Giraudpuri Dham: यहां है कुतुबमीनार से भी ऊंचा जैतखंभ, जानिए सतनाम पंथ के संस्थापक की जन्म और तपोभूमि का इतिहास
Giraudpuri Dham: गिरौदपुरी धाम, छत्तीसगढ़ के हृदय में बसा एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक समानता और शांति का प्रतीक भी है। यह सतनामी पंथ के संस्थापक संत गुरु घासीदास जी का जन्मस्थान और तपोभूमि है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। गिरौदपुरी, महानदी और जोंक नदी के संगम पर स्थित है जो बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में है। यह स्थान अपने ऐतिहासिक महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता है। इस लेख में हम जानेंगे गिरौदपुरी धाम की पूरी कहानी।

Giraudpuri Dham: गिरौदपुरी धाम, छत्तीसगढ़ के हृदय में बसा एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक समानता और शांति का प्रतीक भी है। यह सतनामी पंथ के संस्थापक संत गुरु घासीदास जी का जन्मस्थान और तपोभूमि है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। गिरौदपुरी, महानदी और जोंक नदी के संगम पर स्थित है जो बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में है। यह स्थान अपने ऐतिहासिक महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता है। इस लेख में हम जानेंगे गिरौदपुरी धाम की पूरी कहानी।
गिरौदपुरी धाम: ऐतिहासिक महत्व
गिरौदपुरी धाम का नाम सुनते ही गुरु घासीदास जी का चेहरा मन में उभरता है। 18वीं सदी में जन्मे गुरु घासीदास ने सतनामी पंथ की स्थापना की, जो समानता, सत्य और भाईचारे का संदेश देता है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के दलित और आदिवासी समाज को सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया। गिरौदपुरी उनकी जन्मभूमि होने के साथ-साथ उनकी तपस्या का केंद्र भी है। यह स्थान सतनामी समुदाय के लिए सबसे पवित्र माना जाता है, जहां लोग "सतनाम" के मंत्र के साथ जीवन की सादगी और शांति को अपनाते हैं।
यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल
गिरौदपुरी धाम में कई ऐसे स्थान हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। सबसे पहले बात करते हैं जैतखाम की, जो दुनिया का सबसे ऊंचा जैतखाम है। यह 77 मीटर ऊंचा स्मारक है और सतनाम पंथ का प्रतीक है। इसकी भव्यता और शिल्पकला देखते ही बनती है। जैतखाम के शीर्ष पर चढ़ने का अनुभव अद्भुत है, जहां से चारों ओर फैली हरियाली और नदियों का संगम मन को मोह लेता है। गिरौदपुरी धाम की दूरी रायपुर से लगभग 125 से 135 KM है.
इसके अलावा, सतनाम धाम तपोभूमि मंदिर वह स्थान है, जहां गुरु घासीदास जी ने तपस्या की थी। यहां औरा-धौरा पेड़ के नीचे उनकी समाधि है, जहां श्रद्धालु दंडवत प्रणाम करते हैं। चरण कुंड और अमृत कुंड दो पवित्र जलाशय हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि इनमें स्नान करने से मन और शरीर की शुद्धि होती है। छाता पहाड़ एक और खास जगह है, जहां गुरु घासीदास जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। पंचकुंडी जहां पांच अलग-अलग कुंड बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त, बछिया जीवंदान स्थल और सफुरा जीवंदान स्थल गुरु जी के चमत्कारों की याद दिलाते हैं, जहां उन्होंने एक मृत बछड़े और अपनी पत्नी को जीवित किया था।
कुतुबमीनार से भी ऊंचा जैतखंभ
यहां कुतुबमीनार से भी ऊंचा जैतखंभ बनाया गया है. कुतुबमीनार की ऊंचाई लगभग 72 मीटर है और जैतखंभ की ऊंचाई लगभग 77 मीटर, सीढ़ियों के सहारे चढ़ कर प्राकृतिक सुंदरता देख सकते हैं. जैतखंभ का उद्घाटन 2105 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किया था. जैतखंभ सतनामी समाज में विशेष स्थान रखता है, जैतखंभ सफेद रंग का स्तंभ होता है जिसमें सफेद रंग का ध्वज फहराया जाता है. सतनामी समाज में इसे जीत का प्रतीक माना जाता है.
गिरौदपुरी धाम में उत्सव और मेले
गिरौदपुरी धाम का सबसे बड़ा आकर्षण है इसका गुरु दर्शन सतनाम मेला, जो फाल्गुन मास की पंचमी से सप्तमी तक आयोजित होता है। यह मेला 1935 से शुरू हुआ और अब विश्वविख्यात हो चुका है। हर साल करीब 15 लाख लोग यहां आते हैं। मेले में भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जो छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत करता है।
दूसरा महत्वपूर्ण आयोजन है गुरु जयंती, जो 18 दिसंबर को गुरु घासीदास के जन्मदिन पर मनाई जाती है। इन उत्सवों में स्थानीय लोग रंग-बिरंगे परिधानों में शामिल होते हैं और सतनाम का संदेश गूंजता है। ये मेले न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। सतनामी समाज के लोगों द्वारा किया जाने वाला पंथी नृत्य भी काफी विख्यात है। जिसमें गुरु घासीदास जी के जीवन की शिक्षाओं का उल्लेख किया जाता है।
