्द्रव्रत नाम का एक राजा हुआ, जिनकों एक ही पुत्र था राजा ने राहगीरों के लिए एक तालाब खुदवाया किन्तु उसमे जल न रहा सुख गया। राहगीर उस रास्ते गुजरते और सूखे तालाब को देखकर राजा को गाली देते थे। इस खबर को सुनकर राजा दुखित हुआ कि मैंने तालाब खुदवाया, मेरा धन व धर्म दोनों ही व्यर्थ गया। उसी रोज रात राजा को स्वप्न में वरुण देव ने दर्शन देकर कहा कि यदि तुम अपने पुत्र का बलि तालाब मे दोगे तो जल भर जाएगा। सुबह राजा ने स्वप्न में कही बात दरबार मे सुनाया और कहा कि मेरा धन व धर्म भले ही व्यर्थ हो जाए पर मै अपने पुत्र का बलि नहीं दूंगा।
यह बात लोगों से होता हुआ राजकुमार तक पहुंचा तो वह सोचने लगा कि यदि मेरी बलि से तालाब में पानी आ जाए तो लोगों का भला होगा, यह सोंचकर राजकुमार अपनी बलि देने तालाब में बैठ गया। अब वह तालाब पानी से लबालब भर गया, जल के जीव-जंतुओं से तालाब परिपूर्ण हो गया। एकलौते पुत्र के बलि हो जाने से राजा दुखी होकर वन को चला गया ।
वहाँ पाँच स्त्रियाँ व्रत कर रही थी जिसे देखकर राजा ने कौन सा व्रत और क्यों कर रही हो पूछने पर स्त्रियों ने हलषष्ठी व्रत की सम्पूर्ण विधि –विधान बतलाई। उसे सुनकर राजा वापिस नगर को गया और अपनी रानी के साथ उस व्रत को किया । व्रत के प्रभाव से राजपुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया । राजा परिवार सहित हलषष्ठी माता के जयकार कर सुख पूर्वक निवास करने लगा।
अब नारदजी ने देवकी से हलषष्ठी व्रत की अन्य कथा कहना शुरू किया कि- उज्जैन नगरी में दो सौतन रहती थी। एक का नाम रेवती तथा दूसरी का नाम मानवती । रेवती को कोई संतान न था,जबकि मानवती के दो पुत्र थे। रेवती अपने सौत के बच्चों को देखकर हमेशा सौतिया डाह से जलती रहती और उनके पुत्रों को मारने का जतन ढूंढती रहती थी। एक दिन उन्होने मानवती को बुलाकर कहा कि-बहन आज तुम्हारे मायके से कुछ राहगीर मुझसे मिले थे उन्होने बताया कि तुम्हारे पिताजी बहुत बीमार है और वह तुम्हें देखना चाहता है।
पिता कि बीमारी को सुनकर मानवती दुखी हुई। रेवती कहने लगी कि बहन तुम शीघ्र अपने पिता से मिलने चली जा, तुम्हारे आने तक मै बच्चों का ध्यान रखूंगी। सौत के बात को सच मान और अपने पुत्रों को रेवती के हाथों सुरक्षित देकर मानवती पिता से मिलने मायके चली गई। अब रेवती बच्चों को मारने का अच्छा मौका जान कर उन दोनों बच्चों को मारकर जंगल में फेंक आयी। इधर मानवती जब मायके पहुंची तो पिता को स्वस्थ देखकर पिता से अपनी सौत की कही बातों को कह कुशल-क्षेम पूछती है।
अब मानवती के माता-पिता ने अनहोनी के संदेह से पुत्री को जाने को कहती है,किन्तु मानवती के माता ने कहा कि पुत्री आज हलषष्ठी माता का व्रत का दिन है अत: तुम भी पुत्रों की दीर्घायु की कामना से यह व्रत कर आज के जगह कल चली जाना । माता की सलाह मान मानवती पुत्रों की स्वास्थ कामना से हलषष्ठी माता का व्रत धारण कर दूसरे दिन अपने घर जाने को निकली। रास्ते में वही जंगल पड़ा और वहाँ अपने बच्चों को खेलते देख उनसे पूछती है कि तुम लोग यहाँ कैसे पहुंचे।
तब पुत्रों ने बताया कि आपके चली जाने पर हमारी दूसरी माता रेवती ने मारकर यहाँ फेंक दी थी कि तभी एक दूसरी स्त्री ने हमें फिर से जिंदा कर गई। अब मानवती को समझते देर न लगी कि यह सब माता हलषष्ठी की कृपा से संभव है और माता की जयकार करती हुई घर को गई। नगर में मानवती के पुत्रों को पुनः जीवित देख और माता हलषष्ठी की महिमा जान सभी स्त्रियाँ हलषष्ठी व्रत करने लगी।
