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High Court News: असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में दृष्टिबाधित को नहीं मिली जगह, हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने असिस्टेंट प्रोफेसर कामर्स के लिए आरक्षण की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग PSC के तय मापदंडों का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने पीएससी को कुछ इस तरह का निर्देश जारी किया है।

High Court News: असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में दृष्टिबाधित को नहीं मिली जगह, हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका
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By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने लोक सेवा आयोग के माध्यम से सहायक प्राध्यापक वाणिज्य विषय के पद पर हुई भर्ती में दो प्रतिशत आरक्षण देने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने दृष्टिबाधित श्रेणी के उम्मीदवारों को वाणिज्य विषय में आरक्षण नहीं देने को उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तथ्य आया कि कुछ विषयों के लिए दिव्यांग श्रेणी के अभ्यर्थी कार्य करने के लिए उपयुक्त नहीं है।

पीएससी ने वर्ष 2021 में सहायक प्राध्यापकों के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें दृष्टिबाधित सरोज क्षेमनिधि ने भी वाणिज्य विषय के लिए आवेदन किया था। परीक्षा पास करने के बाद इंटरव्यू में भी शामिल हुआ। इंटरव्यू के बाद दजारी चयन सूची में नाम नहीं था। अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा है कि विज्ञापन में दृष्टिबाधित श्रेणी के अभ्यर्थियों को वाणिज्य विषय में आरक्षण नहीं दिया गया, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने हाई कोर्ट के नोटिस के जवाब में बताया कि आयोग केवल चयन प्रक्रिया संचालित करता है,। आरक्षण नीति निर्धारण का अधिकार राज्य सरकार के पास है। पीएससी ने बताया कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन करते हुए एक हाथ और एक पैर से दिव्यांग अभ्यर्थियों को वाणिज्य विषय में आरक्षण का लाभ दिया गया, लेकिन दृष्टिबाधितों को इसका लाभ नहीं दिया गया।

दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को वाणिज्य में आ सकती है दिक्कतें-

मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को यह तय करने का अधिकार है कि कौन सा पद किस प्रकार की दिव्यांगता के लिए उपयुक्त है। कोर्ट ने माना कि वाणिज्य विषय की प्रकृति ऐसी है जिसमें लिखित गणनाओं और विजुअल प्रेजेंटेशन की अधिक जरूरत होती है। जिससे दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को काम करने में कठिनाई आ सकती है। हाई कोर्ट ने नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड विरुद्ध भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई पद दृष्टिबाधितों के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उसे अन्य दिव्यांग श्रेणियों को दिया जा सकता है।

दिव्यांगों को मिला आरक्षण का लाभ–

हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि राज्य सरकार ने दिव्यांगों को नियमों के तहत आरक्षण का लाभ दिया। वाणिज्य विषय में दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को आरक्षण नहीं देना अनुचित नहीं है। हाई कोर्ट ने 24 मार्च 2021 के अंतरिम आदेश को निरस्त करते हुए आयोग को 60 दिन के भीतर उपयुक्त उम्मीदवार को नियुक्त करने के आदेश दिया है।

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