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Dr Raman Singh: पीएम मोदी के रमन सिंह को 'कैप्टन' से 'खिलाड़ी' बताने के सियासी मायने, पढ़िये पत्रकार अनिल तिवारी का विश्लेषण...

Dr Raman Singh: राजनीति के टीम स्पिरिट का जीवंत प्रतीक रमन सिंह की सियासत का नया अध्याय

Dr Raman Singh: पीएम मोदी के रमन सिंह को कैप्टन से खिलाड़ी बताने के सियासी मायने, पढ़िये पत्रकार अनिल तिवारी का विश्लेषण...
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By Gopal Rao

अनिल तिवारी

Dr Raman Singh: रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे हैं जो सत्ता से दूर होकर भी केंद्र में बने रहते हैं। जो पद की ऊँचाई से नहीं, बल्कि अपने व्यक्तित्व की गहराई से सम्मान पाते हैं। डॉ. रमन सिंह ऐसा ही नाम हैं। एक ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व जिसने मुख्यमंत्री से लेकर साधारण कार्यकर्ता और अब विधानसभा अध्यक्ष तक की यात्रा में हर भूमिका को मर्यादा और संयम से निभाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल में की गई उनकी तुलना क्रिकेट के एक 'कैप्टन से खिलाड़ी बनने' वाले उदाहरण से की गई। यह सिर्फ एक प्रशंसा नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में दुर्लभ होती जा रही संयमित नेतृत्व शैली की मान्यता भी है। पच्चीस साल के छत्तीसगढ़ की राजनीतिक यात्रा में डॉ. रमन सिंह की भूमिका एक रीढ़ की तरह रही है। राज्य निर्माण के बाद से पंद्रह वर्षों तक वे न केवल मुख्यमंत्री रहे, बल्कि भाजपा संगठन और शासन के बीच एक सेतु भी बने। वे सत्ता के शिखर पर रहे, लेकिन कभी अहंकार के शिखर पर नहीं चढ़े। यही कारण है कि जब 2018 में भाजपा सत्ता से बाहर हुई, तब भी रमन सिंह का चेहरा न तो निराशा से झुका, न ही हताशा से थमा। वे पीछे हटे जरूर, पर गिरावट नहीं दिखी, वह एक संयमित अवकाश था, न कि राजनीतिक संन्यास।

सियासत में अक्सर पराजय के बाद नेता या तो हाशिए पर चले जाते हैं या खुद को अतीत की स्मृतियों में कैद कर लेते हैं। लेकिन रमन सिंह ने उस पराजय को भी आत्ममंथन का अवसर बनाया। पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व सौंपा। यह भरोसा महज पद देने भर का नहीं था — यह उस व्यक्ति के प्रति सम्मान था, जिसने पार्टी के लिए अपने ‘स्व’ को हमेशा ‘संगठन’ के आगे रखा। समय बदला, सियासी समीकरण बदले। जब भाजपा दोबारा सत्ता में लौटी, तो मुख्यमंत्री पद की कमान विष्णुदेव साय को मिली। बहुतों को यह निर्णय अप्रत्याशित लगा। लेकिन रमन सिंह का आचरण उस निर्णय से भी बड़ा साबित हुआ। उन्होंने न कोई शिकायत की, न कोई बयान। यही उनका सबसे बड़ा राजनीतिक गुण है- “सत्ता में भी संयम, सत्ता से बाहर भी संतुलन।” और शायद इसी गुण ने उन्हें राजनीति में एक स्थायी प्रतीक बना दिया है। विधानसभा अध्यक्ष का पद, पहली नजर में, सत्ता से दूर का प्रतीत होता है, पर वास्तव में यह पद राज्य की संवैधानिक मर्यादाओं का सर्वोच्च प्रहरी होता है। रमन सिंह का इस कुर्सी पर होना, छत्तीसगढ़ के लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है। वे न केवल सदन के अनुशासन की गरिमा बनाए रखते हैं, बल्कि अपनी भाषा, व्यवहार और दृष्टि से यह संदेश भी देते हैं कि लोकतंत्र में संवाद विरोध से बड़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस क्रिकेटीय प्रतीक से रमन सिंह की तुलना की कि “कैप्टन अब खिलाड़ी बन गया” वह सिर्फ रूपक नहीं, राजनीति का एक गहरा संदेश है। क्रिकेट में यह स्वाभाविक है कि कभी कप्तान रहने वाला खिलाड़ी आगे चलकर टीम का हिस्सा बनता है, लेकिन राजनीति में ऐसा विरला ही होता है। राजनीति में पद छूटते ही अक्सर लोग पार्टी से दूरी बना लेते हैं या हाशिये पर चले जाते हैं। पर रमन सिंह ने इस प्रवृत्ति को पलट दिया। उन्होंने दिखाया कि नेतृत्व का असली अर्थ सत्ता नहीं, समर्पण है। प्रधानमंत्री का यह कथन कि “यह राजनीति में दुर्लभ उदाहरण है”, दरअसल उस सियासी संस्कृति की ओर संकेत करता है जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत है, वह संस्कृति जिसमें त्याग, अनुशासन और धैर्य केवल शब्द नहीं, चरित्र का हिस्सा हों। रमन सिंह की यह भूमिका भाजपा के हर कार्यकर्ता के लिए एक सीख है। उन्होंने दिखाया कि राजनीति में पद नहीं, प्रतिष्ठा मायने रखती है। और प्रतिष्ठा, त्याग और सादगी से ही अर्जित होती है। छत्तीसगढ़ की जनता उन्हें आज भी डॉ. साहब कहकर आदर से पुकारती है, क्योंकि उन्होंने जनता के बीच भरोसे की वह पूंजी बनाई है जो किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए सबसे बड़ा संसाधन होती है। उनकी राजनीति की जड़ें सत्ता के गलियारों में नहीं, गाँवों की मिट्टी में हैं। डॉक्टर से मुख्यमंत्री और फिर विधानसभा अध्यक्ष बनने की यात्रा में उन्होंने कभी अपनी पहचान का ‘जन’ पक्ष नहीं खोया। यही कारण है कि आज भी वे 'विनम्रता के प्रतीक' और 'छत्तीसगढ़ की सियासत के सबसे शांत चेहरे' माने जाते हैं।

राजनीति के इस दौर में जहां शोर, तंज और ट्रोलिंग ने संवाद की जगह ले ली है, वहाँ रमन सिंह की भाषा अब भी संयमित है, उनका आचरण अब भी सुसंस्कृत है। वे बहस करते हैं, पर बहकते नहीं। वे विरोधियों से भिड़ते हैं, पर वैमनस्य नहीं पालते। यह उनके राजनीतिक संस्कार का परिणाम है, जिसने उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाए रखा है। छत्तीसगढ़ की राजनीति आने वाले वर्षों में नए समीकरण देखेगी। नई पीढ़ी, नए चेहरे, नई गठबंधनों की संभावनाएं। लेकिन इस बदलते परिदृश्य में भी रमन सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की भूमिका मार्गदर्शक प्रकाश की तरह बनी रहेगी। राजनीति में उम्र से नहीं, अनुभव से नेतृत्व तय होता है। और अनुभव वही सार्थक है जो आने वाली पीढ़ियों को धैर्य, मर्यादा और समर्पण सिखा सके। भविष्य में छत्तीसगढ़ का राजनीतिक परिदृश्य चाहे जैसा भी बने, रमन सिंह उसमें किसी न किसी रूप में मौजूद रहेंगे, चाहे वह एक सलाहकार के रूप में हों, एक मार्गदर्शक के रूप में या सदन की गरिमा के प्रहरी के रूप में। राजनीति में निरंतरता और स्थिरता की सबसे बड़ी पहचान वही है जो उतार-चढ़ाव में भी अपने आचरण की ऊँचाई बनाए रखे और रमन सिंह ने यह कर दिखाया है।

छत्तीसगढ़ के रजत पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री की प्रशंसा दरअसल उस राजनीतिक संस्कृति की स्वीकृति थी जो आज विलुप्तप्राय है। कैप्टन से खिलाड़ी बनना आसान नहीं होता, क्योंकि इसके लिए त्याग, विश्वास और आत्मनियंत्रण की जरूरत होती है। डॉ. रमन सिंह ने यह दिखाया है कि सत्ता से बड़ा ‘सेवा’ और पद से बड़ा ‘प्रेरणा’ होती है। सियासत के इस नए युग में जहां नेतृत्व को लचीलापन चाहिए, वहीं रमन सिंह उस लचीलेपन का जीता-जागता उदाहरण हैं, जो झुकते नहीं, लेकिन टूटते भी नहीं। वे अब केवल भाजपा या विधानसभा के नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की राजनीतिक संस्कृति के संवेदनशील स्तंभ बन चुके हैं। और शायद इसी अर्थ में प्रधानमंत्री का रूपक सही साबित होता है कि कभी कप्तान रहे रमन सिंह अब खिलाड़ी नहीं, बल्कि राजनीति के टीम स्पिरिट का जीवंत प्रतीक हैं।

Gopal Rao

गोपाल राव: रायपुर में ग्रेजुएशन करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। विभिन्न मीडिया संस्थानों में डेस्क रिपोर्टिंग करने के बाद पिछले 8 सालों से NPG.NEWS से जुड़े हुए हैं। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं।

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