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High Court News: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जब तक मूल दस्तावेज़ लापता होने का प्रमाण न हो, तब तक द्वितीयक साक्ष्य अस्वीकार्य

बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में लिखा है कि मूल दस्तावेज़ को छिपाए या दबाए जाने की स्थिति में क्रास एग्जामिनेशन के दौरान दूसरा साक्ष्य या दस्तावेज स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि किसी दस्तावेज से संबंधित दूसरा साक्ष्य केवल तभी स्वीकार किया जा सकता है जब मूल दस्तावेज खो गया या फिर नष्ट कर दिया गया हो। जानबूझकर नष्ट किए जाना प्रमाणित होने की स्थिति में भी स्वीकार किया जा सकता है। डिवीजन बेंच ने कहा कि जांच या फिर प्रारंभिक चरणों में इसे पेश नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्रास एक्जामिनेशन के दौरान पेश करने पर इसे स्वीकार किया जा सकता है।

बताना होगा कारण-

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि जो पक्ष साक्ष्य पेश करना चाहता है उसे बताना होगा और यह साबित करना होगा कि मूल साक्ष्य पेश ना करने के पीछे कारण क्या है। डिवीजन बेंच ने साक्ष्य अधिनियम, 1872 में दिए गए प्रावधान का हवाला देते हुए लिखा है कि जो बातें कही गई है उन सभी तथ्यों को प्राथमिक साक्ष्य के साथ स्थापित करना होगा। नए साक्ष्य अपवाद स्वरूप ही स्वीकार किए जाएंगे। इसमें भी मूल तथ्यों और बातों को गंभीरता के साथ रखना होगा उसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।

विवाह का झूठा वादा कर बनाया शारीरिक संबंध, फिर किया इंकार-

याचिकाकर्ता विजय उरांव के खिलाफ शिकायतकर्ता ने पुलिस थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें कहा था कि याचिकाकर्ता ने विवाह का झूठा वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में विवाह से इनकार कर दिया। महिला की शिकायत के आधार पर पुलिस ने IPC की धारा 376 और 417 के तहत एफआईआर दर्ज कर याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया। पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दायर किया किया था। मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय किया। पीड़िता की गवाही के दौरान पीड़िता ने एग्रीमेंट की कापी पेश की,जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

याचिकाकर्ता ने दर्ज कराई आपत्ति-

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने इकरारनामा न तो जांच के दौरान प्रस्तुत किया , न ही CrPC की धारा 161 या 164 के तहत और ना ही बयान के समय। पेश किए गए एग्रीमेंट को रिकार्ड पर लेने के समय शिकायतकर्ता ने आवेदन पेश नहीं किया था। इसके बाद भी क्रास एक्जामिनेशन के दौरान एग्रीमेंट की फोटोकापी कोर्ट में पेश की गई और बिना सूचना दिए इसे स्वीकार भी कर लिया।

हाई कोर्ट की टिप्पणी-

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अधिनियम की धारा 65 से स्पष्ट होता है कि द्वितीयक साक्ष्य तभी दी जा सकती है, जब मूल दस्तावेज़ उस व्यक्ति के पास हो, जिसके खिलाफ दस्तावेज़ प्रस्तुत किया जा रहा है। दूसरी परिस्थिति में धारा 66 के तहत नोटिस देने के बावजूद वह दस्तावेज़ पेश करने में आनाकानी कर रहा हो। डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि जब तक यह प्रमाणित न हो कि दस्तावेज़ खो गया या रोका गया, तब तक द्वितीयक साक्ष्य स्वीकार नहीं की जा सकती। डिवीजन बेंच ने कहा है कि इस मामले में प्रस्तुत इकरारनामा न तो चार्जशीट का हिस्सा है और न ही पीड़िता ने इसे जांच के दौरान प्रस्तुत किया, इसलिए इसे क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान अचानक प्रस्तुत करना और स्वीकार करना विधिसम्मत नहीं है।

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